लखनऊ: अखिलेश सरकार में हुए गोमती रिवर फ्रंट घोटाले के मामले (CBI Investigation of Gomti River Front Scam) में शुक्रवार को सीबीआई ने रिटायर हो चुके मुख्य अभियंता ओम वर्मा (Chief Engineer Om Verma) के घर और बैंक में जाकर तलाशी ली. इस दौरान एजेंसी को घर से कई दस्तावेज बरामद हुए हैं. वहीं बैंक में मौजूद अभियंता के लॉकर से लाखों रुपए के जेवर मिले है. रिटायर्ड मुख्य अभियंता ओम वर्मा को सीबीआई ने गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में बिना टेंडर के करोड़ों रुपये का सौंदर्यीकरण का काम देने का आरोपी बनाया था.
सीबीआई ने गोमती रिवरफ्रंट घोटाले की प्रारंभिक जांच दर्ज करने के बाद तमाम आरोपी इंजीनियरों, ठेकेदारों के ठिकानों पर जुलाई, 2021 में छापा मारा था. इस दौरान जुटाए गए सुबूतों के आधार पर 16 इंजीनियरों समेत 189 लोगों के खिलाफ दो जुलाई 2021 को मुकदमा दर्ज किया गया. इस मामले में बरेली मंडल में तैनात रहे मुख्य अभियंता ओम वर्मा को भी आरोपी बनाया गया था. ओम वर्मा मुख्य अभियंता (शारदा) सिंचाई विभाग बरेली के पद से रिटायर हुए थे. फिलहाल वो राजधानी के विकासनगर में रहते है. सीबीआई ने शासन से ओम के खिलाफ जांच करने की अनुमति मांगी थी, जो 22 सितंबर 2020 को मिल गई थी.
एजेंसी ने जांच में रिटायर मुख्य अभियंता 120 बी, 467, 468 व 471 के अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) और 13(1)(डी) के तहत प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया था. सीबीआई ने जांच में पाया कि ओम वर्मा ने गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना लखनऊ से संबंधित टेंडर नोटिस राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित न कराने, टेंडर नोटिस प्रकाशन से संबधित अभिलेखों और एल-टू व एल-थ्री फर्मों के कूटरचित अभिलेख तैयार कर उसके आधार पर संदिग्ध एल-वन फर्म को कार्य आवंटित किए थे. इस मामले में अधीक्षण अभियंता जीवन राम यादव और मुख्य अभियंता काजिम अली को भी आरोपी बनाया गया है.
सीबीआई ने पिछले दिनों प्रदेश के दो तत्कालीन मुख्य सचिवों आलोक रंजन और दीपक सिंघल के खिलाफ जांच के लिए भी अनुमति मांगी थी, लेकिन यह अनुमति अभी तक नहीं मिली है. यह दोनों ही अधिकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के काफी करीबी माने जाते थे. जब गोमती रिवरफ्रंट का निर्माण हो रहा था, उस समय चैनेलाइजेशन और रबर डैम के बारे में रिसर्च करने लिए आलोक रंजन और दीपक सिंघल ने कई देशों की यात्रा की थी. आलोक रंजन रिवर फ्रंट के निर्माण के लिए बनाई गई टास्क फोर्स के अध्यक्ष थे. इस टास्क फोर्स की 23 बैठकें हुई थी. वहीं दीपक सिंघल ने निर्माण स्थल पर 20 से भी ज्यादा दौरे किये थे.
सीबीआई का मानना है कि इतनी बैठकों और दौरों के बाद भी इन दोनों अधिकारियों को गड़बड़ी नजर क्यों नहीं आई. सपा के शासनकाल में हुए 1400 करोड़ के इस घोटाले में सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने सिंचाई विभाग की ओर से गोमती नगर थाने में दर्ज कराए गए मुकदमे को आधार बनाकर 30 नवंबर 2017 में मुकदमा दर्ज किया था. इसमें इसमें सिंचाई विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियंता गुलेश चंद, एसएन शर्मा व काजिम अली के अलावा तत्कालीन अधीक्षण अभियंता शिव मंगल यादव, अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह व रूप सिंह यादव तथा अधिशासी अभियंता सुरेश यादव समेत 189 लोगों को नामजद किया गया था. (Lucknow News in Hindi)
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