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कैंसर से पीड़ित बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर, कभी खुद रही है कैंसर पेशेंट

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Published : Sep 6, 2019, 9:35 AM IST

उत्तर प्रदेश की राजधानी में शिक्षक दिवस पर सुगंधा जैसे शिक्षक ऐसे तमाम लोगों को प्रेरणा देते हैं. यह अपने साथ-साथ दूसरों को भी जीवन जीने के लिए अग्रसर रहते हैं. कैंसर पीड़ित रह चुकी सुंगधा मिश्रा आज कैंसर से पीड़ित बच्चों को पढ़ाती हैं.

कैंसर पीड़ित रह चुकी शिक्षिका पढ़ा रही है कैंसर पीड़ित बच्चों को

लखनऊ: टीचर्स-डे पर हर इंसान अपनी जीवन के शिक्षकों को याद कर उन्हें तोहफे देता है और उनकी शिक्षा के लिए धन्यवाद देता है. केजीएमयू में एक ऐसी टीचर भी है जो कभी खुद कैंसर जैसी बीमारी के मरीज हुआ करती थी और अब कैंसर से पीड़ित बच्चों को जिंदगी जीने के नए तरीके सिखा रही हैं.

कैंसर के बाद बदल चुकी थी स्कूली दुनिया
बिहार की रहने वाली सुगंधा मिश्रा अपने जीवन के एक पड़ाव पर खुद कैंसर की पेशेंट थी. जीसीटी यानी जर्म सेल टयूमर जो पेट और आंत के बीच में होता है. बीमारी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा. आज भी लोग कैंसर की बीमारी को छुआछूत बीमारी के रूप में मानते है. कैंसर के इलाज के बाद जब वह वापस अपने स्कूल पहुंचीं तो वह जगह उनके लिए बिल्कुल बदल चुकी थी. उनके दोस्त बात नहीं करते थे.

कैंसर पीड़ित बच्चों को पढ़ा रही है कैंसर पीड़ित रह चुकीं शिक्षिका.
स्कूल में कोई भी पास नहीं बैठता था. टीचर भी उनसे दूर भागते थे. सभी को लगता था कि अगर उन्हें कैंसर है तो बाकियों को भी कैंसर हो जाएगा. कैंसर के इलाज के दौरान उनके बाल झड़ चुके थे और उनकी हालत काफी खराब हो चुकी थी.

कैंसर पीड़ित बच्चों को पढ़ाने का सोचा
कैंसर से पूरी तरह ठीक होने के बाद बीमारी की समझ आ गई तो उन्होंने दूसरे कैंसर से पीड़ित बच्चों की मदद करने का सोच लिया. सुगंधा ने खुद के साथ हुए व्यवहार से सोचा कि ऐसी ही परेशानियों का सामना अन्य कैंसर पीड़ितों को भी करना पड़ता होगा. इसलिए उन्होंने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई के साथ कैंसर पीड़ित बच्चों को भी पढ़ाएंगी. सुगंधा फिलहाल सोशल वर्क में परास्नातक कर रही है और साथ ही अपने दिन का एक हिस्सा किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑकोलॉजी विभाग में बिताती हैं.

यहां पर जो स्कूल जाने वाले बच्चे हैं मैं उनके सिलेबस के आधार पर उन्हें पढ़ाती हूं, जिससे उनकी पढ़ाई पर ज्यादा प्रभाव न पड़े. इसके अलावा इन सभी बच्चों को कुछ और एक्टिविटीज भी करवाती हूं. ताकि उन्हें यह न महसूस हो कि वह अपने घर परिवार से दूर यहां पड़े हैं.
-सुगंधा मिश्रा, शिक्षिका

लखनऊ: टीचर्स-डे पर हर इंसान अपनी जीवन के शिक्षकों को याद कर उन्हें तोहफे देता है और उनकी शिक्षा के लिए धन्यवाद देता है. केजीएमयू में एक ऐसी टीचर भी है जो कभी खुद कैंसर जैसी बीमारी के मरीज हुआ करती थी और अब कैंसर से पीड़ित बच्चों को जिंदगी जीने के नए तरीके सिखा रही हैं.

कैंसर के बाद बदल चुकी थी स्कूली दुनिया
बिहार की रहने वाली सुगंधा मिश्रा अपने जीवन के एक पड़ाव पर खुद कैंसर की पेशेंट थी. जीसीटी यानी जर्म सेल टयूमर जो पेट और आंत के बीच में होता है. बीमारी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा. आज भी लोग कैंसर की बीमारी को छुआछूत बीमारी के रूप में मानते है. कैंसर के इलाज के बाद जब वह वापस अपने स्कूल पहुंचीं तो वह जगह उनके लिए बिल्कुल बदल चुकी थी. उनके दोस्त बात नहीं करते थे.

