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BBAU सुलझाएगा मृदा और कृषि संबंधित समस्याएं, जानें किसने दी जिम्मेदारी

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय अब जैविक खेती को गांवों तक पहुंचाएगा. इसके लिए विवि को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-इक्विटी, एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट विभाग नई दिल्ली ने मंजूरी दी है.

कृषि संबंधित समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी
कृषि संबंधित समस्याओं को दूर करने की जिम्मेदारी
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Published : Jan 8, 2021, 6:58 PM IST

लखनऊ: राजधानी के आशियाना क्षेत्र स्थित बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के पर्यावरण विज्ञान विभाग को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-इक्विटी, एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट विभाग नई दिल्ली ने 'उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश) में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) हब' नामक एक बड़ी परियोजना की जिम्मेदारी सौंपी है. इसके तहत कानपुर देहात क्षेत्र, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के 6-6 गांव में मिट्टी के सुधार और अन्य कृषि आधारित मौलिक समस्याओं के समाधान के लिए बीबीएयू को मंजूरी मिली है.

बीबीएयू लखनऊ में प्रो. नवीन कुमार अरोड़ा की टीम के अलावा संबंधित राज्यों के तीन एनजीओ भी इस परियोजना में क्षेत्रीय साझेदार के रूप में काम करेंगे. प्रो. अरोड़ा इस परियोजना के प्रधान अन्वेषक (पीआई) हैं. परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए और गांवों में उचित पैदावार के लिए अन्य तीन क्षेत्रीय साझेदारों का नेतृत्व भी करेंगे.

जैव उर्वरक के माध्यम से मिट्टी को बनाया उपजाऊ
प्रो. अरोड़ा की टीम के पास लाभदायक और महत्वपूर्ण जीवाणु उपभेद है, जो जैविक भागीदारी के माध्यम से मिट्टी को क्षारीय से उपजाऊ बनाने में सक्षम है. प्रो. अरोड़ा ने विकसित जैव उर्वरक के उपयोग से क्षारीय मिट्टी को उपजाऊ बनाने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है. वर्ष 2014 से अब तक वे और उनकी टीम क्षारीय मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कुछ गांवों में विकसित जैव उर्वरक को लागू कर रहे हैं.

इसके परिणाम बहुत सराहनीय रहे हैं. जैविक संसाधनों के माध्यम से भूमि का सफलतापूर्वक सुधार किया गया था और अब किसान वहां संवेदनशील फसलों की खेती भी कर रहे हैं. इस विकसित जैव उर्वरक में किसी भी अन्य कृत्रिम रसायनों की तुलना में क्षारीय मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने के अधिक परिणाम मिले हैं.

पूर्व में प्रस्तुत किए शोध
इस जैव उर्वरक के परिणाम बहुत अच्छे प्राप्त हुए हैं. इस पर प्रोफेसर अरोड़ा के समूह ने अनेक प्रसिद्ध और हाई इम्पैक्ट वाली अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं. ये परिणाम प्रस्तावित परियोजना के लिए एक आधार बने और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग नई दिल्ली ने प्रो. अरोड़ा को इस परियोजना के लिए सहायता राशि दी.

इस बार इस परियोजना के माध्यम से प्रो. अरोड़ा का उद्देश्य इस तकनीक को व्यापक पैमाने पर विस्तारित करना और किसानों को हर सर्वोत्तम संभव तरीके से मदद करना है. यह परियोजना किसानों की आय में वृद्धि करने में भी मदद करेगी. परियोजना का मुख्य उद्देश्य जैविक तरीकों का विकास करना है और विशेष रूप से तीन राज्यों के चयनित क्षेत्रों में नियमित रूप से जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से अनुसूचित जाति (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) के किसानों को इसका लाभ प्रदान कराना है. परियोजना के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य चयनित क्षेत्रों में मिट्टी और पानी के नमूनों की जांच एवं मूल्यांकन, मिट्टी और जल संरक्षण के लिए स्थानीय आबादी को समस्याओं के बारे में जागरूकता और समाधान प्रदान करना शामिल है.

जैव-प्रौद्योगिकी आधारित खेती की कमी
आज तक जैव-प्रौद्योगिकी आधारित खेती की इन क्षेत्रों में कमी है और केवल रासायनिक विधियों द्वारा पुर्नगृहण की कोशिश की गई है, जो कृषि-प्रणालियों के लिए गैर-टिकाऊ और हानिकारक हैं. इस परियोजना के माध्यम से प्रोफेसर अरोड़ा और उनकी टीम स्थायी खेती के लिए किसानों में कौशल विकास के साथ-साथ भूमि के पुर्नगृहण के लिए वैज्ञानिक तकनीकी प्रदान करेंगे.

