लखनऊ: उत्पादन की लागत को कम करने और आय में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए किसानों के खेत में ऑन-फार्म ऑर्गेनिक इनपुट पर जैविक निवेश उत्पादन के लिए आईसीएआर-सीआईएसएच के वैज्ञानिक भारत के उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में जैविक उत्पादन तकनीकियों के प्रचार में प्रयासरत हैं. किसानों के खेतों पर स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों के साथ कृषि जैविक आदानों के उत्पादन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. किसानों को जैविक आदानों के उत्पादन, वर्मी कम्पोस्ट, जैव-संवर्धक, जीवामृत, अमृतपानी, बायोडायनामिक तरल कीटनाशी और काऊ पैट पिट बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया.
बुंदेलखंड के किसानों को किया गया प्रशिक्षित
संस्थान ने बांदा जिले के स्योन्ता सोंधा और खेरवा गांव में परम्परागत कृषि विकास योजना में पंजीकृत हुए किसानों को प्रशिक्षण दिया, जिसमें किसानों ने जैविक आदान उत्पादन के लिए तकनीकों का अभ्यास किया और सीखा. विभिन्न महत्वपूर्ण आदानों अर्थात, नीम की खली, स्प्रेयर, स्टिकी ट्रैप,नीम का तेल,वर्मी कम्पोस्ट बेड,जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक केंचुआ इत्यादि कृषकों के बीच ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए प्रदान किए गए.
जैविक खेती का बढ़ रहा महत्व
प्रदेश में जैविक खेती का महत्व बढ़ रहा है, क्योंकि उपभोक्ता अच्छे स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं और स्वस्थ्य खाद्य उत्पादों की मांग करते हैं. आईसीएआर-सीआईएसएच, पीकेवीवाई प्रोजेक्ट के तहत उत्तर प्रदेश में 211 किसानों के 10 जैविक किसानों के समूह के माध्यम से दो हेक्टेयर भूमि में जैविक खेती को बढ़ावा दे रहा है. किसानों में आत्मनिर्भरता पैदा करने के लिए, किसानों को विभिन्न फसलों में उपयोग के लिए जैविक आदानों, वर्मीकम्पोस्ट, बायोडायनामिक, जैव वर्धक और जैव कीटनाशक के खेतों पर उत्पादन के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है.
जागरूकता के साथ बढ़ सकती है आय
देश में अपनी जैविक उपज का विपणन सुनिश्चित करने के लिए किसानों की भूमि को पीजीएस के माध्यम से प्रमाणित किया जा रहा है. इसके अलावा किसानों को उनकी उपज के प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. ग्रेडिंग, पैकिंग, ब्रांडिंग और विपणन आदि पर विशेष ध्यान देकर जैविक उत्पाद का लाभ किसानों को प्राप्त होगा.
निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन ने बताया कि बाराबंकी, बांदा और हमीरपुर जिले में 10 जैविक किसान समूह के लिए ऑन-फार्म उत्पादन इकाई के साथ 10 प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं, जहां किसानों को जैविक आदानों के उत्पादन के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे कि जैविक आदानों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकें, जिससे उत्पादन लागत को नगण्य किया जा सके. जैविक खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ रहा है. इस पद्धति से खेती करने के लिए बागवानी संस्थान निरंतर जागरूक कर रहा है.