लखनऊ : मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए घमासान तेज हो गया है. एक ओर पहले ही दिन से पार्टी के बड़े नेताओं को उतार कर भारतीय जनता पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह यह सीट जीतने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. वहीं समाजवादी पार्टी भी जी-जान से जुटी हुई है. पार्टी का मानना है कि लोकसभा चुनावों से पहले हो रहे इस चुनावों में बढ़त बनाने से सपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलेगी और कार्यकर्ताओं के उत्साह में भी बढ़ोतरी होगी. इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपना प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है, तो कांग्रेस पार्टी सपा को अपना समर्थन देगी. ऐसे में यह उप चुनाव भाजपा और सपा की सीधी लड़ाई बन गई है. स्वाभाविक है कि किसी के लिए भी मुकाबला जीतना आसान नहीं होगा.
2022 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में घोसी विधानसभा सीट से सपा प्रत्याशी रहे दारा सिंह चौहान ने जीत हासिल की थी. इससे पहले वह भाजपा में थे और लगभग पांच साल कैबिनेट मंत्री पद पर रहकर सत्ता का सुख भी भोगते रहे. टिकट कटने के डर से उन्होंने ने पाला बदल लिया था. चुनाव नतीजों के बाद भाजपा की सत्ता में दोबारा वापसी हुई. एक साल बाद समीकरण बदले और दारा सिंह चौहान एक बार फिर भाजपा के नजदीक आए गए, जिसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी और विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर भाजपा के टिकट पर दोबारा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. गौरतलब है कि दारा सिंह चौहान का राजनीतिक जीवन बहुजन समाज पार्टी से आरंभ हुआ था. वह 1996 में पहली बार राज्यसभा के सदस्य बने. सन दो हजार में उन्हें दोबारा राज्यसभा जाने का मौका लगा. 2009 के लोकसभा चुनाव में वह बसपा उम्मीदवार के तौर पर घोसी संसदीय सीट से चुने गए. फरवरी 2015 में दारा सिंह चौहान ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में दिल्ली में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. 2017 के विधानसभा चुनावों में वह मधुबन सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की, जिसके बाद योगी आदित्यनाथ सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था.
समाजवादी पार्टी ने दारा सिंह चौहान के खिलाफ विगत 13 अगस्त को घोसी विधानसभा सीट से सुधाकर सिंह को मैदान में उतारने की घोषणा की है. सुधाकर सिंह ने दारा सिंह चौहान के नामांकन दाखिल करने के एक दिन बाद आज अपना पर्चा भरा. वह इस सीट से 2017 में भी चुनाव लड़ चुके हैं, किंतु तब उन्हें भाजपा उम्मीदवार फागू चौहान से हार का सामना करना पड़ा था. 2019 के उप चुनाव में भी सुधाकर सिंह इसी सीट पर भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरे थे, लेकिन तब उन्हें भाजपा के विजय राजभर से पराजय का सामना करना पड़ा था. इस सीट पर यदि जातीय समीकरणों की बात करें, तो यहां डेढ़ लाख से ज्यादा पिछड़ी जाति के मतदाता हैं. लगभग सत्तर हजार सवर्ण और साठ हजार मुस्लिम मतदाता हैं. घोसी सीट पर साठ हजार से ज्यादा दलित मतदाता भी अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि अन्य जातियों के लगभग सत्तर हजार मतदाता चुनावों पर अपना प्रभाव डालते हैं. बहुजन समाज पार्टी के चुनाव मैदान में न उतरने से लड़ाई सीधी हो गई है. यदि बसपा कोई मुस्लिम प्रत्याशी उतार देती तो वोटों का बंटवारा हो सकता था, जो अब नहीं होगा. इसका सीधा लाभ सपा को मिलेगा, वहीं बसपा के प्रत्याशी उतरने पर जो दलित मतदाता बसपा में जाता, अब वह बड़ी संख्या में भाजपा में जा सकता है. इस तरह यहां मुकाबला बहुत ही रोचक हो गया है. सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह की भी क्षेत्र में अच्छी पकड़ मानी जाती है, तो दारा सिंह कद्दावर और पुराने नेता हैं. ऐसे में यह कहना कि कौन किस पर कितना भारी पड़ रहा है, बहुत कठिन है.
आज समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह नामांकन कराने पहुंचे, तो गेट पर अंदर जाने को लेकर पुलिस से झड़प और कहासुनी हुई. सुधाकर सिंह के बेटे और पूर्व ब्लाक प्रमुख सुजीत सिंह ने प्रशासन पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि 'प्रशासन गलत रवैया अपना रहा है. इसका जवाब घोसी की जनता देगी.' इससे पहले बुधवार को भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के नामांकन में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक पहुंचे, वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भी दारा सिंह के पक्ष में जनसभा कर वोट मांगे.