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प्रदेश में कोरोना के बढ़ते ग्राफ के बीच इन नौकरियों पर लगाई रोक, जानिए वजह

कोरोना ने फिर से पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. 31 मार्च को प्रदेश भर के जिला अस्पताल से करीब पांच हजार स्टाफ को नौकरी से हटाया गया है, यह कर्मचारी साल 2020 में कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए आउटसोर्सिंग से हर जिले में रखे गए थे.

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Published : Apr 7, 2023, 3:17 PM IST

लखनऊ : मौजूदा समय में लगातार कोविड के मरीज बढ़ रहे हैं. चिकित्सा जगत में सुधार के लिए प्रदेश सरकार कई बड़े-बड़े कदम उठा रही है, लेकिन इस बीच जब खुद सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक दिशा निर्देश दे रहे हैं कि कोविड के बढ़ते मामलों के तहत सरकारी चिकित्सालय में तमाम व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं. ऑक्सीजन से लेकर वेंटीलेटर अस्पतालों में पर्याप्त हों. इसके अलावा सभी सरकारी अस्पतालों में कोरोना को लेकर बेड आरक्षित किया जाएं. इस बीच एनएचएम नेशनल हेल्थ मिशन की निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने स्टाफ की भर्ती पर रोक लगा दिया है. इतना ही नहीं बल्कि 31 मार्च को प्रदेश भर के जिला अस्पताल से करीब पांच हजार स्टाफ को नौकरी से हटाया गया है.

प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में स्टाफ कर्मचारियों की कमी के कारण तमाम दिक्कतें होती हैं. बात अगर राजधानी की करें तो चार प्रमुख जिला अस्पताल हैं, जहां पर स्टाफ की कमी है. सिविल अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल, लोकबंधु अस्पताल और बीआरडी अस्पताल इन चारों ही अस्पतालों में कहीं भी वेंटिलेटर टेक्नीशियन नहीं हैं. स्टाफ कर्मचारियों को ही वेंटिलेटर की ट्रेनिंग दे दी जाती है, लेकिन कोई एक्सपर्ट नहीं है. कई बार इस मामले को लेकर अस्पताल के डॉक्टर में तनातनी भी हो जाती है. प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों से कोरोना के इलाज और जांच में कार्यरत लगभग पांच हजार संविदा कर्मियों को बीते 31 मार्च को हटा दिया गया है. यह कर्मचारी एनएचएम के तहत साल 2020 में कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए आउटसोर्सिंग से हर जिले में रखे गए थे. हर अस्पताल की आवश्यकता के अनुसार, जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारी की डिमांड पर अलग-अलग संख्या में संविदा कर्मचारी उपलब्ध कराए गए थे. संविदा पर काम कर रहे इन कर्मचारियों को लैब टेक्नीशियन और कंप्यूटर ऑपरेटर को 11 हजार रुपए और स्टाफ नर्स को 18 हजार रुपए प्रति महीने मिलता था. इन कर्मचारियों की ड्यूटी ज्यादातर कोविड के दौरान अस्पतालों के वार्डों में लगाई गई या फिर प्रशासनिक काम में इनकी सेवाएं ली गईं.

नेशनल हेल्थ मिशन की निदेशक अपर्णा उपाध्याय से ईटीवी भारत ने बातचीत की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस मामले पर बातचीत करने से साफ मना कर दिया. वहीं स्वास्थ निदशालय की डीजी हेल्थ डॉ. लिली सिंह ने कहा कि 'साल 2020 में जब कोरोना का प्रकोप काफी ज्यादा हो गया था, उस समय स्टाफ की अधिक जरूरत थी. जरूरत को ध्यान में रखते हुए एक समय सीमा तक आउटसोर्सिंग के द्वारा स्टाफ की भर्ती की गई थी, लेकिन मौजूदा स्थिति में इन स्टाफ की आवश्यकता नहीं है और इनकी समय सीमा पूरी हो चुकी है, इसलिए इन्हें हटाया गया है. अगर कोरोना के केस इसी प्रकार बढ़ते रहे तो शायद दोबारा आउटसोर्सिंग से स्टाफ की भर्ती की जाए, लेकिन फिलहाल अभी आवश्यकता नहीं है. इसलिए भर्ती पर रोक लगाई गई है. उन्होंने साफ इस बात से इनकार कर दिया कि स्टाफ की कमी नहीं है.'

