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हाईकोर्ट के जज पर CBI की कार्रवाई से लोगों में बढ़ेगी ज्यूडिशरी पर विश्वसनीयता

मेडिकल कॉलेज में दाखिले में हुए भ्रष्टाचार में हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला सहित सात लोगों के यहां छापेमारी की गई. छापेमारी के दौरान भ्रष्टाचार से संबंधित दस्तावेज जब्त किए गए. लोगों का कहना है कि इस कार्रवाई से समाज में एक सकारात्मक मैसेज गया है.

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Published : Dec 10, 2019, 1:00 PM IST

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मेडिकल कॉलेज घोटाले में जज सहित सात लोगों पर कार्रवाई.

लखनऊ: निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले के नाम पर हुए भ्रष्टाचार को लेकर बीते दिनों सीबीआई ने हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला के यहां छापेमारी की. मामले में सीबीआई ने एक रिटायर्ड जज सहित सात लोगों के यहां छापेमारी की. छापेमारी के दौरान भ्रष्टाचार से संबंधित दस्तावेज जब्त किए गए. जज के यहां छापेमारी को लेकर सभी जगह खूब चर्चाएं हो रही हैं.

मेडिकल कॉलेज घोटाले में जज सहित सात लोगों पर कार्रवाई.


सीबीआई टीम द्वारा हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी, एक बड़ी घटना है. जज एक संवैधानिक पद होता है, जिसके ऊपर कोई भी एजेंसी या पुलिस सीधे तौर पर कार्रवाई नहीं कर सकती. इसके बावजूद हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी की गई है. इसे एक बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है.


जज पर कार्रवाई करने से पहले लेनी पड़ती है अनुमति
जज पर कार्रवाई करने से पहले किसी भी एजेंसी या पुलिस को पहले ज्यूडिशरी के प्रशासनिक पदों पर बैठे व्यक्ति से अनुमति लेनी पड़ती है. हाईकोर्ट के जज के खिलाफ मामला दर्ज करने और कार्रवाई के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अनुमति की आवश्यकता होती है. मेडिकल कॉलेज घोटाले को लेकर हाईकोर्ट के जज पर कार्रवाई करने से पहले सीबीआई ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति ली थी. इसके बाद यह कार्रवाई की गई. जिलों में तैनात जजों पर कार्रवाई करने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ स्टेट से अनुमति लेनी पड़ती है.


पूर्व डीजीपी से ईटीवी भारत ने की बातचीत
पूर्व डीजीपी बृजलाल बताया कि जजों पर सीबीआई द्वारा यह एक बड़ी कार्रवाई की गई है. इससे स्पष्ट है कि अपराध करने वाला किसी भी पद पर क्यों न बैठा हो, अगर उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं तो कार्रवाई होना तय है. इसे सकारात्मक तौर पर लेना चाहिए.

इसे भी पढ़ें:- लखनऊ: मेडिकल कॉलेज घोटाले में हाईकोर्ट के जज सहित 7 पर FIR

हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज देवेंद्र उपाध्याय ने बताया कि जिस तरह से सिटिंग जज पर कार्रवाई की गई है, इससे स्पष्ट है कि ज्यूडिशरी में भी अगर भ्रष्टाचार पाया जाता है तो उसके लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. मेडिकल कॉलेज घोटाले में सीबीआई ने कार्रवाई से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति दी गई. इससे समाज में एक सकारात्मक मैसेज गया है कि हमारे सिस्टम के पास जजों के खिलाफ कार्रवाई का भी तंत्र मौजूद है. अपराध करने वालों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा. यही हमारे संविधान और ज्यूडिशरी को खास बनाता है.


यह है पूरा मामला
निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले को लेकर खूब मनमानी की गई. इसके बाद 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने लखनऊ स्थित एक निजी मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया. निरीक्षण में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को कॉलेज में आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली. इसके बाद कार्रवाई करते हुए लखनऊ स्थित प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस सहित 46 मेडिकल कॉलेजों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई.

इसे भी पढ़ें:- लखनऊ में CBI की बड़ी कार्रवाई, दो जज समेत कई लोगों के आवास पर खंगाले जा रहे दस्तावेज

रोक के बाद प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुनवाई करते हुए तात्कालिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इन कॉलेजों को राहत न देते हुए दाखिले पर रोक को कायम रखा. सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद कॉलेज ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट से कॉलेज को राहत मिली और कॉलेज को प्रवेश की अनुमति दे दी गई. यह फैसला जस्टिस एसएन शुक्ला की बेंच ने दिया था.

