लखनऊ: मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ केंद्रीय मंत्री एसपी बघेल ने नामांकन करके यह संकेत दिया है कि भाजपा किसी भी हाल में अखिलेश यादव को वॉकओवर देने के लिए तैयार नहीं है. एसपी बघेल को चुनाव में उतारकर केवल जातिगत आधार पर पाल, बघेल समाज और दलितों को जोड़ने का काम भाजपा कर रही है. वहीं, दूसरी ओर बड़े नेता को अखिलेश के सामने उतारकर भाजपा चुनौती को बड़ा कर रही है. अखिलेश यादव के खिलाफ भाजपा का यह प्रयोग बता रहा है कि फिलहाल पार्टी किसी भी चीज को हल्के में लेने के पक्ष में नहीं है. भाजपा इसी बहाने अखिलेश यादव को जाति बनाम विकास के नारे पर घेरना चाह रही हैं.
अखिलेश यादव ने करहल विधानसभा सीट से नामांकन कर दिया. इसके कुछ देर बाद केंद्रीय मंत्री भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एसपी बघेल ने भी इस सीट से अपना नामांकन किया. बघेल को इस सीट पर लाने के पीछे भाजपा की एक सोची समझी रणनीति है. भाजपा इस सीट पर यह जताना चाहती है कि अखिलेश यादव यहां जातिवाद यानी एमवाई समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं. बघेल को आगे करके पार्टी यहां विकास का मुद्दा जोरशोर से उठाना चाहती है. इससे लड़ाई जातिवाद बनाम विकास की हो जाएगी. कद्दावर नेता को उतारने के पीछे बीजेपी की दूसरी रणनीति यह है कि अखिलेश के बराबर ही बघेल को भी मीडिया की ओर से अंटेशन मिलेगा. अगर प्रत्याशी हल्का होता तो अखिलेश के लिए जीत की राह बेहद आसान हो जाती.
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इस बारे में पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आदेश शुक्ला बताते हैं कि ऐसा होता है. यह ट्रेंड 2014 में देखने को मिला, जब वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ने आए और कांग्रेस के राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी में कुमार विश्वास और स्मृति ईरानी ने चुनाव लड़ा. 2019 में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हरा भी दिया. पूर्ण इतिहास रहा है जैसे शरद यादव, लालू यादव के खिलाफ चुनाव लड़े थे. सुषमा स्वराज बेल्लारी में इंदिरा गांधी के साथ चुनाव लड़ी थीं. ऐसा करके पार्टी बताती है कि बड़े नेता को आसानी से नहीं जीतने दिया जाएगा.
यह भी एक वजह है
एसपी बघेल के बारे में बताया जा रहा है कि करहल जिस मैनपुरी क्षेत्र में है वहां से सबसे नजदीक में रहने वाले केंद्रीय मंत्री हैं. इटावा की सीमा पर आगरा है. मंत्री होने के नाते उनको लड़ाया गया है. इसके साथ ही वे बड़े पिछड़े नेता भी माने जाते हैं. करहल विधानसभा सीट पर यादवों के अतिरिक्त पिछड़ों का वोट करीब 30 फीसदी है. इसके जरिए भाजपा अखिलेश यादव को घेरना चाहती है. इस वजह से पार्टी नेतृत्व को करहल से सबसे उपयुक्त नाम एसपी बघेल का ही लगा. इस सीट पर करीब एक लाख यादव वोटर है जो कि अखिलेश का आधार है. इसके साथ ही बड़ी संख्या में मुसलमानों की आबादी है.
अपर्णा यादव ने भी जताई थी यहां से चुनाव लड़ने की इच्छा
2 दिन पहले जब अपर्णा यादव से पत्रकारों ने पूछा था कि क्या वे करहल से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहती हैं. तब उन्होंने जवाब दिया था कि अगर पार्टी चाहेगी तो वह अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी. हालांकि करहल विधानसभा सीट पर अपर्णा यादव को बाहरी माना जाएगा इसलिए उनको टिकट नहीं दिया गया.
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