लखनऊ : जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण मौसम इन दिनों तेजी से बदल रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो पहले जो गर्मी मई-जून में होती थी. वह अब मार्च के महीने में होनी शुरू हो जाती है. वर्तमान में धूप काफी चटक हो रही है. ऐसे मार्च महीने में अधिकतम तापमान 35 से 40 डिग्री जाएगा. पहले अप्रैल तक मौसम ठंडा बना रहता था और भीषण गर्मी मई-जून में पड़ती थी, लेकिन अब सीजन में बदलाव हुआ है. अबकी बार फरवरी महीने के अंत से ही गर्मी जैसा एहसास शुरू हो गया है और इस समय चिलचिलाती धूप के कारण गर्मी से लोगों का बुरा हाल है. बीरबल साहनी पुनर्विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है. कि जलवायु परिवर्तन इसमें सबसे अहम किरदार निभा रहा है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविभाग के प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने बताया कि प्रकृति के कई स्वरूप ऐसे होते हैं, जिसको समझना बेहद मुश्किल है. शायद यही वजह है कि हम हर बार सोचते हैं कि आखिर इस बार प्रकृति कौन सा रंग दिखा रही है. सर्दियों में गर्मी के जैसे हालात तो वहीं गर्मियों में और ज्यादा गर्मी दिखाती है कि प्रकृति में कुछ तो बदलाव हो रहा है. अल नीनो की वजह से इस बार बारिश कम होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. असल में अल नीनो प्रशांत महासागर में आने वाला एक तरह का मौसमी परिवर्तन या बदलाव है. इसकी वजह से सर्दियों में गर्मी और गर्मी में और जायदा गर्मी रहती है. वहीं, बारिश की संभावना भी इसमें कम हो जाती है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक चिंता का विषय है. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर आम पब्लिक को भी जागरूक होना चाहिए. धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए हम सभी को प्राकृतिक के हित में पेड़ पौधे रोपने होंगे. जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ रही हैं. भीषण गर्मी और कड़ाके की सर्दी इसका ही प्रभाव है.
प्रकृति के अनुकूल आचरण पर दें ध्यान : पर्यावरण विशेषज्ञ वीपी श्रीवास्तव ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन पर्यावरण विनाश और जलवायु संकट का कारण बना है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान मानव के लिए संकट पैदा कर रहा है. जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों का कारण बना है. वैश्विक प्रतिबद्धता व सामूहिक प्रयासों से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों व पर्यावरण प्रदूषण को रोक पाना संभव हो सकेगा. प्रकृति के अनुकूल आचरण-व्यवहार ही आपदाओं से बचा सकेगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं. ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं. ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं. ऐसे में इन पौधों को कांच के एक बंद घर में रखा जाता है और कांच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है. यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है. ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है. सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.
Experts Opinion on Rising Heat : जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण बढ़ रही गर्मी, मार्च-अप्रैल में बिगड़ेंगे हालात - बीरबल साहनी पुनर्विज्ञान संस्थान
लखनऊ में अप्रैल 2022 में 40-45 डिग्री सेल्सियस की तुलना में अप्रैल 2021 में अधिकतम तापमान 40-42 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. वर्ष 2022 में 1 अप्रैल से 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान 2021 में 5 अप्रैल के विपरीत दर्ज किया गया. ऐसा ही उच्च तापमान 2021 में 11 दिनों की तुलना में 2022 में 27 दिनों के लिए अनुभव किया गया.
लखनऊ : जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण मौसम इन दिनों तेजी से बदल रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो पहले जो गर्मी मई-जून में होती थी. वह अब मार्च के महीने में होनी शुरू हो जाती है. वर्तमान में धूप काफी चटक हो रही है. ऐसे मार्च महीने में अधिकतम तापमान 35 से 40 डिग्री जाएगा. पहले अप्रैल तक मौसम ठंडा बना रहता था और भीषण गर्मी मई-जून में पड़ती थी, लेकिन अब सीजन में बदलाव हुआ है. अबकी बार फरवरी महीने के अंत से ही गर्मी जैसा एहसास शुरू हो गया है और इस समय चिलचिलाती धूप के कारण गर्मी से लोगों का बुरा हाल है. बीरबल साहनी पुनर्विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है. कि जलवायु परिवर्तन इसमें सबसे अहम किरदार निभा रहा है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविभाग के प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने बताया कि प्रकृति के कई स्वरूप ऐसे होते हैं, जिसको समझना बेहद मुश्किल है. शायद यही वजह है कि हम हर बार सोचते हैं कि आखिर इस बार प्रकृति कौन सा रंग दिखा रही है. सर्दियों में गर्मी के जैसे हालात तो वहीं गर्मियों में और ज्यादा गर्मी दिखाती है कि प्रकृति में कुछ तो बदलाव हो रहा है. अल नीनो की वजह से इस बार बारिश कम होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. असल में अल नीनो प्रशांत महासागर में आने वाला एक तरह का मौसमी परिवर्तन या बदलाव है. इसकी वजह से सर्दियों में गर्मी और गर्मी में और जायदा गर्मी रहती है. वहीं, बारिश की संभावना भी इसमें कम हो जाती है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक चिंता का विषय है. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर आम पब्लिक को भी जागरूक होना चाहिए. धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए हम सभी को प्राकृतिक के हित में पेड़ पौधे रोपने होंगे. जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ रही हैं. भीषण गर्मी और कड़ाके की सर्दी इसका ही प्रभाव है.
प्रकृति के अनुकूल आचरण पर दें ध्यान : पर्यावरण विशेषज्ञ वीपी श्रीवास्तव ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन पर्यावरण विनाश और जलवायु संकट का कारण बना है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान मानव के लिए संकट पैदा कर रहा है. जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों का कारण बना है. वैश्विक प्रतिबद्धता व सामूहिक प्रयासों से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों व पर्यावरण प्रदूषण को रोक पाना संभव हो सकेगा. प्रकृति के अनुकूल आचरण-व्यवहार ही आपदाओं से बचा सकेगा. ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं. ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं. ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं. ऐसे में इन पौधों को कांच के एक बंद घर में रखा जाता है और कांच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है. यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है. ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है. सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.