लखनऊ: सीएसआईआर की प्रयोगशाला केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान को एक एंटी वायरल ड्रग के क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी मिल चुकी है. यह ड्रग भारत में अब तक इस्तेमाल नहीं किया जाता है. ऐसे में इसके विभिन्न आयामों पर ईटीवी भारत ने सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रोफेसर तपस कुंडू से खास बातचीत की.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए सीएसआइआर सीडीआरआई के निदेशक प्रोफ़ेसर तपस कुमार कुंडू ने बताया कि ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से इस एंटीवायरल ड्रग के लिए मंजूरी मिलना हमारे लिए एक नई उम्मीद की किरण है, क्योंकि यह ड्रग सबसे सेफेस्ट और सकारात्मक परिणाम सामने लाने वाली है. खास बातचीत में प्रोफेसर तपस कुंडू ने बताया कि सीडीआरआई संस्थान पूरे लॉकडाउन के दौरान काम कर रहा है साथ ही मरीजों के इलाज के लिए लगातार रिसर्च कर रहा है. सीएसआईआर की सभी प्रयोगशाला एक साथ मिलकर लगातार बातचीत कर रहे हैं और इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करते आ रहे हैं.
सीडीआरआई में हमने 5 अलग-अलग पार्टिकल्स पर कोविड-19 के इलाज के लिए रिसर्च किया है. उन्होंने बताया कि हमने इस लॉकडाउन के दौरान चार चीजों पर काम करना शुरू किया. हम ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट हैं, इसलिए सबसे पहले हमने कोविड-19 के विभिन्न आयामों पर लगातार चर्चा की. दूसरा, भारत की जनसंख्या लगभग 1.3 बिलियन है, ऐसे में कोविड-19 की जांच के लिए एक प्रॉपर स्क्रीनिंग सिस्टम की जरूरत है. उसे स्क्रीनिंग सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए हमने एक लैब बनाई है. यह लैब उत्तर प्रदेश सरकार के सपोर्ट और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के गाइडेंस से हमने तैयार की है. तीसरा, हमें यह पता चला कि प्रदेश में आ रहे मरीजों की वायरल सीक्वेंसिंग जरूरी है इसके लिए हमने वायरस की सीक्वेंसिंग पर काम किया और ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी भी है कि हम ड्रग स्क्रीनिंग का कोई तरीका बनाएं. इस वक्त हमारे देश की जरूरत है कि हम जल्द से जल्द कोविड-19 के इलाज के लिए कुछ तैयारी कर सकें जिसको लेकर सीएसआईआर की मीटिंग में लगातार हमने 16 मॉलिक्यूल स्क्रीन किए हैं.
वह मॉलिक्यूल पूरी दुनिया में स्क्रीनिंग, प्रभाव और रिपरपजिंग के लिहाज से बेहतर साबित हुए हैं. ड्रग ट्रायल के बारे में बताते हुए प्रोफेसर उन्होंने कहा कि एक ड्रग है जिसका नाम डॉल है इसका एक अन्य नाम उमिफेनोविर भी है. इसके बारे में हम बताना चाहेंगे कि यह ड्रग चीन और रूस में over-the-counter बड़ी आसानी से उपलब्ध हो रही है, लेकिन भारत में अभी इसकी उपलब्धता नहीं है. जब हमारे संस्थान इस पर रिसर्च करना शुरू किया था तब इसको लेकर कोविड-19 से जुड़े किसी भी तरह के शोध सामने नहीं आए थे.
प्रो कुंडू के अनुसार सीडीआरआई में उमिफेनोविर के साथ ही तीन अन्य मॉलिक्यूल पर भी रिसर्च किया जा रहा है, जिसके बारे में जल्द ही रिजल्ट भी आने की उम्मीद है. प्रो कुंडू कहते हैं कि आज के युग में यह जानना बेहद जरूरी है कि हम दूसरे देशों पर डिपेंडेंट नहीं है. हम अपने देश में लगातार रिसर्च कर रहे हैं और कोविड-19 के मरीजों के इलाज में अपना बेस्ट देने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे वैज्ञानिकों ने इस ड्रग को बनाने के लिए कुछ इस तरह से काम किया है कि इस पूरे ड्रग का एपीआई हिंदुस्तान से ही जनरेट किया जा सके और हमें किसी भी तरह से बाहर के देशों पर निर्भर न रहना पड़े.