कैंसर पीड़ित बच्चों को पढ़ा रही है कैंसर पीड़ित रह चुकीं शिक्षिका.
स्कूल में कोई भी पास नहीं बैठता था. टीचर भी उनसे दूर भागते थे. सभी को लगता था कि अगर उन्हें कैंसर है तो बाकियों को भी कैंसर हो जाएगा. कैंसर के इलाज के दौरान उनके बाल झड़ चुके थे और उनकी हालत काफी खराब हो चुकी थी.

कैंसर पीड़ित बच्चों को पढ़ाने का सोचा
कैंसर से पूरी तरह ठीक होने के बाद बीमारी की समझ आ गई तो उन्होंने दूसरे कैंसर से पीड़ित बच्चों की मदद करने का सोच लिया. सुगंधा ने खुद के साथ हुए व्यवहार से सोचा कि ऐसी ही परेशानियों का सामना अन्य कैंसर पीड़ितों को भी करना पड़ता होगा. इसलिए उन्होंने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई के साथ कैंसर पीड़ित बच्चों को भी पढ़ाएंगी. सुगंधा फिलहाल सोशल वर्क में परास्नातक कर रही है और साथ ही अपने दिन का एक हिस्सा किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑकोलॉजी विभाग में बिताती हैं.

यहां पर जो स्कूल जाने वाले बच्चे हैं मैं उनके सिलेबस के आधार पर उन्हें पढ़ाती हूं, जिससे उनकी पढ़ाई पर ज्यादा प्रभाव न पड़े. इसके अलावा इन सभी बच्चों को कुछ और एक्टिविटीज भी करवाती हूं. ताकि उन्हें यह न महसूस हो कि वह अपने घर परिवार से दूर यहां पड़े हैं.
-सुगंधा मिश्रा, शिक्षिका

Intro:लखनऊ। टीचर्स डे पर हर इंसान अपनी जीवन के शिक्षकों को याद कर उन्हें तोहफे देता है और उनकी शिक्षा के लिए धन्यवाद देता है। केजीएमयू में एक ऐसी टीचर भी है जो कभी खुद कैंसर जैसी बीमारी के मरीज हुआ करती थी और अब कैंसर पीड़ित बच्चों को जिंदगी जीने के नए तरीके सिखा रही हैं।


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बिहार की रहने वाली सुगंधा मिश्रा अपने जीवन के एक पड़ाव पर खुद कैंसर की पेशेंट थी। वह कहती हैं कि उन्हें जीसीटी यानी जर्म सेल टयूमर था यह कैंसर पेट और आंत के बीच में होता है। सुगंधा कहती है कि अपनी बीमारी के दौरान मैंने अपना स्कूल छोड़ दिया था और मेरी काफी पढ़ाई इस दौरान नहीं हो पाई थी। मां कहती है कि मैं जहां रहती हूं वहां पर अभी भी कैंसर की बीमारी को छुआछूत कैसी बीमारी के रूप में माना जाता है कैंसर के इलाज के बाद जब मैं वापस अपने स्कूल पहुंची तो मेरे लिए वह जगह बिल्कुल बदल चुकी थी मेरे दोस्त मुझसे बात नहीं करते थे स्कूल में कोई मेरे पास नहीं बैठता था और टीचर भी मुझसे दूर भागते थे सभी को लगता था कि अगर मुझे कैंसर है तो उन्हें भी कैंसर हो जाएगा।

वह कहती हैं कि कैंसर के इलाज के दौरान मेरे बाल झड़ चुके थे और मेरी हालत काफी खराब हो चुकी थी जब मैं पूरी तरह से ठीक हो गई और बीमारी के समझ आ गई तो मुझे लगा कि दूसरे कैंसर से पीड़ित बच्चों को भी ऐसी ही परेशानियों का सामना करना पड़ता होगा इसलिए मैंने यह तय किया कि मैं अपनी पढ़ाई के साथ कैंसर पीड़ित बच्चों को भी पढ़ाऊंगी।

सुगंधा फिलहाल सोशल वर्क में परास्नातक कर रही है और साथ ही अपने दिन का एक हिस्सा किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग में बिताती हैं। वह कहती हैं कि यहां पर जो स्कूल जाने वाले बच्चे हैं मैं उनके सिलेबस के आधार पर उन्हें पढ़ाती हूं ताकि उनकी पढ़ाई पर ज्यादा प्रभाव न पड़े। इसके अलावा इन सभी बच्चों को कुछ और एक्टिविटीज भी करवाती हूं ताकि उन्हें यह न महसूस हो कि वह अपने घर परिवार से दूर यहां पड़े हैं।


Conclusion:इस शिक्षक दिवस पर सुगंधा जैसे शिक्षक ऐसे तमाम लोगों को प्रेरणा देते हैं जो अपने साथ-साथ दूसरों को भी जीवन जीने के लिए अग्रसर रहते हो।

बाइट- सुगंधा मिश्रा


रामांशी मिश्रा
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