लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को भारतीय जनता पार्टी के सामने एक बार फिर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. मोदी ब्रिगेड को हराने के लिए दोनों दलों ने इस उम्मीद के साथ गठबंधन किया था कि पिछले चुनाव में उन्हें मिले वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 51 फीसद वोट हासिल करके सपा-बसपा गठबंधन को भी परास्त कर दिया.
बीजेपी की बंपर जीत के ये रहे मुख्य कारण
- राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है बीजेपी की जीत हिंदुत्व की विचारधारा के चलते हुई है.
- यूपी में सपा-बसपा ने हाथ तो मिलाया, लेकिन कार्यकर्ताओं के हाथ नहीं मिल सके.
- बीजेपी ने राष्ट्रवाद और हिदुंत्व का कार्ड खेला, जिसके आगे सभी जातियां बीजेपी की तरफ मुड़ गईं.
- विपक्षी बीजेपी को मुस्लिम विरोधी कहने में व्यस्त रहे.
- बीजेपी ने मुस्लिम महिलाओं को अपने पक्ष में लाने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले तीन तलाक का मुद्दा का जोर-शोर से उठाया.
बीजेपी ने वोट लोकसभा चुनाव में जीत के लिए 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा. उसमें बीजेपी ने सभी जाति धर्म के मतदाताओं को जोड़ने के का लक्ष्य निर्धारित किया और उनसे संपर्क स्थापित किया. विपक्षी भाजपा को मुस्लिम विरोधी कहते रहे. बावजूद इसके बीजेपी ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी काम किया. संगठन को विस्तार दिया, मुस्लिमों को जोड़ा. कई रैलियों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जुटाया गया, ताकि कट्टर हिंदुत्व से साफ्ट हिंदुत्व वाली पार्टी का संदेश दिया जा सके. इसी प्रकार से बीजेपी ने हर पहलू पर काम किया.
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने सोचा कि बसपा के साथ गठबंधन कर उन्हें सारा पिछड़े और दलित का वोट हासिल हो जाएगा, और वे चुनाव जीत लेंगे. आत्मविश्वास इतना कि सवर्णों को अपने पाले में बुलाने के कोई प्रयास कतई नहीं किए. अगर किए भी हों तो वह दिखा नहीं. प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अखिलेश यादव ने यहां तक कहा कि देश की सुविधाओं पर महज 10 फीसद अगड़ों का कब्जा है. उनसे छीन कर पिछड़ों-दलितों को दिलाऊंगा. जबकि 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए दलित-ब्राह्मण गठजोड़ कर बसपा ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई. वहीं सपा की 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने में भी सवर्णों का योगदान रहा, वह भले ही कुछ फीसद ही रहा हो.
बीजेपी आम जनता को यह बताने में सफल रही कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा की अध्यक्ष मायावती प्रधानमंत्री बनने नहीं जा रहे हैं. सपा और बसपा मिलकर उतनी सीटों पर भी चुनाव नहीं लड़ रहे थे, जितनी की सरकार बनाने के लिए आवश्यकता थी. इस वजह से भी वोट ट्रांसफर होने के बजाय बीजेपी के खाते में चला गया. सपा-बसपा में खासकर सपा के समर्थक यह कहते हुए पाए गए कि वे विधानसभा चुनाव में अखिलेश के साथ हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में मोदी के साथ, इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व कार्ड खेलने में भी कोई गुरेज नहीं किया. इस वजह से भी सभी जातियों के लोग भाजपा के साथ खड़े हो गए. कुल मिलाकर सपा-बसपा ने जिस मंसूबे के साथ गठबंधन किया वह पूरा नहीं हो सका.