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'एडल्ट्स की तुलना में छोटे बच्चों को अपेंडिक्स व हर्निया की समस्याएं'

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 9, 2023, 7:01 PM IST

Updated : Dec 9, 2023, 7:37 PM IST

पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'बच्चे अधिक अपेंडिक्स और हर्निया (problems with appendix and hernia) से पीड़ित होते हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि बच्चे साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख पाते हैं.

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पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. श्रीकेश सिंह ने दी जानकारी

लखनऊ : आमतौर पर हम सभी यह जानते हैं कि एडल्ट्स में अपेंडिक्स की संभावनाएं अधिक होती हैं, जबकि ऐसा नहीं है. लोहिया संस्थान के मातृ एवं शिशु रेफरल चिकित्सालय में प्रदेश भर से मरीज इलाज के लिए आते हैं. अस्पताल के एमएस व पीडियाट्रिक सर्जन डॉ श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'एडल्ट्स की तुलना में छोटे बच्चों को अपेंडिक्स और हर्निया की समस्याएं अधिक होती हैं. जब भी किसी छोटे बच्चे को कोई गंभीर बीमारी होती है तो आमतौर पर डॉक्टर उसे ऑपरेशन करने की बजाय टाल देते हैं. ऐसा ही हुआ था गोंडा के 12 वर्षीय शुभम के साथ. सिर्फ शुभम ही नहीं बहुत सारे ऐसे केस रेफरल चिकित्सालय में आते हैं जो बहुत बुरी स्थिति में होते हैं.'



साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख पाते बच्चे : पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'बच्चे अधिक अपेंडिक्स और हर्निया से पीड़ित होते हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि बच्चे साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख पाते हैं. बच्चों की साफ-सफाई का ध्यान पेरेंट्स को भली-भांति तरीके से रखना चाहिए, क्योंकि बच्चे छोटे हैं उन्हें जानकारी नहीं होती है कि हाथों में कितने कीटाणु होते हैं. वह खेलते हैं या फिर स्कूल से आते जाते हैं. इस दौरान वह बहुत सी चीजों को छुए हुए होते हैं, ऐसे में किसी न किसी तरह उनका हाथ मुंह पर जाता ही है. उसी हाथ से तमाम चीजों को खाते हैं, जो कि उनके पेट में जाता है यही सबसे बड़ा कारण है कि बच्चों में अपेंडिक्स और हर्निया की शिकायत अधिक होती है.'

अपेंडिक्स के लक्षण
- अधिक ठंड लगना.
- कब्ज होना.
- दस्त होना.
- बुखार आना.
- भूख न लगना.
- मतली जैसा लगना.
- शॉक लगाना.
- उल्टी होना.
- अत्यधिक पेट में दर्द होना.

अपेंडिक्स से पीड़ित था बच्चा : उन्होंने बताया कि 'गोंडा जिला का रहने वाला संतोष पेशे से एक मजदूर है. उनका 12 वर्ष का बेटा शुभम जो कि अपेंडिक्स से पीड़ित था. छह महीने पहले बच्चे के पिता उसे दिखाने के लिए मातृ एवं शिशु रेफरल चिकित्सालय लेकर आए थे, जहां बच्चे की स्थिति देखकर जांच कराई गई. जांच में बच्चों के पेट में अपेंडिक्स निकली जो बुरी तरह से सड़ गई थी और धीरे-धीरे यह बच्चे के लिए घातक साबित हो रहा था, ऐसी स्थिति में गोंडा के जिला अस्पताल में बच्चे के पिता ने दिखाया था, लेकिन वहां पर डॉक्टरों ने कहा कि जब तक बच्चा थोड़ा बड़ा नहीं हो जाता तब तक उसका ऑपरेशन न कराएं. इस चक्कर में बच्चे का अपेंडिक्स बुरी तरह से सड़ चुका था, जिसके चलते बच्चा भी रोज दर्द सहता था. जैसे ही बच्चे की जांच रिपोर्ट आई वैसे ही बच्चे के ऑपरेशन के लिए तारीख निर्धारित की गई. उसके हिसाब से बच्चे का ऑपरेशन बीते नवंबर महीने में कर दिया गया. उन्होंने बताया कि बच्चे के बड़े होने का इंतजार करते तो बहुत देर हो चुकी होती. इन मामलों में इंतजार करना उचित नहीं होता है. बच्चे का ऑपरेशन सफल रहा. इस समय वह पूरी तरह से स्वस्थ है.'



