हैदराबाद: सूबे में सभी सियासी पार्टियां आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तैयारियों में जुटी हैं. गली-मोहल्लों में नेताओं की सियासी सभाओं व रैलियों पर चर्चाओं का बाजार गर्म है. हर वर्ग व जाति समुदाय के लोगों की अपनी पसंद और मुद्दे हैं. किसी को कमल आकर्षित कर रहा है तो कोई साइकिल पर विश्वास व्यक्त कर रहा है. हाथी और पंजे में सूबे की महिला मतदाताओं को लुभाने की होड़ मची है. आलम यह है कि अब सियासी मंचों से शब्दों के वाणों की झड़ी लग रही है. जिन्ना, गन्ना पर अभी बहस चल ही रही थी कि इतने में लाल टोपी की प्रभावी एंट्री से फिलहाल पश्चिम यूपी का माहौल बदल गया है. लेकिन इस बीच पूर्वांचल में भक्ति की शक्ति का असर हर दूसरे व्यक्ति के सिर चढ़ बोल रहा है, क्योंकि काशी बम बम बोल रहा है.
खैर, ये तो सूबे की मौजूदा सियासी सूरत-ए-हाल रही, लेकिन अब हम उस मुख्यमंत्री की बात करेंगे जो खुद को चोर कह संबोधित करते थे और वो भी ठहाके लगा. जी हां, हम बात कर रहे हैं सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता की. चंद्रभानु गुप्ता यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे. कहा जाता है कि तब लखनऊ और चंद्रभानु गुप्ता एक-दूसरे के पूरक रहे.
खुद को ही कहते थे चोर और लगाते थे ठहाके
अक्सर विपक्ष की ओर से उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाते रहे, पर चंद्रभानु गुप्ता कभी भी इन आरोपों से विचलित नहीं हुए. उल्टे आरोपों की जिक्र पर दिल खोलकर ठहाके लगाकर हंसते थे. कभी-कभी तो वे खुद ही मजाक में कहा करते थे कि गली-गली में शोर है, चंद्रभानु गुप्ता चोर है. पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जब चंद्रभानु की मृत्यु हुई तो उनके बैंक खाते में महज 10 हजार रुपये थे.
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आजीवन रहे ब्रह्मचर्य
चंद्रभानु गुप्ता मूल रूप से अलीगढ़ के बिजौली के रहने वाले थे. उनका जन्म 14 जुलाई, 1902 को हुआ था. पिता हीरालाल समाज सेवक थे. चंद्रभानु का मन भी समाजसेवा में लगता था. साथ ही वे आर्य समाज से भी जुड़े थे और आजीवन ब्रह्मचर्य रहे. हालांकि, उनकी शुरुआती पढ़ाई लखीमपुर खीरी में हुई. लखनऊ से उन्होंने कानून की पढ़ाई की और लखनऊ में ही वकालत करने लगे.
काकोरी से मिली थी पहचान
वहीं, काकोरी कांड के अधिवक्ताओं में एक चंद्रभानु गुप्ता भी थे. चंद्रभानु गुप्ता ने भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था. सीतापुर में रौलेट एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन में वे शामिल हुए तो साइमन कमीशन के विरोध में भी खड़े हुए करीब 10 बार जेल गए. काकोरी कांड के क्रांतिकारियों के बचाव दल के अधिवक्ताओं में शामिल होने के कारण ही उन्हें जनप्रियता मिली.
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चंद्रभानु गुप्ता का सियासी सफरनामा
चंद्रभानु गुप्ता साल 1926 में कांग्रेस में शामिल हुए. अपनी मेहनत के बल पर वह बड़ी तेजी से आगे बढ़े और कांग्रेस पार्टी के कई अहम पदों पर काम किए. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अध्यक्ष भी रहे. बावजूद इसके नेहरू को वो पसंद नहीं थे. लेकिन देखते ही देखते वे उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ी ताकत बन गए थे. कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस में चंद्रभानु गुप्ता का इतना प्रभाव था कि विधायक पहले उनके सामने नतमस्तक होते थे और फिर नेहरू जी के सामने साष्टांग करते थे.
वे यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे थे. साल 1960 से 1963 और फिर 1967 के चुनाव में जीतने के बाद वो फिर मुख्यमंत्री बने पर केवल 19 दिनों के लिए. इसके बाद 1969 में एक बार फिर वे मुख्यमंत्री बने. वहीं, 11 मार्च, 1980 को उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
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