लखनऊ : केंद्र सरकार की पैंतालीस दिन अथवा उससे ज्यादा दिन की अस्थाई नौकरियों में भी पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण (Reservation in temporary jobs) का लाभ मिलेगा. केंद्र की भाजपा सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी देते हुए बताया कि यह दोहराया जाता है कि केंद्र सरकार की 45 दिन से अधिक की अस्थाई नौकरियों में आरक्षण व्यवस्था लागू रहेगा. सरकार ने सभी मंत्रालयों के विभागों को सख्ती के साथ इसका अनुपालन करने के लिए भी कहा है. सरकार के इस फैसले पर हमने कुछ छात्र-छात्राओं और विशेषज्ञ से बात की. जानिए वह इसे लेकर क्या कहते हैं.
संविदा कर्मियों का हो रहा शोषण : लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र विनीत कुमार यादव कहते हैं 'भारत एक लोक कल्याणकारी देश है. इसमें संविदा की नौकरी तो होनी ही नहीं चाहिए. यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि अब मंत्रालयों में संविदा की भर्तियां हो रही हैं. संविदा कर्मी के रूप में भर्ती हो रहे लोगों का एक तरह से शोषण हो रहा है. आगे चलकर यही लोग परमानेंट किए जाने को लेकर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन करते हैं. उनकी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है. तमाम तरह की दिक्कतें हैं. प्राइवेट सेक्टर का हाल सभी को पता है. नियमित कर्मचारियों की पुरानी पेंशन भी बहाल नहीं कर रही है. जिस आरक्षण की बात हो रही है, वह संविदा कर्मियों को पहले भी मिलता रहा है. इसमें कोई नई बात नहीं है. इसे सिर्फ दोबारा अधिसूचित किया गया है. एक प्रतिशत लोगों को भी इस आरक्षण का लाभ नहीं मिलने वाला है.' एक अन्य छात्र आशुतोष सिंह कहते हैं 'पूर्व में जहां जनगणना की बात थी, अभी उस विषय में भी कुछ नहीं किया गया है. केंद्र सरकार की संविदा नौकरियों में भी यदि आरक्षण हो रहा है, तो यह बहुत गलत है.'
लखनऊ विश्वविद्यालय की ही छात्रा स्तुति कहती हैं 'मेरी नजर में यह आरक्षण इतना भी ठीक नहीं है. पहले से ही काफी आरक्षण दिया जा रहा है. यदि आर्थिक आधार पर यह आरक्षण दिया जाता तो ज्यादा बेहतर होता.' एक अन्य छात्रा अंजलि स्तुति की बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं 'यह आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता, तो उसका समर्थन किया जा सकता था. उदाहरण के लिए यदि हमारे पिता को आरक्षण मिल गया, उनकी आर्थिक समस्याओं का समाधान हो गया. अब उसी आधार पर हमें आरक्षण क्यों मिलना चाहिए, बिना यह विचार किए हुए कि मैं इस योग्य हूं भी या नहीं. भले हममें प्रतिभा न हो, लेकिन हमें आरक्षण मिले जा रहा है. जिनके पास प्रतिभा है, वह पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं. अब इसकी वजह से उनका संघर्ष और बढ़ जाएगा.'
छात्र शिवांग तिवारी कहते हैं 'संविदा की नौकरियों के लिए यह जो बात हुई है, तो उसमें मेरा मत यह है कि अभी तक सरकारी सिस्टम तो बना ही है. विश्वविद्यालय से लेकर सभी प्रकार की नौकरियों में आरक्षण दिया ही जाता है. इसके अलावा फीस आदि में भी तमाम छूट आदि प्राप्त होती है. अब यह नया नियम आ गया है. आखिर समानता का अधिकार बचेगा कहां? इसमें सरकार की खुद की कमी है. वह यह क्यों नहीं पूछते कि सरकार हमें शुरू से अच्छी और समान शिक्षा क्यों नहीं देती है. यदि हर देशवासी को समान रूप से शिक्षा मिले और मानसिक स्तर बढ़ाया जाए, साथ ही परीक्षा पास करने लायक बनाया जाए, तो यह स्थिति नहीं आएगी. यदि किसी पिछड़े समाज के परिवार की आय पांच करोड़ है और सामान्य परिवार की पांच लाख भी नहीं है, तब भी वह पिछड़े ही रहेंगे. ऐसे में पिछड़े समाज के व्यक्ति का यह तर्क नहीं होना चाहिए कि वह पिछड़े क्यों हैं?'
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ अमित कुमार कुशवाहा कहते हैं 'सरकार सामाजिक न्याय के साथ है और किसी भी स्तर के सामाजिक न्याय की अवहेलना को बर्दाश्त नहीं करेगी. सरकार ने बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि सामाजिक न्याय अस्थाई नौकरियों में भी आरक्षण का तरीका अपनाया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा आरक्षित वर्ग के लोग इन नौकरियों में आरक्षण पा सकें. जिससे जो समरस समाज की जो परिकल्पना है, सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास उसे मजबूत किया जा सके. अक्सर विपक्षी पार्टियां इस पर लांछन लगाती रहती हैं कि सरकार आरक्षण को कम कर रही है अथवा सरकार आरक्षण के खिलाफ है. सरकार का यह फैसला न सिर्फ उसकी नीयत को दर्शाता है, बल्कि उसकी दूरदर्शिता का भी इससे पता चलता है.'