लखनऊ : प्रदेश को भिक्षामुक्ति दिलाने के लिए सरकार तमाम योजनाएं बनाती हैं, लेकिन धरातल पर इन योजनाओं का लाभ उन बच्चों को नहीं मिल पाता है जो कभी भिक्षावृत्ति में शामिल थे. सरकार की योजनाओं में तो बहुत सारी बातें शामिल हैं, लेकिन बच्चों को इन योजनाओं का लाभ अभी तक नहीं मिल पाया है. प्रदेश के 1995 बच्चों को बाल भिक्षावृत्ति और बाल श्रम के अंधकार से निकाल कर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का सपना दिखाया गया था. पर आज दो साल बीतने के बाद भी वे सरकारी योजनाओं के लाभ के इंतजार में अंधकारमय जीवन जी रहे हैं. जिसका जीता जागता उदाहरण बाल आयोग द्वारा भिक्षावृत्ति से छुटकारा दिलाए गए 1995 बच्चे हैं.
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के निर्देश पर बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से प्रदेश भर में 26 दिसंबर 2020 से 15 जनवरी 2021 को 20 दिवसीय अभियान चलाकर कुल 1995 बच्चों को बाल भिक्षावृत्ति और बाल श्रम से रेस्क्यू किया गया था. इन बच्चों को मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना और बाल सेवा योजना (सामान्य) से जोड़कर पुनर्वास कराया जाना था. बाल विकास विभाग की उदासीनता के कारण पिछले दो वर्ष से सरकारी योजनाओं के लाभ का इंतजार कर रहे 1995 में से अधिकांश बच्चे वापस अपनी पुरानी अंधकारमय जिंदगी में लौट गए हैं. शुरुआत इन बच्चों के प्रवास की कुछ दिनों तक व्यवस्था की गई, पर बाद में इन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. इस संबंध में मुख्यमंत्री के विशेष सचिव ने सात दिनों के अंदर श्रम विभाग और महिला कल्याण एवं बाल विकास विभाग से कार्रवाई का ब्यौरा मांगा है. बचपन बचाओ आंदोलन के स्टेट को-ऑर्डिनेटर सूर्य प्रताप मिश्र ने बताया कि रेस्क्यू किए गए बच्चों को सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिल पाता.
उत्तर प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य सुचिता चतुर्वेदी ने कहा कि दो साल पूर्व रेस्क्यू हुए 1995 बच्चों का भी योजना का लाभ न मिलने के कारण पुनर्वास नहीं हो सका है. विभागीय अधिकारी तो रिमाइंडर का जवाब तक नहीं देते. इस संबंध में हाल में मुख्यमंत्री से भी शिकायत की गई है. उन्होंने कहा कि अगर महिला कल्याण एवं बाल विकास आयोग ने अभी तक इस पर कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई है. इसी के कारण 1995 बच्चे मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना सामान्य के तहत 2500 हजार रुपये प्रति माह से वंचित रह गए हैं. राइट टू एजूकेशन के तहत गैर सरकारी स्कूलों में भी बच्चों को एडमिशन प्राप्त होता है. यह सभी बच्चे तमाम योजनाओं से वंचित है, कई बार ऐसा होता है कि यह बच्चे वापस फिर से भिक्षावृत्ति में घुस जाते हैं. उन्होंने कहा कि रेक्स्यू किए गए इन 1995 बच्चों के पुनर्वास को लेकर महिला कल्याण एवं बाल विकास विभाग का रवैय्या बेहद उदासीन है. बाल आयोग की ओर से दो वर्ष में आठ बार विभाग के प्रमुख सचिवों को मांग पत्र और रिमाइंडर भेजे गए. वर्ष 2022 में प्रत्येक दो माह पर रिमाइंडर भेजा गया, पर एक भी पत्र का जवाब तक नहीं दिया गया.