लखनऊ : कानपुर यूनिवर्सिटी के वीसी विनय पाठक प्रकरण की जांच को सीबीआई ने टेक ओवर कर लिया है. इसी में साथ यह सवाल भी हिलोरे मारने लगा है कि क्या जिस तेजी से पिछले डेढ़ महीने में इस केस पर यूपी एसटीएफ ने काम किया है, सीबीआई भी उतनी तत्परता दिखा पाएगी या फिर पिछले दर्जनों मामलों की जांच की तरह इसमें भी सीबीआई कछुआ चाल चलेगी. क्योकि यूपी के बहुचर्चित मामलों में सीबीआई की जांच हमेशा सवालों के घेरे में ही रही.
यूपी का आरुषि हत्याकांड हो या सैय्यद मोदी की हत्या का केस, कुंडा कांड हो या जेल में अंजाम दिया गया सचान हत्याकांड, गोमती रिवर फ्रंट घोटाला, खनन घोटाला ऐसे दर्जनों मामलों की जांच वर्षों से कछुआ चाल चली आ रही हैं. सरकार या कोर्ट द्वारा किसी भी केस को सीबीआई को ट्रांसफर होने पर सीबीआई एफआईआर तो तुरंत दर्ज कर लेती है, लेकिन उसे अंजाम तक पहुंचाने में वर्षों लग जाते हैं. ये जरूर है, जिन मामलों में किसी बड़े नेता या अधिकारी का नाम नहीं होता वहां सीबीआई की जांच और कार्रवाई में तेज दिख जाती है.
विनय पाठक प्रकरण में सीबीआई की जांच कब पूरी होगी. इसका जवाब भविष्य के गर्त में है, लेकिन यूपी के एक दर्जनों ऐसे मामले हैं, जिन्हें सीबीआई को इस मंशा के साथ सौंपा गया कि एजेंसी जांच करेगी तो न्याय ही होगा. हालांकि इन मामलों में या तो अब भी सीबीआई जांच ही कर रही है या फिर अंतिम परिणाम तक नही पहुंच सकी है. आइए जानते हैं कि कौन कौन से हैं ऐसे केस....
गोमती रिवर फ्रंट घोटाला : यूपी में योगी सरकार बनते ही गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की जांच सीबीआई से करवाने का फैसला किया गया. नवंबर 2017 में सीबीआई ने घोटाले की जांच शुरू की. जांच शुरू होने के करीब 3 साल बाद सीबीआई ने तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव समेत अन्य की गिरफ्तारी की और 6 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी, लेकिन 6 साल होने को आये है, आज भी सीबीआई की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. सीबीआई ने तत्कालीन मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन व तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल के खिलाफ जांच के लिए सरकार से मंजूरी तो मांगी, लेकिन मिली नहीं. हालांकि हालहीं में मामला तेजी से उछल जब सपा विधायक शिवपाल से इस मामलें में पूछताछ होने के बाबत खबरे बाहर आई.
खनन घोटाला : 30 जून 2017 को सीबीआई ने खनन घोटाला प्रकरण में पहली एफआईआर दर्ज की. साढ़े 6 साल से घोटाले की जांच चल ही रही है. इस घोटाले में कई आईएएस अफसर नामजद हैं तो जांच ही चल रही है. सीबीआई ने इस केस में कई आईएएस अफसरों के यहां ताबड़तोड़ छापेमारी की गई. इस दौरान अफसरों के यहां लाखों रुपये भी मिले. बावजूद इसके मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है.
शुगर मिल घोटाला : अप्रैल 2019 में सीबीआई ने शुगर मिल घोटाले की जांच शुरू की थी. साढ़े 3 साल बाद भी जांच चल रही है. किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है. सीबीआई से ज्यादा इस मामले में ईडी की जांच तेज और कार्रवाई के साथ आगे बढ़ रही है.
