लखनऊ: जिंदगी जीने की जद्दोजहद में वैसा ही व्यक्ति परेशान था, लेकिन कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन ने जिंदगी की गाड़ी पर ब्रेक लगा दी है. लॉकडाउन तो हट गया अनलॉक भी आ गया, लेकिन जिंदगी पटरी पर अब तक नहीं आ पाई है. मध्यम वर्गीय निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की अगर बात की जाए तो उनके ऊपर अतिरिक्त बोझ और पड़ गया है. पहले जिंदगी जीने के लिए कमा रहे थे अब जिंदा रहने के लिए कमाना जरूरी हो गया है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए लोगों ने बताया कि परिवार की आमदनी तो सीमित है, लेकिन कोरोना काल में खर्चे असीमित हो गए हैं. लोगों का कहना है कि पहले ही इस कोरोना की वजह से डर बना हुआ है. अब जिंदगी जीने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है. किसी तरह से पहले घर चल रहा था, लेकिन अब महामारी की वजह से खर्च बढ़ गए हैं. मास्क, हैंड सेनीटाइजर, ड्राई फ्रूट्स, इम्यूनिटी बूस्टर आदि जिंदगी की ज़रूरत सी हो गई है. जिसे खरीदना मजबूरी भी है और डर भी.
वहीं मेडिकल शॉप विक्रेता ने बताया कि महामारी के शुरू होने के बाद लोग जागरूक हुए हैं और खुद से ही मास्क हैंड सेनीटाइजर इत्यादि खरीदने लग गए हैं. आलम यह है कि मास्क और सैनिटाइजर की डिमांड और सप्लाई चैन टूटने लग जाती है.
लोग जिंदगी तो जी रहे थे, लेकिन महामारी ने जिंदगी की गाड़ी पर ब्रेक लगा दिया है. लोगों को उम्मीद है कि अच्छा समय आएगा, लेकिन यह समय ही बताएगा कि अच्छा समय कब आएगा.