परियोजना का उद्देश्य एक स्थायी तरीके से आजीविका, पोषण और सहायता प्राप्त करने के लिए किसान परिवारों को सक्षम बनाना होगा. चयनित राज्यों के इन गांवों में, किसानों को जैव उर्वरक विकसित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. इसका उपयोग वे बागवानी उत्पादन, उत्पादों की मार्केटिंग, किसानों और समुदाय की पारिवारिक आय बढ़ाने, उच्च और मूल्य वर्धित उत्पादों के उत्पादन के लिए कर सकते हैं.

सीएफसी को विकसित करना भी उद्देश्य
इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक उद्देश्य बीबीएयू में एक सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) विकसित करना भी है. सीएफसी एक बेहतर गुणवत्ता और प्रमाणित बीज प्रदान करने, स्वदेशी किस्मों के संरक्षण पर प्रशिक्षण, जैव उर्वरक का निर्माण, फसल कटाई के बाद के नुकसान की रोकथाम के लिए प्रौद्योगिकी, संसाधन प्रबंधन, जल और कृषि अपशिष्ट प्रबंधन के साथ आधुनिक कृषि उपकरणों के प्रभावी उपयोग के बारे में किसानों और समुदाय में जागरूकता प्रदान कराने के लिए उपयोगी होगा.

यह परियोजना किसानों के कृषि उत्पादों की मार्केटिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए होगी, जो बाजार और किसानों के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित करेगी. चयनित गांवों में बागवानी फसलों को भी बेहतर बनाया जाएगा. सीएफसी के अंतर्गत एक किसान उत्पादन संगठन (एफपीओ) भी बनाया जाएगा, जो उत्पादों को (बागवानी और जैविक उत्पाद) बनाने के लिए कृषि उपज के उपयोग में मदद करेगा. क्रेंद्र का लक्ष्य इन्हीं गांवों से उद्यमियों को विकसित करना और प्रत्येक तीन राज्यों में स्टार्ट-अप शुरू करना भी होगा.

बीबीएयू, किसानों एवं आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) प्रयोगशालाओें के बीच मध्यस्थ स्थापित करेगा. इसके माध्यम से किसानों को स्थिर फसलों की किस्में, स्वदेशी जर्मप्लाज्म/किस्मों का संरक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों आदि की सुविधा प्रदान कराई जाएगी.

प्रो. नवीन कुमार अरोड़ा और उनकी टीम इस परियोजना की सहायता से इन क्षेत्रों की स्थानीय आबादी को जैविक खेती, कृषि अपशिष्ट प्रबंधन, उत्पादों में मूल्यवर्धन और किसानों की मूलभूत समस्याओं के समाधान के बारे में जागरूक करने का काम करेगी. साथ ही जैविक खेती को चिह्नित गांवों तक पहुंचाएगी.

लखनऊ: राजधानी के आशियाना क्षेत्र स्थित बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के पर्यावरण विज्ञान विभाग को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-इक्विटी, एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट विभाग नई दिल्ली ने 'उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश) में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) हब' नामक एक बड़ी परियोजना की जिम्मेदारी सौंपी है. इसके तहत कानपुर देहात क्षेत्र, उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के 6-6 गांव में मिट्टी के सुधार और अन्य कृषि आधारित मौलिक समस्याओं के समाधान के लिए बीबीएयू को मंजूरी मिली है.

बीबीएयू लखनऊ में प्रो. नवीन कुमार अरोड़ा की टीम के अलावा संबंधित राज्यों के तीन एनजीओ भी इस परियोजना में क्षेत्रीय साझेदार के रूप में काम करेंगे. प्रो. अरोड़ा इस परियोजना के प्रधान अन्वेषक (पीआई) हैं. परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए और गांवों में उचित पैदावार के लिए अन्य तीन क्षेत्रीय साझेदारों का नेतृत्व भी करेंगे.

जैव उर्वरक के माध्यम से मिट्टी को बनाया उपजाऊ
प्रो. अरोड़ा की टीम के पास लाभदायक और महत्वपूर्ण जीवाणु उपभेद है, जो जैविक भागीदारी के माध्यम से मिट्टी को क्षारीय से उपजाऊ बनाने में सक्षम है. प्रो. अरोड़ा ने विकसित जैव उर्वरक के उपयोग से क्षारीय मिट्टी को उपजाऊ बनाने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है. वर्ष 2014 से अब तक वे और उनकी टीम क्षारीय मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कुछ गांवों में विकसित जैव उर्वरक को लागू कर रहे हैं.

इसके परिणाम बहुत सराहनीय रहे हैं. जैविक संसाधनों के माध्यम से भूमि का सफलतापूर्वक सुधार किया गया था और अब किसान वहां संवेदनशील फसलों की खेती भी कर रहे हैं. इस विकसित जैव उर्वरक में किसी भी अन्य कृत्रिम रसायनों की तुलना में क्षारीय मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने के अधिक परिणाम मिले हैं.

