लखनऊ : डॉ भीमराव अंबेडकर आगरा विश्वविद्यालय में प्रिंटिंग काम के लिए कमीशन खोरी करने के मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट की अपर सत्र न्यायाधीश अर्चना यादव ने आरोपी अजय जैन एवं अजय मिश्रा की जमानत अर्जियों को गंभीर अपराध बताते हुए खारिज कर दिया है. मामले में विनय पाठक भी अभियुक्त हैं.
जमानत अर्जी का विरोध करते हुए जिला शासकीय अधिवक्ता मनोज त्रिपाठी (District Government Advocate Manoj Tripathi) का तर्क था कि इस मामले की रिपोर्ट 29 अक्टूबर 2022 को शिकायतकर्ता डेविड मारियो डेनिस ने इंदिरानगर थाने पर दर्ज कराई थी. वादी ने अपनी रिपोर्ट में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के तत्कालीन कुलपति विनय पाठक एवं आरोपी अजय मिश्रा को नामजद किया था. आरोप है कि वादी की कंपनी डिजिटल टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड वर्ष 2019- 2020 तक आगरा विश्वविद्यालय की परीक्षा से संबंधित कार्य कर रही थी. वर्ष 2020- 21 में यूपीएलसी के माध्यम से डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के प्री एवं पोस्ट परीक्षा से संबंधित कार्य कर रही है. जिसमें कंपनी द्वारा किए गए कार्य से संबंधित बिल का भुगतान आगरा विश्वविद्यालय में लंबित था.
जमानत अर्जियों के विरोध में कहा गया है कि वादी ने तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक (Vice Chancellor Professor Vinay Pathak) से लंबित बिलों के भुगतान के लिए अनुरोध किया और उनसे उनके आवास पर मिला तो बिलों के भुगतान के लिए 15% कमीशन की मांग की गई. यह भी आरोप है कि कुलपति द्वारा कंपनी के मालिक अजय मिश्रा का मोबाइल नंबर देकर बिल के भुगतान के पश्चात अजय मिश्रा से संपर्क करने कहा गया. दोनों परआरोप है कि उनके द्वारा बिचौलिए के रूप में काम करके गिफ्ट एवं नगदी के रूप में कमीशन की रकम दी जाती थी. अदालत ने सुनवाई के उपरांत कहा है कि आरोपी विनय पाठक के कहने पर वादी के बिल का भुगतान कराने हेतु अनुचित धन की मांग की गई एवं उस धन को प्राप्त करने हेतु कई बार फर्जी एवं कूट रचित बिल भी तैयार किए गए.
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