लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को ट्वीट करके कहा कि चुनाव आयोग को तो हमारी सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए क्योंकि पिछले चार दशक में ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोकसभा चुनाव में माफियाओं का सफाया हो गया है. कहीं कोई नाम नहीं सुनाई दे रहा.
चुनाव आयोग ने सीएम योगी पर लगाया था प्रतिबंध
- चुनाव आयोग द्वारा मुख्यमंत्री पर 72 घंटे का प्रतिबंध लगाए जाने के बाद शुक्रवार सुबह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी सभाएं शुरू की.
- चुनाव आयोग के प्रतिबंध के दौरान सीएम योगी का टि्वटर भी खामोश रहा लेकिन शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी सभाओं से लेकर टि्वटर तक सक्रिय दिखे.
- सीएम योगी ने ट्वीट करके उत्तर प्रदेश की जनता को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि उनकी सरकार में माफियागिरी कम हुई है. कानून-व्यवस्था दुरुस्त हुआ है.
- चुनावी विश्लेषकों का भी मानना है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में खासकर उत्तर प्रदेश में जेल से माफिया चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. चुनाव में माफियाओं का सीधे दखल कम होना यूपी के लिए ही नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिए ही अच्छा है. उनका मानना है कि लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में एकदम कानून-व्यवस्था दुरुस्त हो गई है.
सीएम योगी के ट्वीट में क्या है खास
सीएम योगी ने ट्वीट करके कहा कि चुनाव आयोग को हमारी सरकार का शुक्रगुजार होना चाहिए कि पिछले चार दशक में ऐसा पहली बार हो रहा कि लोकसभा चुनाव से माफियाओं का सफाया हो गया है,कहीं कोई नाम नहीं सुनाई दे रहा. पहले ये जेल से या तो चुनाव लड़ते थे या लड़ाते थे. अब सबकी दुकान बंद हो गयी है, चुपचाप जेल की रोटी तोड़ रहे. लोकसभा चुनाव की दृष्टि से मुख्यमंत्री का यह ट्वीट काफी अहम मायने रखता है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमेशा माफियाओं के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने माफिया गिरी के खिलाफ राजनीति में कदम रखने के साथ ही लड़ाई शुरू कर दी थी. इस लड़ाई को वह आज भी जारी रखे हुए हैं.
-नरेंद्र सिंह राणा, प्रदेश प्रवक्ता , बीजेपी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो ट्वीट किया है उसमें काफी सच्चाई दिख रही है, लेकिन यह एक पक्ष है. दूसरे पक्ष में देखा जाए तो ऐसा भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश या देश में कानून व्यवस्था एकदम चुस्ती एवं दुरुस्त है और ना ही माफिया समाप्त हो गए हैं. हां यह जरूर है कि इस बार जेल से माफिया चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. यह उत्तर प्रदेश के लिए शुभ संकेत है.
-अशोक राजपूत, चुनावी विशेषज्ञ