कई अस्पतालों के लगाए चक्कर : उन्होंने बताया कि 'अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 150 से 200 मरीज दिखाने के लिए आते हैं. ऐसे में दस पांच केस ऐसे आते हैं, जिनकी स्थिति बहुत ज्यादा खराब होती है. क्योंकि, यह रेफरल चिकित्सालय है तो यहां पर ज्यादातर रेफर किए हुए केस ही आते हैं. ओपीडी में दिखाने के लिए आए गोंडा के संतोष कुमार ने बताया कि 'जिस समय वह इस चिकित्सालय में दिखाने के लिए आए उस समय उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी कि मेरा बच्चा ठीक हो पाएगा. क्योंकि इससे पहले कई अस्पतालों के चक्कर लगा चुके थे, लेकिन कहीं भी बच्चे का सही इलाज नहीं हो पा रहा था. उन्होंने बताया कि यहां पर पीडियाट्रिक सर्जन डॉ श्रीकेश सिंह ने बच्चे को ओपीडी में देखा. फिर उसकी स्थिति देखते हुए सारी जांच कराकर ऑपरेशन की तारीख दे दी. ऑपरेशन सफल रहा. कुछ दिन भर्ती रहने के बाद बच्चे को लेकर गोंडा चले गए. 25 दिन बाद दोबारा ओपीडी में बच्चे को दिखाने के लिए लाए हैं. विशेषज्ञ का कहना है कि अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है.'

भ्रम को करना होगा दूर : डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'सबसे पहले इस भ्रम को दूर करना होगा कि बच्चा छोटा है तो उसका ऑपरेशन नहीं किया जा सकता है. पहले के समय में यह सारी चीज ठीक थीं. क्योंकि, उस समय बहुत सारी सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन आज एक्सपर्ट्स हर चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार हैं. इसके लिए नई-नई तकनीकें और मशीनों के जरिए मरीज का ऑपरेशन होता है. उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों का भी ऑपरेशन होता है. इसके लिए पीडियाट्रिक सर्जन होने चाहिए जो कि जिला अस्पतालों में नहीं होते हैं और जो नीचे अस्पतालों में होते हैं, वह रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, जिसके चलते वह बच्चों का ऑपरेशन करने से हिचकते हैं. अपेंडिसाइटिस अधिकतर 5 से 20 वर्ष के बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है. 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 65 फीसदी बच्चों में अपेंडिक्स फटता है और 2 वर्ष से कम उम्र के 90 फीसदी तक बच्चों में ऐसा होता है. उन्होंने कहा कि यह बच्चों में अधिक होती है.'

डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'अपेंडिक्स एक छोटी थैली होती है जो बड़ी आंत के खुले वाले भाग से जुड़ी होती है. अपेंडिसाइटिस अपेंडिक्स की सूजन है. यह आपातकालीन पेट की शल्य चिकित्सा के सबसे सामान्य कारणों में से एक है. अपेंडिसाइटिस का कारण यह आमतौर पर तब होता है जब अपेंडिक्स मल, बाहरी वस्तु या शायद ही कभी, एक ट्यूमर द्वारा अवरुद्ध हो जाता है.'

यह भी पढ़ें : आरोग्य मेले से मरीजों को मिल रही बेहतर सुविधाएं, आसान हुआ ऑपरेशन

यह भी पढ़ें : हैरतअंगेज : हर्निया का ऑपरेशन कराने पहुंचे शख्स के अंदर निकली बच्चेदानी, डॉक्टर भी हैरान

पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. श्रीकेश सिंह ने दी जानकारी

लखनऊ : आमतौर पर हम सभी यह जानते हैं कि एडल्ट्स में अपेंडिक्स की संभावनाएं अधिक होती हैं, जबकि ऐसा नहीं है. लोहिया संस्थान के मातृ एवं शिशु रेफरल चिकित्सालय में प्रदेश भर से मरीज इलाज के लिए आते हैं. अस्पताल के एमएस व पीडियाट्रिक सर्जन डॉ श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'एडल्ट्स की तुलना में छोटे बच्चों को अपेंडिक्स और हर्निया की समस्याएं अधिक होती हैं. जब भी किसी छोटे बच्चे को कोई गंभीर बीमारी होती है तो आमतौर पर डॉक्टर उसे ऑपरेशन करने की बजाय टाल देते हैं. ऐसा ही हुआ था गोंडा के 12 वर्षीय शुभम के साथ. सिर्फ शुभम ही नहीं बहुत सारे ऐसे केस रेफरल चिकित्सालय में आते हैं जो बहुत बुरी स्थिति में होते हैं.'



साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख पाते बच्चे : पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'बच्चे अधिक अपेंडिक्स और हर्निया से पीड़ित होते हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि बच्चे साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख पाते हैं. बच्चों की साफ-सफाई का ध्यान पेरेंट्स को भली-भांति तरीके से रखना चाहिए, क्योंकि बच्चे छोटे हैं उन्हें जानकारी नहीं होती है कि हाथों में कितने कीटाणु होते हैं. वह खेलते हैं या फिर स्कूल से आते जाते हैं. इस दौरान वह बहुत सी चीजों को छुए हुए होते हैं, ऐसे में किसी न किसी तरह उनका हाथ मुंह पर जाता ही है. उसी हाथ से तमाम चीजों को खाते हैं, जो कि उनके पेट में जाता है यही सबसे बड़ा कारण है कि बच्चों में अपेंडिक्स और हर्निया की शिकायत अधिक होती है.'

अपेंडिक्स के लक्षण
- अधिक ठंड लगना.
- कब्ज होना.
- दस्त होना.
- बुखार आना.
- भूख न लगना.
- मतली जैसा लगना.
- शॉक लगाना.
- उल्टी होना.
- अत्यधिक पेट में दर्द होना.

