लखनऊ: निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले के नाम पर हुए भ्रष्टाचार को लेकर बीते दिनों सीबीआई ने हाईकोर्ट के जस्टिस एसएन शुक्ला के यहां छापेमारी की. मामले में सीबीआई ने एक रिटायर्ड जज सहित सात लोगों के यहां छापेमारी की. छापेमारी के दौरान भ्रष्टाचार से संबंधित दस्तावेज जब्त किए गए. जज के यहां छापेमारी को लेकर सभी जगह खूब चर्चाएं हो रही हैं.
सीबीआई टीम द्वारा हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी, एक बड़ी घटना है. जज एक संवैधानिक पद होता है, जिसके ऊपर कोई भी एजेंसी या पुलिस सीधे तौर पर कार्रवाई नहीं कर सकती. इसके बावजूद हाईकोर्ट के सिटिंग जज के यहां छापेमारी की गई है. इसे एक बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है.
जज पर कार्रवाई करने से पहले लेनी पड़ती है अनुमति
जज पर कार्रवाई करने से पहले किसी भी एजेंसी या पुलिस को पहले ज्यूडिशरी के प्रशासनिक पदों पर बैठे व्यक्ति से अनुमति लेनी पड़ती है. हाईकोर्ट के जज के खिलाफ मामला दर्ज करने और कार्रवाई के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अनुमति की आवश्यकता होती है. मेडिकल कॉलेज घोटाले को लेकर हाईकोर्ट के जज पर कार्रवाई करने से पहले सीबीआई ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति ली थी. इसके बाद यह कार्रवाई की गई. जिलों में तैनात जजों पर कार्रवाई करने के लिए चीफ जस्टिस ऑफ स्टेट से अनुमति लेनी पड़ती है.
पूर्व डीजीपी से ईटीवी भारत ने की बातचीत
पूर्व डीजीपी बृजलाल बताया कि जजों पर सीबीआई द्वारा यह एक बड़ी कार्रवाई की गई है. इससे स्पष्ट है कि अपराध करने वाला किसी भी पद पर क्यों न बैठा हो, अगर उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं तो कार्रवाई होना तय है. इसे सकारात्मक तौर पर लेना चाहिए.
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हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज देवेंद्र उपाध्याय ने बताया कि जिस तरह से सिटिंग जज पर कार्रवाई की गई है, इससे स्पष्ट है कि ज्यूडिशरी में भी अगर भ्रष्टाचार पाया जाता है तो उसके लिए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. मेडिकल कॉलेज घोटाले में सीबीआई ने कार्रवाई से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति दी गई. इससे समाज में एक सकारात्मक मैसेज गया है कि हमारे सिस्टम के पास जजों के खिलाफ कार्रवाई का भी तंत्र मौजूद है. अपराध करने वालों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा. यही हमारे संविधान और ज्यूडिशरी को खास बनाता है.
यह है पूरा मामला
निजी मेडिकल कॉलेज में दाखिले को लेकर खूब मनमानी की गई. इसके बाद 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने लखनऊ स्थित एक निजी मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया. निरीक्षण में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को कॉलेज में आधारभूत सुविधाएं नहीं मिली. इसके बाद कार्रवाई करते हुए लखनऊ स्थित प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस सहित 46 मेडिकल कॉलेजों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई.
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रोक के बाद प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुनवाई करते हुए तात्कालिक चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इन कॉलेजों को राहत न देते हुए दाखिले पर रोक को कायम रखा. सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बाद कॉलेज ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट से कॉलेज को राहत मिली और कॉलेज को प्रवेश की अनुमति दे दी गई. यह फैसला जस्टिस एसएन शुक्ला की बेंच ने दिया था.