लखनऊ: निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले के नाम पर हुए भ्रष्टाचार को लेकर बीते दिनों सीबीआई ने हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला के यहां छापेमारी की. मामले में सीबीआई ने एक रिटायर्ड जज सहित सात लोगों के यहां छापेमारी की. छापेमारी के दौरान भ्रष्टाचार से संबंधित दस्तावेज जब्त किए गए. जज के यहां छापेमारी को लेकर सभी जगह खूब चर्चाएं हो रही हैं.

मेडिकल कॉलेज घोटाले में जज सहित सात लोगों पर कार्रवाई.


सीबीआई टीम द्वारा हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी, एक बड़ी घटना है. जज एक संवैधानिक पद होता है, जिसके ऊपर कोई भी एजेंसी या पुलिस सीधे तौर पर कार्रवाई नहीं कर सकती. इसके बावजूद हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी की गई है. इसे एक बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है.


जज पर कार्रवाई करने से पहले लेनी पड़ती है अनुमति
जज पर कार्रवाई करने से पहले किसी भी एजेंसी या पुलिस को पहले ज्यूडिशरी के प्रशासनिक पदों पर बैठे व्यक्ति से अनुमति लेनी पड़ती है. हाईकोर्ट के जज के खिलाफ मामला दर्ज करने और कार्रवाई के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अनुमति की आवश्यकता होती है. मेडिकल कॉलेज घोटाले को लेकर हाईकोर्ट के जज पर कार्रवाई करने से पहले सीबीआई ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति ली थी. इसके बाद यह कार्रवाई की गई. जिलों में तैनात जजों पर कार्रवाई करने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ स्टेट से अनुमति लेनी पड़ती है.


पूर्व डीजीपी से ईटीवी भारत ने की बातचीत
पूर्व डीजीपी बृजलाल बताया कि जजों पर सीबीआई द्वारा यह एक बड़ी कार्रवाई की गई है. इससे स्पष्ट है कि अपराध करने वाला किसी भी पद पर क्यों न बैठा हो, अगर उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं तो कार्रवाई होना तय है. इसे सकारात्मक तौर पर लेना चाहिए.

इसे भी पढ़ें:- लखनऊ: मेडिकल कॉलेज घोटाले में हाईकोर्ट के जज सहित 7 पर FIR

हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज देवेंद्र उपाध्याय ने बताया कि जिस तरह से सिटिंग जज पर कार्रवाई की गई है, इससे स्पष्ट है कि ज्यूडिशरी में भी अगर भ्रष्टाचार पाया जाता है तो उसके लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. मेडिकल कॉलेज घोटाले में सीबीआई ने कार्रवाई से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति दी गई. इससे समाज में एक सकारात्मक मैसेज गया है कि हमारे सिस्टम के पास जजों के खिलाफ कार्रवाई का भी तंत्र मौजूद है. अपराध करने वालों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा. यही हमारे संविधान और ज्यूडिशरी को खास बनाता है.


यह है पूरा मामला
निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले को लेकर खूब मनमानी की गई. इसके बाद 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने लखनऊ स्थित एक निजी मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया. निरीक्षण में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को कॉलेज में आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली. इसके बाद कार्रवाई करते हुए लखनऊ स्थित प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस सहित 46 मेडिकल कॉलेजों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई.

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रोक के बाद प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुनवाई करते हुए तात्कालिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इन कॉलेजों को राहत न देते हुए दाखिले पर रोक को कायम रखा. सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद कॉलेज ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट से कॉलेज को राहत मिली और कॉलेज को प्रवेश की अनुमति दे दी गई. यह फैसला जस्टिस एसएन शुक्ला की बेंच ने दिया था.

Intro:एंकर



लखनऊ। निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के नाम पर हुए भ्रष्टाचार को लेकर बीते दिनों सीबीआई ने हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला के यहां छापेमारी की। साथ ही सीबीआई ने एक रिटायर्ड जज सहित सात लोगों के यहां छापेमारी कर। निजी कॉलेज में दाखिले के नाम पर किए गए भ्रष्टाचार से संबंधित दस्तावेज जप्त किये। सीबीआई द्वारा किसी सेटिंग जज के यहां छापेमारी करना एक बड़ा मामला था। इसको लेकर सभी जगह खूब चर्चाएं हो रही हैं सीबीआई द्वारा सिटिंग जज के यहां छापेमारी को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है। जहां एक और लोग जज पर की गई इस कार्यवाही को जुडिशरी में व्याप्त भ्रष्टाचार से जोड़ जा रहा है और लोगों का मानना है कि इससे लोगों का जुडिशरी पर विश्वास कम होगा तो वहीं तमाम लोग इसे एक सकारात्मक कार्यवाही बता रहे हैं और लोगों का कहना है कि इस कदम से जुडिशरी को किसी तरीके का नुकसान नहीं होगा बल्कि इस कार्यवाही से लोगों का ज्यूडिशरी पर और विश्वास बढ़ेगा।