यूपीएससी भर्ती घोटाला : नवंबर 2017 में सीबीआई को यूपीएससी भर्ती घोटाले की जांच मिली थी. 6 साल बाद भी इस मामले में एक भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है. बल्कि जांच के दौरान एक और भर्ती में गड़बड़ी सामने आई थी तो उसमें भी एफआईआर दर्ज हुई थी. जानकारी के मुताबिक सीबीआई ने कुछ आरोपियों के खिलाफ सरकार से अभियोजन स्वीकृति मांगी है जो उसे मिल नहीं रही है.
देवरिया शेल्टर होम कांड : अगस्त 2019 में सीबीआई ने देवरिया शेल्टर होम कांड में केस दर्ज किया था. तीन साल से ज्यादा समय बीत चुका है और केस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है. देवरिया के शेल्टर होम में लड़कियों के साथ शारीरिक शोषण किए जाने का मामला सामने आया था.
वक्फ में धांधली व मुन्ना बजरंगी हत्याकांड : नवंबर 2020 में सीबीआई ने राज्य सरकार की सिफारिश पर इस मामले में केस दर्ज किया था. वक्फ की संपत्तियों को अवैध रूप से खरीदने बेचने के आरोपों की जांच हो रही है. दो साल बाद भी जांच चल रही है. कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. वहीं मुन्ना बजरंगी हत्याकांड मामले में कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने 8 मार्च 2020 को केस दर्ज किया था. यह जांच भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. जिन बाहुबली पूर्व सांसद समेत पुलिस व जेल विभाग से जुड़े जिन बड़े लोगों की भूमिका इस हत्याकांड में संदिग्ध है उनसे आज तक सीबीआई पूछताछ तक नहीं कर सकी है.
यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी घोटाला : दिसंबर 2019 में सीबीआई ने इस मामले में केस दर्ज कर जांच अपने हाथों में ली थी. करीब 126 करोड़ के इस घोटाले में सीबीआई ने अभी तक कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं की है. ये सिर्फ वह जांचें हैं, जो योगी सरकार के दौरान सीबीआई को सौंपी गईं और अंतिम परिणाम के लिए अब तक इंतजार हो रहा है. कुछ ऎसी भी जांचें हैं, जिन्हें एक दशक हो गए और सीबीआई से निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकी है. जिसमें पहुंची भी उसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया.
आरुषि हत्याकांड : 15 मई 2008 को नोएडा के जलवायु विहार में हुए देश के सबसे चर्चित आरुषि और उसके नौकर हेमराज की हत्या में सीबीआई की खूब जग हंसाई हुई. सबसे पहले यूपी पुलिस ने इस मामले में आरुषि के माता-पिता तलवार दंपती को आरोपी बनाया. बाद में सीबीआई जांच में तीन नौकरों को हत्यारोपी बनाया गया, लेकिन जब सीबीआई की दूसरी टीम ने इस केस की जांच की तो यूपी पुलिस की थ्योरी पर तलवार दंपती को हत्यारोपी बनाया. जिसके चलते आज भी यह हत्याकांड एक पहेली ही बना हुआ है.
कृष्णानंद राय हत्याकांड : 29 नवंबर 2005 में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों को गोलियों से भूनकर मार दिया गया था. यूपी पुलिस ने इस मामले की जांच करते हुए एजाजुल हक, अफजाल अंसारी, प्रेमप्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी, अताउररहमान, फिरदौस और मुख्तार अंसारी को आरोपित बनाया था. बाद में मई 2006 में कोर्ट के आदेश पर मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. करीब 14 साल की सीबीआई जांच के बाद दिल्ली कोर्ट ने सभी आरोपितों को बरी कर दिया. सीबीआई एक भी आरोपित को सजा नहीं दिलवा पाई.
कुंडा कांड : यूपी के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा में 2 मार्च 2013 को 3 हत्याएं हुई थीं. पहली हत्या बलीपुर के ग्राम प्रधान नन्हे यादव, दूसरी घटनास्थल पर पहुंचे डीएसपी जिया-उल-हक और तीसरी प्रधान के चचेरे भाई सुरेश यादव. इस मामले की जांच सीबीआई को दी गई. सीबीआई ने जांच के बाद क्लोजर रिपेार्ट पेश करते हुए कहा था कि सुरेश यादव डीएसपी जिया-उल-हक को अपनी बंदूक की बट से मार रहा था, इसी दौरान उससे गोली चल गई और वह सुरेश के ही लग गई जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई. कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट खारिज करते हुए दोबारा जांच के आदेश दिए थे.
