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देहरादून रेलवे स्टेशन के कुली नंबर 145 की कहानी खुद की जुबानी - lone porter of dehradun railway station

कोरोना वायरस से हर तबका परेशान है. देहरादून रेलवे स्टेशन की रौनक याद कर आज भी कुली नंबर 145 की आंखें डबडबा जा रही हैं. कोरोना काल से पहले प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार, ट्रेन के रुकने से पहले ही दौड़ लगा यात्रियों के सामान उठाने की आपाधापी अब महज यादों में सिमट गई है.

कुली नंबर 145 की कहानी खुद की जुबानी
कुली नंबर 145 की कहानी खुद की जुबानी
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Published : Sep 17, 2020, 2:29 PM IST

देहरादून: अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कुली' ने पहली बार मुसाफिरों का बोझ उठाने वाले इस तबके के संघर्ष को सबके सामने रखा. लेकिन इतने साल बीतने के बाद बाद भी कुलियों की जिंदगी नहीं बदली. कोरोना और तीन महीने के लॉकडाउन ने उन्हें रोजी-रोटी के लिए मोहताज कर दिया है. देहरादून रेलवे स्टेशन की रौनक याद कर आज भी कुली नंबर 145 की आंखें डबडबा जाती हैं. कोरोना काल से पहले प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार, ट्रेन के रुकने से पहले ही दौड़ लगाकर यात्रियों के सामान उठाने की आपाधापी अब महज यादों में सिमट गई है.

कोरोना के समय दून रेलवे स्टेशन पर मौजूद एकमात्र कुली की दर्द भरी दास्तां.

कुछ दिन और गाड़ियां नहीं चलीं तो ये कष्ट और बढ़ जाएगा. ये हताशा भरे शब्द देहरादून रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के सामान का बोझ उठाने वाले कुली मुकेश कुमार यादव के हैं. जो काम न मिलने से परिवार की आजीविका को लेकर चिंतित हैं. सिर पर दुनिया का बोझ उठाने वाले मुकेश कुमार यादव अब मुसीबतों के बोझ तले दबते जा रहे हैं. देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुल 45 कुली काम करते हैं. लेकिन, इस संकट की घड़ी में आपको मुकेश देहरादून रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर रोटियों के लिए जूझते मिल जाएंगे.

लॉकडाउन से पहले देहरादून रेलवे स्टेशन से 30 ट्रेनें रवाना होती थी. लेकिन आज महज तीन ट्रेनों का ही संचालन हो रहा है. जिसकी वजह से मुकेश कुमार रोटी के मोहताज हो गए हैं. पिछले कई सालों से देहरादून रेलवे स्टेशन पर काम कर रहे गोरखपुर के मुकेश कुमार यादव कहते हैं 'रोजाना घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है. सब्जियों तक के पैसे के लिए उधारी लेना पड़ रहा है. 10 लोगों के परिवार को अकेला चलता हूं, पिछले कई महीने कष्टों से गुजर रहे हैं और कोई पूछने वाला नहीं है'. तो पढ़िए देहरादून रेलवे स्टेशन के कुली नंबर-145 की कहानी, मुकेश की जुबानी.

रेलवे स्टेशन पर पसरा सन्नाटा

ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून रेलवे स्टेशन का रुख किया तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. कोरोना महामारी से पहले रेलवे स्टेशन पर लगभग 45 लोग कुली का काम करते थे, लेकिन कोरोना काल में आए रोजी-रोटी के संकट ने इन्हें यह काम छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अब यहां एकमात्र मुकेश कुमार यादव नाम का कुली ही काम करता है.

ट्रेन के इंतजार में कुली

रेलवे स्टेशन पर लोगों का इंतजार कर रहे मुकेश के चेहरे पर ट्रेन आने के बाद थोड़ी सी मुस्कान जरूर आती है. वहीं, कोरोना को लेकर सभी यात्रियों को एक लाइन में खड़ा करके बारी-बारी से बाहर निकाला जाता है. मुकेश लाइन के एक तरफ खड़े होकर हर यात्री से उसका सामान उठाने के बारे में पूछता है, लेकिन मुकेश को अधिकतर लोग ना में जवाब देते हैं. हालांकि, मुकेश इस बात से जरा भी निराश नहीं होता. वहीं, अगली सुबह होने के इंतजार में मुकेश का समय फिलहाल बीत रहा है.

