लखनऊ : राजस्थान के उदयपुर में हुए नव संकल्प शिविर से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस पार्टी अब प्रदेश में युवाओं को तरजीह देने वाली है. कांग्रेस के चिंतन शिविर में युवाओं को संगठन में तरजीह देने की वकालत राहुल गांधी की तरफ से की गई है. लिहाजा, अब सभी प्रदेशों में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई को यह दायित्व दिया जाएगा कि वह अपने साथ ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ें उन्हें कांग्रेस पार्टी के संगठन में जगह दी जाए.
खासतौर पर वर्ष 2024 को देखते हुए पार्टी चाहेगी कि वह लोकसभा चुनावों में अपनी स्थिति को मजबूत करे, क्योंकि लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस पार्टी का अभी से तैयारी में जुट जाना जरूरी है. माना जा रहा है कि पार्टी के संगठन में बुजुर्गों पर युवाओं को इसलिए महत्व दिया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा पार्टी के साथ जुड़ सकें और इसका फायदा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिल सके. पार्टी ने युवाओं को लेकर इसलिए मास्टर स्ट्रोक खेला है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में युवाओं की संख्या काफी ज्यादा है और पार्टी की हालत को देखते हुए हाल के दिनों में तमाम युवा कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने ही मुंह मोड़ लिया था. अब जब उन्हें संगठन में तरजीह मिलेगी, तो फिर से युवा पार्टी के साथ जुड़ेंगे.
गौरतलब है कि हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा है. इस चुनाव में पार्टी को महज दो विधान सभा सीटें प्राप्त हुई हैं. यह दोनों सीटें भी व्यक्तिगत प्रभाव वाली मानी जाती हैं. इनमें से एक सीट आराधना मिश्रा 'मोना' की है, जो अपने पिता प्रमोद तिवारी की परंपरागत सीट से जीत कर आई हैं. इस सीट पर प्रमोद तिवारी और मोना लगभग चार दशक से काबिज हैं और उन्हें कोई भी पराजित नहीं कर सका है. वहीं दूसरे विधायक हैं वीरेंद्र चौधरी, जो फरेंदा से चुनकर आए हैं. इनकी जीन महज 1087 वोटों से हुई है. हालांकि इनका भी अपना आधार है और वीरेंद्र चौधरी अपने क्षेत्र में काफी समाज सेवा के कार्य करते रहते हैं. ऐसे में साफ है कांग्रेस उप्र में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है.
ऐसी स्थिति में राहुल गांधी द्वारा युवाओं को ज्यादा तरजीह देने की पैरोकारी ठीक ही लगती है, क्योंकि चुनाव में बूथ स्तर पर काम करने के लिए युवाओं की ही जरूरत होती है. चूंकि प्रदेश में नया अध्यक्ष भी चुना जाना है, ऐसे में माना जा रहा है कि नया प्रदेश अध्यक्ष नए संगठन में युवाओं की ताकत को समझेगा और उन्हें ज्यादा प्रतिनिधित्व देकर अपनी वापसी की डगर भी आसान करेगा.
हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब पार्टी ने युवाओं पर दांव लगाया है. इससे पहले भी युवाओं को पार्टी में तरजीह मिली है. बीते विधानसभा चुनावों में प्रियंका गांधी के साथ युवा ब्रिगेड ही मैदान में थी, किंतु समस्या यह है कि ज्यादातर युवा गांधी परिवार के सदस्यों को ही घेरे रहते हैं. ऐसे में निचले स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का टोटा बना रहता है. यदि कांग्रेस पार्टी अपनी गलतियों से सबक लेकर नए ढांचे को बूथ स्तर तक मजबूत करने में कामयाब होती है, तो निश्चित रूप से उसे लोकसभा चुनावों में कुछ लाभ मिलेगा.
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