ड्रग को बनाने के बाद क्वालिटी कंट्रोल पर भी ध्यान दिया गया है. प्रोफेसर कुंडू बताते हैं कि इस ड्रग की मार्केटिंग कर मरीजों के लिए बनाने के लिए भी हमने कुछ काम किया है. इसके लिए हमने गोवा की छोटी सी कंपनी मेडीजेस्ट में इसका टेक्नोलॉजी ट्रांसफर किया है ताकि हम मरीजों के हित में इस दवा को बना सकें और उन तक मुहैया करवा सकें.
इस ड्रग को बनाने के साथ ही सीडीआरआई ने केजीएमयू, डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान और एरा मेडिकल कॉलेज के साथ भी एमओयू साइन किए हैं ताकि मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल किया जा सके. इस बारे में प्रोफेसर कुंडू का कहना है कि हमने क्लिनिकल ट्रायल करने से पहले विशेषज्ञों से बातचीत की है ताकि क्लिनिकल ट्रायल के लिए हम सही तरह से शुरुआत कर सकें. इन सबसे बातचीत करने के बाद हमने अपने क्लिनिकल ट्रायल के बारे में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को बताया और डीसीजीआई ने बिना समय गवाएं हमें इसकी मंजूरी दे दी है.
उन्होंने बताया कि इस क्लिनिकल ट्रायल में लगभग 160 मरीजों पर ड्रग ट्रायल किया जाएगा हमें इस बात की मंजूरी मिली है कि हम उन लोगों पर क्लिनिकल ट्रायल अधिक करें, जिनमें लक्षण न मिलने से लेकर बहुत कम लक्षण मिले हैं. इसमें एक अच्छी बात यह होगी कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान रिस्क फैक्टर कम होगा और जिनमें लक्षणों के आधार पर स्थिति गंभीर होने वाली हो सकती है, उनकी स्थिति को बेहतर किया जा सकता है.
मानव शरीर पर इस ड्रग के दुष्प्रभाव के सवाल पर प्रो कुंडू कहते हैं कि यह ड्रग पिछले 20 वर्षों से मानव शरीर पर काम कर रहा है. चीन और रूस की जनसंख्या में यह काफी वर्षों से इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी वजह से हम इस की सेफ्टी को लेकर काफी निश्चिंत हैं. हालांकि हमारा ट्रायल लंबे समय के लिए नहीं होगा हम सिर्फ यह देखेंगे कि यह ड्रग किस तरह से मरीजों पर काम कर रहा है और क्या यह कन्वेंशनल थेरेपी के आगे मरीजों पर काम कर सकता है या नहीं.
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन और उमिफेनोविर में अंतर और प्रभाव के सवाल पर प्रोफेसर कुंडू का कहना है कि हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन भारत में ओवर द काउंटर मौजूद है, लेकिन इसके इस्तेमाल की कुछ रिस्क भी सामने आए हैं. यह जरूर देखा गया है कि कोविड-19 के इलाज में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन प्रभाव दिखाया है, लेकिन यह एंटीवायरल ड्रग नहीं है. जबकि उमिफेनोविर एक एंटीवायरल ड्रग के रूप में जाना जाता है और इसी तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए हमारे लिए यह बहुत सरल और कोरोनावायरस पर डायरेक्ट टारगेट ड्रग के रूप में सामने आ रहा है.
प्रो. कुंडू कहते हैं कि उमिफेनोविर ड्रग ट्रायल पहले भी किया जा चुका है जिसका कुछ डाटा सामने भी आया है, लेकिन अब ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की मंजूरी के बाद इसे पहली बार भारत की जनसंख्या पर ट्रायल किया जाएगा. इसके अलावा इस ड्रग का पेटेंट अभी भारत की ओर से नहीं किया गया है. उन्होंने बताया कि चीन और रूस में जो ट्रायल चल रहा है, उससे हमारे देश का ट्रायल काफी अलग और सुपीरियर होगा.