ये भी पढ़ें: इंदिरा ने दिया आश्वासन तो 45 दिन बाद टूटा फीस माफी का अनशन

मुकेश देहरादून में बने कुली

मुकेश से बातचीत में मालूम हुआ कि वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का रहने वाला है और बीते 10 सालों से वह देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहा है. मुकेश बताते हैं कि वह इंटर पास हैं और साथ में आईटीआई भी की हुई है. पुलिस भर्ती के सिलसिले में वह घर से बाहर निकले, लेकिन 3 से 4 बार मेरिट में सिलेक्शन ना होने की वजह से उन्होंने अपने पिताजी का काम संभाल लिया.

कोरोना महामारी जैसा समय नहीं देखा

मुकेश कुमार यादव के पिता ने देहरादून रेलवे स्टेशन पर लगभग 40 सालों तक कुली का काम किया हैं. मुकेश बताते हैं कि आज जब वह अपने पिताजी से बात करते हैं तो उनके पिता बताते हैं कि उन्होंने 40 साल में ऐसा समय कभी नहीं देखा जैसा कि कोविड-19 महामारी के समय है. मुकेश के घर में 10 लोग रहते हैं और कमाने वाले सिर्फ वह एक हैं.

पिता के काम को मुकेश ने संभाला

मुकेश बताते हैं कि जो उनके पास बिल्ला है वह उनके पिताजी का है और उनके पिताजी ने अपने पिताजी से लिया था. कोरोना महामारी होने की वजह से अब लोग उन्हें सामान जान बूझकर नहीं देते. लोगों के मन में डर है कि कहीं अगर वह उनका सामान छुएगा तो कहीं वह संक्रमित ना हो जाए.

दिनभर में सौ दो सौ की कमाई

मुकेश बताते हैं कि वैसे वह इस बात का पूरा ध्यान रख रहे हैं कि किसी भी तरह से किसी को कोई परेशानी ना हो. इसके लिए वह मास्क पहनना, हाथों को सैनिटाइज करना और बार-बार हाथों को धोते रहते हैं. वहीं, वह पूरे दिन में 100 से ₹200 ही कमा पाते हैं. वह भी तब जब यात्रियों से सामान उठाने की काफी मिन्नतें करते हैं.

मुकेश ने परिवार को गांव भेजा

मुकेश बताते हैं कि पहले सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अब तीन ट्रेनें चलने के बाद भी काम धाम बिल्कुल नहीं है. ऊपर से बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस और परिवार में खाने-पीने का खर्चा है. इस परिस्थितियों से जूझते हुए उन्होंने अपने बच्चे, माता-पिता और पत्नी को गोरखपुर भेज दिया है. वहां पर वह सभी खेती का काम करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

कुली का काम विरासत में मिला है, ऐसे तो नहीं छोड़ा जाएगा

मुकेश कुमार यादव ने कहा कि लगभग 45 कुली देहरादून रेलवे स्टेशन पर काम करते थे, लेकिन आज उनके अलावा कोई यहां पर आने के लिए तैयार नहीं है. किसी ने कंपनी में काम करना शुरू कर दिया है तो कोई किसी संस्थान में काम कर रहा है. ऐसे ही तमाम कुलियों का जीवन यापन हो रहा है, लेकिन मुकेश बताते हैं कि कुछ भी हो जाए वह अपने दादा और पिता की विरासत को ऐसे नहीं छोड़ेंगे. मुकेश को गर्व है कि वह अपने पिता का काम संभाल रहे हैं. वो कहते हैं कि कुछ भी हो जाए, लेकिन वह कुली का काम नहीं छोड़ेंगे.