Body:वियो

सीबीआई टीम द्वारा हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी एक बड़ी घटना है जज एक संवैधानिक पद होता है जिसके ऊपर कोई भी एजेंसी या पुलिस सीधे तौर पर कार्यवाही नहीं कर सकती इसके बावजूद हाई कोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी की गई है इसे एक बड़ी कार्यवाही माना जा रहा है

जज पर कार्यवाही करने से पहले लेनी पड़ती है अनुमति

जज पर कार्यवाही करने से पहले किसी भी एजेंसी या पुलिस को पहले जुडिशरी के प्रशासनिक पदों पर बैठे व्यक्ति से जज पर कार्यवाही की अनुमति लेनी पड़ती है हाई कोर्ट के जज के खिलाफ मामला दर्ज करने व कार्यवाही के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अनुमति की आवश्यकता होती है। मेडिकल कॉलेज घोटाले को लेकर हाईकोर्ट के जज पर कार्यवाही करने से पहले सीबीआई ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति ली थी जिसके बाद यह कार्यवाही की गई वहीं जिलों में तैनात जजों पर कार्यवाही करने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ स्टेट से अनुमति लेनी पड़ती है।

जजों पर की गई इस कार्यवाही को लेकर जब हमने पूर्व डीजीपी बृजलाल से बातचीत की तो बृजलाल ने बताया कि सीबीआई द्वारा या एक बड़ी कार्यवाही की गई है और जिस तरीके से जजों पर कार्यवाही की गई है इससे स्पष्ट है कि अपराध करने वाला किसी भी पद पर क्यों न बैठा हो अगर उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं तो कार्यवाही होना तय है। इस कार्यवाही को सकारात्मक तौर पर लेना चाहिए, कार्यवाही के बाद जुडिशरी में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों को मैसेज जाएगा कि अगर वह भ्रष्टाचार पर संलिप्त रहे और अनियमितताएं की तो उनके खिलाफ भी कार्यवाही हो सकती है।

हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज देवेंद्र उपाध्याय ने ईटीवी से खास बातचीत में बताया कि जिस तरह से सिटिंग जज पर कार्यवाही की गई है इससे स्पष्ट है कि जुडिशरी में भी अगर भ्रष्टाचार पाया जाता है तो उसके लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। जज एक संवैधानिक पद होता है लिहाजा सीधे तौर पर जज पर कार्यवाही नहीं की जा सकती लेकिन जुडिशरी के प्रशासनिक अनुमति के बाद कार्यवाही की जा सकती है। मेडिकल कॉलेज घोटाले में सीबीआई ने कार्यवाही से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति दी गई। जिसके बाद या कार्यवाही हो सकी। इससे समाज में एक सकारात्मक मैसेज गया है कि हमारे सिस्टम के पास जजों के खिलाफ कार्यवाही का भी तंत्र मौजूद है ऐसे में अपराध करने वालों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा और यही हमारे संविधान व ज्यूडिशरी को खास बनाता है। जिस तरीके से जज पर कार्यवाही हुई है और जुडिशरी नहीं उनके ऊपर कार्यवाही की अनुमति दी है इससे लोगों का विश्वास जुडिशरी पर और बढ़ेगा।




Conclusion:यह है पूरा मामला

निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले को लेकर खूब मनमानी की गई। जिसके बाद 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने राजधानी लखनऊ स्थित एक निजी मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया। निरीक्षण में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को कॉलेज में आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली। जिसके बाद कार्यवाही करते हुए राजधानी लखनऊ स्थित प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस सहित 46 मेडिकल कॉलेजों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इस रोक के बाद प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुनवाई करते हुए तात्कालिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इन कॉलेजों को राहत न देते हुए दाखिले पर रोक को कायम रखा। सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद कॉलेज ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट से कॉलेज को राहत मिली और कॉलेज को प्रवेश की अनुमति दे दी। यह फैसला जस्टिस एसएन शुक्ला की बेंच ने दिया था।

बाइट 1- पूर्व डीजीपी बृजलाल

बाइट2- वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र उपाध्याय

(संवाददाता प्रशांत मिश्रा 90 2639 25 26)
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