अपेंडिक्स से पीड़ित था बच्चा : उन्होंने बताया कि 'गोंडा जिला का रहने वाला संतोष पेशे से एक मजदूर है. उनका 12 वर्ष का बेटा शुभम जो कि अपेंडिक्स से पीड़ित था. छह महीने पहले बच्चे के पिता उसे दिखाने के लिए मातृ एवं शिशु रेफरल चिकित्सालय लेकर आए थे, जहां बच्चे की स्थिति देखकर जांच कराई गई. जांच में बच्चों के पेट में अपेंडिक्स निकली जो बुरी तरह से सड़ गई थी और धीरे-धीरे यह बच्चे के लिए घातक साबित हो रहा था, ऐसी स्थिति में गोंडा के जिला अस्पताल में बच्चे के पिता ने दिखाया था, लेकिन वहां पर डॉक्टरों ने कहा कि जब तक बच्चा थोड़ा बड़ा नहीं हो जाता तब तक उसका ऑपरेशन न कराएं. इस चक्कर में बच्चे का अपेंडिक्स बुरी तरह से सड़ चुका था, जिसके चलते बच्चा भी रोज दर्द सहता था. जैसे ही बच्चे की जांच रिपोर्ट आई वैसे ही बच्चे के ऑपरेशन के लिए तारीख निर्धारित की गई. उसके हिसाब से बच्चे का ऑपरेशन बीते नवंबर महीने में कर दिया गया. उन्होंने बताया कि बच्चे के बड़े होने का इंतजार करते तो बहुत देर हो चुकी होती. इन मामलों में इंतजार करना उचित नहीं होता है. बच्चे का ऑपरेशन सफल रहा. इस समय वह पूरी तरह से स्वस्थ है.'



कई अस्पतालों के लगाए चक्कर : उन्होंने बताया कि 'अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 150 से 200 मरीज दिखाने के लिए आते हैं. ऐसे में दस पांच केस ऐसे आते हैं, जिनकी स्थिति बहुत ज्यादा खराब होती है. क्योंकि, यह रेफरल चिकित्सालय है तो यहां पर ज्यादातर रेफर किए हुए केस ही आते हैं. ओपीडी में दिखाने के लिए आए गोंडा के संतोष कुमार ने बताया कि 'जिस समय वह इस चिकित्सालय में दिखाने के लिए आए उस समय उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी कि मेरा बच्चा ठीक हो पाएगा. क्योंकि इससे पहले कई अस्पतालों के चक्कर लगा चुके थे, लेकिन कहीं भी बच्चे का सही इलाज नहीं हो पा रहा था. उन्होंने बताया कि यहां पर पीडियाट्रिक सर्जन डॉ श्रीकेश सिंह ने बच्चे को ओपीडी में देखा. फिर उसकी स्थिति देखते हुए सारी जांच कराकर ऑपरेशन की तारीख दे दी. ऑपरेशन सफल रहा. कुछ दिन भर्ती रहने के बाद बच्चे को लेकर गोंडा चले गए. 25 दिन बाद दोबारा ओपीडी में बच्चे को दिखाने के लिए लाए हैं. विशेषज्ञ का कहना है कि अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है.'

भ्रम को करना होगा दूर : डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'सबसे पहले इस भ्रम को दूर करना होगा कि बच्चा छोटा है तो उसका ऑपरेशन नहीं किया जा सकता है. पहले के समय में यह सारी चीज ठीक थीं. क्योंकि, उस समय बहुत सारी सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन आज एक्सपर्ट्स हर चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार हैं. इसके लिए नई-नई तकनीकें और मशीनों के जरिए मरीज का ऑपरेशन होता है. उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों का भी ऑपरेशन होता है. इसके लिए पीडियाट्रिक सर्जन होने चाहिए जो कि जिला अस्पतालों में नहीं होते हैं और जो नीचे अस्पतालों में होते हैं, वह रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, जिसके चलते वह बच्चों का ऑपरेशन करने से हिचकते हैं. अपेंडिसाइटिस अधिकतर 5 से 20 वर्ष के बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है. 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 65 फीसदी बच्चों में अपेंडिक्स फटता है और 2 वर्ष से कम उम्र के 90 फीसदी तक बच्चों में ऐसा होता है. उन्होंने कहा कि यह बच्चों में अधिक होती है.'

डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि 'अपेंडिक्स एक छोटी थैली होती है जो बड़ी आंत के खुले वाले भाग से जुड़ी होती है. अपेंडिसाइटिस अपेंडिक्स की सूजन है. यह आपातकालीन पेट की शल्य चिकित्सा के सबसे सामान्य कारणों में से एक है. अपेंडिसाइटिस का कारण यह आमतौर पर तब होता है जब अपेंडिक्स मल, बाहरी वस्तु या शायद ही कभी, एक ट्यूमर द्वारा अवरुद्ध हो जाता है.'

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Last Updated : Dec 9, 2023, 7:37 PM IST
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