सैय्यद मोदी हत्याकांड : 28 जुलाई 1988 को बैडमिंटन खिलाड़ी सैय्यद मोदी की केडी सिंह बाबू स्टेडियम के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. शुरुआती जांच के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. सीबीआई ने इस मामले में संजय सिंह, अमिता मोदी, जितेन्द्र सिंह, भगवती सिंह, अखिलेश सिंह, बलई सिंह व अमर बहादुर सिंह को आरोपी बनाया था. सीबीआई की यह चार्जशीट कोर्ट में टिक नहीं पाई. संजय सिंह व अमिता मोदी का नाम 1990 में केस से अलग कर दिया गया. वर्ष 1996 में अखिलेश सिंह भी कोर्ट से बरी हो गए. आरोपी जितेंद्र सिंह को डाउट ऑफ बेनेफिट देकर बरी कर दिया गया. पांचवें आरोपी अमर बहादुर सिंह की संदिग्ध हालात में हत्या हो गई और बलई सिंह की मौत हो गई. सातवें आरोपी भगवती सिंह को आजीवन कारावास की सजा हुई. सीबीआई ने भगवती सिंह को फांसी की सजा की पैरवी की, लेकिन वर्ष 2009 में कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.
डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान की जेल में संदिग्ध मौत : इस मामले में सीबीआई दो बार क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है. जिस पर तमाम सवाल उठाते हुए कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. आज भी यह मामला आत्महत्या या हत्या की बीच झूल रहा है.
आखिर सीबीआई पर ही भरोसा क्यों : मामलों के लंबे समय तक लटके रहने, जांच के सही नतीजे पर नहीं पहुंचने के बाद भी चाहे पीड़ित हो या विपक्षी दलों के नेता हर कोई सीबीआई जांच की मांग करते हैं। सरकार भी ज्यादातर गंभीर मामलों में सीबीआई जांच की ही सिफारिश कर देती है। जबकि मायावती के कार्यकाल में ऐसे ही मामलों की जांच के लिए सीबीआई की तर्ज पर एसआईटी का गठन किया गया था। ये अलग बात है कि योगी सरकार के सत्ता में आने से पहले एसआईटी को मजबूत करने पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।
निष्कर्स की उम्मीद पालना बेमानी : उत्तर प्रदेश की राजनीति व जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को काफी करीब से देखने वाले ज्ञानेंद्र शुक्ला बताते हैं कि कभी कहा जाता था कि यूपी में अगर किसी आरोपी को जांच से बचाना हो तो जांच सीबीसीआईडी को सौंप दो. कमोबेश वही स्थिति अब सीबीआई के साथ जुड़ती हुई दिख रही है. वे कहते हैं कि यह अवधारणा ऐसे ही नहीं बनी है. बीते वर्षों में जिन मामलों की जांच सीबीआई कर रही है उसके प्रगति रिपोर्ट को ध्यान में रख कर ही बनी है. ऐसे में अब अगर लोग ये उम्मीद बना कर रखें कि विनय पाठक के मामले में सीबीआई तेजी दिखाते हुए जल्द निष्कर्स तक पहुंच जाएगी तो ये बेमानी होगी.
अफसरों-नेताओं के हस्तक्षेप से लटक जाती है जांच : पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि पुलिस व सरकार की निष्पक्षता को लेकर जब लोगों को शंका होती है तो लोग सीबीआई जांच की मांग करते हैं. जबकि यहां की पुलिस हर प्रकार की जांच करने में पूरी तरह से सक्षम है, लेकिन जांच में जब अफसरों व नेताओं का हस्तक्षेप और दबाव बढ़ जाता है तो वे लटक जाती हैं या असलियत से भटक जाती हैं.
यह भी पढ़ें : पहले दुकानों पर किया पथराव फिर तीसरी मंजिल से ज्वैलर ने लगाई छलांग