पूर्व में प्रस्तुत किए शोध
इस जैव उर्वरक के परिणाम बहुत अच्छे प्राप्त हुए हैं. इस पर प्रोफेसर अरोड़ा के समूह ने अनेक प्रसिद्ध और हाई इम्पैक्ट वाली अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं. ये परिणाम प्रस्तावित परियोजना के लिए एक आधार बने और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग नई दिल्ली ने प्रो. अरोड़ा को इस परियोजना के लिए सहायता राशि दी.

इस बार इस परियोजना के माध्यम से प्रो. अरोड़ा का उद्देश्य इस तकनीक को व्यापक पैमाने पर विस्तारित करना और किसानों को हर सर्वोत्तम संभव तरीके से मदद करना है. यह परियोजना किसानों की आय में वृद्धि करने में भी मदद करेगी. परियोजना का मुख्य उद्देश्य जैविक तरीकों का विकास करना है और विशेष रूप से तीन राज्यों के चयनित क्षेत्रों में नियमित रूप से जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से अनुसूचित जाति (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) के किसानों को इसका लाभ प्रदान कराना है. परियोजना के उद्देश्यों में से एक उद्देश्य चयनित क्षेत्रों में मिट्टी और पानी के नमूनों की जांच एवं मूल्यांकन, मिट्टी और जल संरक्षण के लिए स्थानीय आबादी को समस्याओं के बारे में जागरूकता और समाधान प्रदान करना शामिल है.

जैव-प्रौद्योगिकी आधारित खेती की कमी
आज तक जैव-प्रौद्योगिकी आधारित खेती की इन क्षेत्रों में कमी है और केवल रासायनिक विधियों द्वारा पुर्नगृहण की कोशिश की गई है, जो कृषि-प्रणालियों के लिए गैर-टिकाऊ और हानिकारक हैं. इस परियोजना के माध्यम से प्रोफेसर अरोड़ा और उनकी टीम स्थायी खेती के लिए किसानों में कौशल विकास के साथ-साथ भूमि के पुर्नगृहण के लिए वैज्ञानिक तकनीकी प्रदान करेंगे.

परियोजना का उद्देश्य एक स्थायी तरीके से आजीविका, पोषण और सहायता प्राप्त करने के लिए किसान परिवारों को सक्षम बनाना होगा. चयनित राज्यों के इन गांवों में, किसानों को जैव उर्वरक विकसित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. इसका उपयोग वे बागवानी उत्पादन, उत्पादों की मार्केटिंग, किसानों और समुदाय की पारिवारिक आय बढ़ाने, उच्च और मूल्य वर्धित उत्पादों के उत्पादन के लिए कर सकते हैं.

सीएफसी को विकसित करना भी उद्देश्य
इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक उद्देश्य बीबीएयू में एक सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) विकसित करना भी है. सीएफसी एक बेहतर गुणवत्ता और प्रमाणित बीज प्रदान करने, स्वदेशी किस्मों के संरक्षण पर प्रशिक्षण, जैव उर्वरक का निर्माण, फसल कटाई के बाद के नुकसान की रोकथाम के लिए प्रौद्योगिकी, संसाधन प्रबंधन, जल और कृषि अपशिष्ट प्रबंधन के साथ आधुनिक कृषि उपकरणों के प्रभावी उपयोग के बारे में किसानों और समुदाय में जागरूकता प्रदान कराने के लिए उपयोगी होगा.

यह परियोजना किसानों के कृषि उत्पादों की मार्केटिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए होगी, जो बाजार और किसानों के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित करेगी. चयनित गांवों में बागवानी फसलों को भी बेहतर बनाया जाएगा. सीएफसी के अंतर्गत एक किसान उत्पादन संगठन (एफपीओ) भी बनाया जाएगा, जो उत्पादों को (बागवानी और जैविक उत्पाद) बनाने के लिए कृषि उपज के उपयोग में मदद करेगा. क्रेंद्र का लक्ष्य इन्हीं गांवों से उद्यमियों को विकसित करना और प्रत्येक तीन राज्यों में स्टार्ट-अप शुरू करना भी होगा.

बीबीएयू, किसानों एवं आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) प्रयोगशालाओें के बीच मध्यस्थ स्थापित करेगा. इसके माध्यम से किसानों को स्थिर फसलों की किस्में, स्वदेशी जर्मप्लाज्म/किस्मों का संरक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों आदि की सुविधा प्रदान कराई जाएगी.

प्रो. नवीन कुमार अरोड़ा और उनकी टीम इस परियोजना की सहायता से इन क्षेत्रों की स्थानीय आबादी को जैविक खेती, कृषि अपशिष्ट प्रबंधन, उत्पादों में मूल्यवर्धन और किसानों की मूलभूत समस्याओं के समाधान के बारे में जागरूक करने का काम करेगी. साथ ही जैविक खेती को चिह्नित गांवों तक पहुंचाएगी.

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