लखनऊ: गांधीवादी समाजवाद के नारे के साथ 6 अप्रैल 1980 को राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाली भारतीय जनता पार्टी कुछ ही वर्षों बाद राम रूपी नैया पर सवार हो गई. या फिर यूं कहें कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का हाथ थाम लिया. यह बदलाव करते ही पार्टी ने गति पकड़नी शुरू की. 1991 के चुनाव में 'भाजपा का कहना साफ राम रोटी और इंसाफ' नारा दिया गया. धीरे-धीरे करके हिंदुत्व की तरफ विपक्ष का भी झुकाव देखने को मिला. मौजूदा समय देश की सियासत में टोपी लगाने की नहीं, बल्कि टीका लगाने की राजनीति ने जोर पकड़ लिया है.
'अंधेरा छटेगा कमल खिलेगा'
देश की सियासत में उथल-पुथल के बीच छह अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई. जनता पार्टी से अलग होकर बनी भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई अध्यक्ष हुए. अटल जी ने पार्टी की स्थापना पर दिए अपने भाषण में गांधीवादी समाजवाद पर पार्टी को ले चलने की बात कही. अटल की वह पंक्ति 'अंधेरा छटेगा और कमल खिलेगा' इसी भाषण का अंश था. गांधीवादी समाजवाद का पार्टी के भीतर विरोध भी हुआ. अटल का कद इतना ऊंचा हो चुका था कि विरोध बौना पड़ा. यह बात अलग है कि भाजपाइयों के बीच गांधीवादी समाजवाद कमजोर पड़ गया. स्वयंसेवकों की इस पार्टी ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाया और इसने पार्टी को. आज देश के 60 फीसदी से अधिक हिस्सों में भाजपा की सरकारें हैं.
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1951 में ही बोया गया था बीज
राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि भाजपा का बीज जनसंघ के तौर पर 1951 में ही बोए गए थे. जनसंघ के निर्माण की प्रक्रिया मई 1951 में शुरू हुई. 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना हुई. एकात्म मानववाद पार्टी का मूल दर्शन है. पार्टी का मानना है कि यह मूल दर्शन मनुष्य को समग्र विचार करना सिखाता है. यह दर्शन मनुष्य और समाज के बीच कोई संघर्ष नहीं देखता बल्कि परिवार, गांव, राज्य, देश और सृष्टि तक उसकी पूर्णता देखता है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद को लेकर पार्टी को एक दिशा दी. आज पार्टी उसी दिशा में बढ़ते हुए काम करने की बात कर रही है.