मुकेश को सब कुछ सामान्य होने की उम्मीद

राजधानी देहरादून का रेलवे स्टेशन सुनसान होने की वजह से वहां पर मौजूद तमाम लोगों पर इसका असर साफ देखा जा सकता है. लगभग 3 घंटे रेलवे स्टेशन पर बिताने के बाद ईटीवी भारत को सिर्फ मुकेश ही वहां पर ऐसे व्यक्ति मिले जो इस आस में अभी भी वहां पर मौजूद हैं कि आज नहीं तो कल सब कुछ ठीक हो जाएगा और पहले की तरह ही जिंदगी फिर से पटरी पर दौड़ेगी.

देहरादून: अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कुली' ने पहली बार मुसाफिरों का बोझ उठाने वाले इस तबके के संघर्ष को सबके सामने रखा. लेकिन इतने साल बीतने के बाद बाद भी कुलियों की जिंदगी नहीं बदली. कोरोना और तीन महीने के लॉकडाउन ने उन्हें रोजी-रोटी के लिए मोहताज कर दिया है. देहरादून रेलवे स्टेशन की रौनक याद कर आज भी कुली नंबर 145 की आंखें डबडबा जाती हैं. कोरोना काल से पहले प्लेटफॉर्म पर ट्रेन का इंतजार, ट्रेन के रुकने से पहले ही दौड़ लगाकर यात्रियों के सामान उठाने की आपाधापी अब महज यादों में सिमट गई है.

कोरोना के समय दून रेलवे स्टेशन पर मौजूद एकमात्र कुली की दर्द भरी दास्तां.

कुछ दिन और गाड़ियां नहीं चलीं तो ये कष्ट और बढ़ जाएगा. ये हताशा भरे शब्द देहरादून रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के सामान का बोझ उठाने वाले कुली मुकेश कुमार यादव के हैं. जो काम न मिलने से परिवार की आजीविका को लेकर चिंतित हैं. सिर पर दुनिया का बोझ उठाने वाले मुकेश कुमार यादव अब मुसीबतों के बोझ तले दबते जा रहे हैं. देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुल 45 कुली काम करते हैं. लेकिन, इस संकट की घड़ी में आपको मुकेश देहरादून रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर रोटियों के लिए जूझते मिल जाएंगे.

लॉकडाउन से पहले देहरादून रेलवे स्टेशन से 30 ट्रेनें रवाना होती थी. लेकिन आज महज तीन ट्रेनों का ही संचालन हो रहा है. जिसकी वजह से मुकेश कुमार रोटी के मोहताज हो गए हैं. पिछले कई सालों से देहरादून रेलवे स्टेशन पर काम कर रहे गोरखपुर के मुकेश कुमार यादव कहते हैं 'रोजाना घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है. सब्जियों तक के पैसे के लिए उधारी लेना पड़ रहा है. 10 लोगों के परिवार को अकेला चलता हूं, पिछले कई महीने कष्टों से गुजर रहे हैं और कोई पूछने वाला नहीं है'. तो पढ़िए देहरादून रेलवे स्टेशन के कुली नंबर-145 की कहानी, मुकेश की जुबानी.

रेलवे स्टेशन पर पसरा सन्नाटा

ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून रेलवे स्टेशन का रुख किया तो चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. कोरोना महामारी से पहले रेलवे स्टेशन पर लगभग 45 लोग कुली का काम करते थे, लेकिन कोरोना काल में आए रोजी-रोटी के संकट ने इन्हें यह काम छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अब यहां एकमात्र मुकेश कुमार यादव नाम का कुली ही काम करता है.

ट्रेन के इंतजार में कुली

रेलवे स्टेशन पर लोगों का इंतजार कर रहे मुकेश के चेहरे पर ट्रेन आने के बाद थोड़ी सी मुस्कान जरूर आती है. वहीं, कोरोना को लेकर सभी यात्रियों को एक लाइन में खड़ा करके बारी-बारी से बाहर निकाला जाता है. मुकेश लाइन के एक तरफ खड़े होकर हर यात्री से उसका सामान उठाने के बारे में पूछता है, लेकिन मुकेश को अधिकतर लोग ना में जवाब देते हैं. हालांकि, मुकेश इस बात से जरा भी निराश नहीं होता. वहीं, अगली सुबह होने के इंतजार में मुकेश का समय फिलहाल बीत रहा है.

