लखनऊ: प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कई इमामबाड़े हैं. यहां के लोग सभी इमामबाड़ों से भली-भांति परिचित भी हैं. छोटा इमामबाड़ा, शाहनजफ इमामबाड़ा और बड़ा इमामबाड़ा सभी अपनी पहचान बनाए हुए हैं. वहीं राजधानी में एक ऐसा इमामबाड़ा भी है. जिसे कम लोग ही जानते हैं. सोशल मीडिया के दौर में अगर आप इंटरनेट खंगालेंगे तो इस इमामबाड़े के बारे में दो-चार लाइन के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा. इसे काला इमामबाड़ा कहा जाता है.
300 साल पुराना है काला इमामबाड़ा
लखनऊ के चौक क्षेत्र में यह इमामबाड़ा स्थित है. जो काले रंग से रंगा हुआ है. जैसे और इमाम बालों की देखरेख होती है वैसे इसकी नहीं होती. अगर इतिहास के पन्नों पर एक नजर डालें तो यह इमामबाड़ा आज से करीब 300 साल से भी कुछ ज्यादा पुराना है.
क्यों पड़ा यह नाम
इस इमामबाड़े के सभी दरवाजे और दीवारें काले रंग से रंगी है. इस वजह से इसको काला इमामबाड़े का नाम दिया गया. इस मामले पर जब ईटीवी भारत ने शहर के इतिहासकार योगेश प्रवीण से बात की तो उन्होंने इसके बारे में विस्तार से बताया.
इमामबाड़ों का शहर है लखनऊ
इतिहासकार योगेश प्रवीण ने बताया कि वैसे तो लखनऊ को इमामबाड़ों का शहर कहते हैं. इसकी वजह यह है कि लखनऊ में जितने इमामबाड़े हैं वह पूरी दुनियां में नहीं हैं. अफसोस की बात यह है कि वर्तमान समय में काफी सारे इमामबाड़ों की दुर्दशा है, देखभाल न होने की वजह से इनका यह हाल है.
दक्षिण दिशा की ओर होते हैं सभी इमामबाड़े
योगेश प्रवीण ने बताया कि राजधानी के बाकी सभी इमामबाड़े दक्षिण दिशा की तरफ बनाये गए हैं, लेकिन काला इमामबाड़े का द्वार पूर्व की तरफ है. जो अपने आप में खास बात है.
पीर बुखारा इलाके में हैं
उन्होंने बताया कि यह काला इमामबाड़ा पीर बुखारा इलाके में पड़ता है. यह पीर बुखारा से आये थे इस वजह से इस इलाके का नाम पीर बुखारा पड़ा. यह इमामबाड़ा उनके मामा सालारजंग के नाम पर पड़ा. आज इसको वह मुकाम हासिल नहीं हुआ जो औरों को हासिल है. शहर के पुराने इलाके में स्थित यह काला इमामबाड़ा करीब 300 साल पुराना है. यहां मुस्लिम समुदाय के लोग मजलिस करते हैं, लेकिन आज यह इमामबाड़ा गुमनामी होता जा रहा है.