यह भी पढ़ें : लखनऊ नगर निगम ने पाॅश काॅलोनियों में बना दिए "कूड़ाघर", मायावती आवास को भी नहीं छोड़ा

लखनऊ : मौजूदा समय में लगातार कोविड के मरीज बढ़ रहे हैं. चिकित्सा जगत में सुधार के लिए प्रदेश सरकार कई बड़े-बड़े कदम उठा रही है, लेकिन इस बीच जब खुद सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक दिशा निर्देश दे रहे हैं कि कोविड के बढ़ते मामलों के तहत सरकारी चिकित्सालय में तमाम व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं. ऑक्सीजन से लेकर वेंटीलेटर अस्पतालों में पर्याप्त हों. इसके अलावा सभी सरकारी अस्पतालों में कोरोना को लेकर बेड आरक्षित किया जाएं. इस बीच एनएचएम नेशनल हेल्थ मिशन की निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने स्टाफ की भर्ती पर रोक लगा दिया है. इतना ही नहीं बल्कि 31 मार्च को प्रदेश भर के जिला अस्पताल से करीब पांच हजार स्टाफ को नौकरी से हटाया गया है.

प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में स्टाफ कर्मचारियों की कमी के कारण तमाम दिक्कतें होती हैं. बात अगर राजधानी की करें तो चार प्रमुख जिला अस्पताल हैं, जहां पर स्टाफ की कमी है. सिविल अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल, लोकबंधु अस्पताल और बीआरडी अस्पताल इन चारों ही अस्पतालों में कहीं भी वेंटिलेटर टेक्नीशियन नहीं हैं. स्टाफ कर्मचारियों को ही वेंटिलेटर की ट्रेनिंग दे दी जाती है, लेकिन कोई एक्सपर्ट नहीं है. कई बार इस मामले को लेकर अस्पताल के डॉक्टर में तनातनी भी हो जाती है. प्रदेश भर के सरकारी अस्पतालों से कोरोना के इलाज और जांच में कार्यरत लगभग पांच हजार संविदा कर्मियों को बीते 31 मार्च को हटा दिया गया है. यह कर्मचारी एनएचएम के तहत साल 2020 में कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए आउटसोर्सिंग से हर जिले में रखे गए थे. हर अस्पताल की आवश्यकता के अनुसार, जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारी की डिमांड पर अलग-अलग संख्या में संविदा कर्मचारी उपलब्ध कराए गए थे. संविदा पर काम कर रहे इन कर्मचारियों को लैब टेक्नीशियन और कंप्यूटर ऑपरेटर को 11 हजार रुपए और स्टाफ नर्स को 18 हजार रुपए प्रति महीने मिलता था. इन कर्मचारियों की ड्यूटी ज्यादातर कोविड के दौरान अस्पतालों के वार्डों में लगाई गई या फिर प्रशासनिक काम में इनकी सेवाएं ली गईं.

नेशनल हेल्थ मिशन की निदेशक अपर्णा उपाध्याय से ईटीवी भारत ने बातचीत की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस मामले पर बातचीत करने से साफ मना कर दिया. वहीं स्वास्थ निदशालय की डीजी हेल्थ डॉ. लिली सिंह ने कहा कि 'साल 2020 में जब कोरोना का प्रकोप काफी ज्यादा हो गया था, उस समय स्टाफ की अधिक जरूरत थी. जरूरत को ध्यान में रखते हुए एक समय सीमा तक आउटसोर्सिंग के द्वारा स्टाफ की भर्ती की गई थी, लेकिन मौजूदा स्थिति में इन स्टाफ की आवश्यकता नहीं है और इनकी समय सीमा पूरी हो चुकी है, इसलिए इन्हें हटाया गया है. अगर कोरोना के केस इसी प्रकार बढ़ते रहे तो शायद दोबारा आउटसोर्सिंग से स्टाफ की भर्ती की जाए, लेकिन फिलहाल अभी आवश्यकता नहीं है. इसलिए भर्ती पर रोक लगाई गई है. उन्होंने साफ इस बात से इनकार कर दिया कि स्टाफ की कमी नहीं है.'

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