ये भी पढ़ें: इंदिरा ने दिया आश्वासन तो 45 दिन बाद टूटा फीस माफी का अनशन

मुकेश देहरादून में बने कुली

मुकेश से बातचीत में मालूम हुआ कि वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का रहने वाला है और बीते 10 सालों से वह देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहा है. मुकेश बताते हैं कि वह इंटर पास हैं और साथ में आईटीआई भी की हुई है. पुलिस भर्ती के सिलसिले में वह घर से बाहर निकले, लेकिन 3 से 4 बार मेरिट में सिलेक्शन ना होने की वजह से उन्होंने अपने पिताजी का काम संभाल लिया.

कोरोना महामारी जैसा समय नहीं देखा

मुकेश कुमार यादव के पिता ने देहरादून रेलवे स्टेशन पर लगभग 40 सालों तक कुली का काम किया हैं. मुकेश बताते हैं कि आज जब वह अपने पिताजी से बात करते हैं तो उनके पिता बताते हैं कि उन्होंने 40 साल में ऐसा समय कभी नहीं देखा जैसा कि कोविड-19 महामारी के समय है. मुकेश के घर में 10 लोग रहते हैं और कमाने वाले सिर्फ वह एक हैं.

पिता के काम को मुकेश ने संभाला

मुकेश बताते हैं कि जो उनके पास बिल्ला है वह उनके पिताजी का है और उनके पिताजी ने अपने पिताजी से लिया था. कोरोना महामारी होने की वजह से अब लोग उन्हें सामान जान बूझकर नहीं देते. लोगों के मन में डर है कि कहीं अगर वह उनका सामान छुएगा तो कहीं वह संक्रमित ना हो जाए.

दिनभर में सौ दो सौ की कमाई

मुकेश बताते हैं कि वैसे वह इस बात का पूरा ध्यान रख रहे हैं कि किसी भी तरह से किसी को कोई परेशानी ना हो. इसके लिए वह मास्क पहनना, हाथों को सैनिटाइज करना और बार-बार हाथों को धोते रहते हैं. वहीं, वह पूरे दिन में 100 से ₹200 ही कमा पाते हैं. वह भी तब जब यात्रियों से सामान उठाने की काफी मिन्नतें करते हैं.

मुकेश ने परिवार को गांव भेजा

मुकेश बताते हैं कि पहले सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अब तीन ट्रेनें चलने के बाद भी काम धाम बिल्कुल नहीं है. ऊपर से बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस और परिवार में खाने-पीने का खर्चा है. इस परिस्थितियों से जूझते हुए उन्होंने अपने बच्चे, माता-पिता और पत्नी को गोरखपुर भेज दिया है. वहां पर वह सभी खेती का काम करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

कुली का काम विरासत में मिला है, ऐसे तो नहीं छोड़ा जाएगा

मुकेश कुमार यादव ने कहा कि लगभग 45 कुली देहरादून रेलवे स्टेशन पर काम करते थे, लेकिन आज उनके अलावा कोई यहां पर आने के लिए तैयार नहीं है. किसी ने कंपनी में काम करना शुरू कर दिया है तो कोई किसी संस्थान में काम कर रहा है. ऐसे ही तमाम कुलियों का जीवन यापन हो रहा है, लेकिन मुकेश बताते हैं कि कुछ भी हो जाए वह अपने दादा और पिता की विरासत को ऐसे नहीं छोड़ेंगे. मुकेश को गर्व है कि वह अपने पिता का काम संभाल रहे हैं. वो कहते हैं कि कुछ भी हो जाए, लेकिन वह कुली का काम नहीं छोड़ेंगे.

मुकेश को सब कुछ सामान्य होने की उम्मीद

राजधानी देहरादून का रेलवे स्टेशन सुनसान होने की वजह से वहां पर मौजूद तमाम लोगों पर इसका असर साफ देखा जा सकता है. लगभग 3 घंटे रेलवे स्टेशन पर बिताने के बाद ईटीवी भारत को सिर्फ मुकेश ही वहां पर ऐसे व्यक्ति मिले जो इस आस में अभी भी वहां पर मौजूद हैं कि आज नहीं तो कल सब कुछ ठीक हो जाएगा और पहले की तरह ही जिंदगी फिर से पटरी पर दौड़ेगी.

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