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लखनऊ: उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर 2022 के जीत की नींव रखेगी बसपा

यूपी में बसपा ने अपना अस्तित्व बचाने लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. बसपा अध्यक्ष मायावती एक बार फिर अपनी पुरानी सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति पर काम कर रही हैं.

bahujan samaj party
बसपा अध्यक्ष मायावती
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Published : Oct 14, 2020, 1:12 PM IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग कर सत्ता में आने के सपने देख रही है. पार्टी ने उत्तर प्रदेश में हो रहे उपचुनाव को लेकर सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को मजबूती से लागू करने की कवायद तेज कर दी है. मायावती अपने फैसलों से लगातर प्रदेश में यह संदेश देने का प्रयास कर रही हैं कि उनकी पार्टी दलित ब्राह्मण गठजोड़ को आगे बढ़ा रही है. पार्टी विधानसभा के उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत की नीव रखना चाहेगी.

बहुजन समाज पार्टी 2007 में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई. उस चुनाव में बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र की अगुआई में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण भाईचारा समिति की बैठकें की गईं. दलित ब्राह्मण गठजोड़ को पार्टी ने आगे बढ़ाया. परिणामस्वरूप बसपा सत्ता में आई. यूपी की सियासत में यह बड़ा बदलाव था, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद बसपा चुनाव दर चुनाव हारी. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह शून्य पर पहुंच गई. 2017 के विद्यानसभा चुनाव में पार्टी का ग्राफ और भी गिर गया. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर 10 सीटें जीतने में सफल रही. हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि यदि सपा के साथ गठबंधन नहीं करतीं तो उन्हें और भी सीटें मिलती.

भारतीय जनता पार्टी का संगठन बेहद मजबूत है. उससे लड़ने के लिए अन्य दलों को उसी ताकत के साथ लड़ना होगा. संगठन उतना मजबूत भले ही नहीं हो लेकिन सपा और कांग्रेस की भाजपा सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी है. ऐसे में यदि बसपा अपना अस्तित्व बचाना चाहती है तो उसे उतनी ही ताकत झोंकने होगी. राजनीतिक विश्लेषक मनोज भद्रा कहते हैं कि यही वजह है कि बसपा अध्यक्ष मायावती एक बार फिर अपनी पुरानी सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति पर काम कर रही हैं.

प्रदेश में हो रहे विधानसभा के उपचुनाव में भी बसपा इसी रणनीति के तहत पूरी ताकत से मैदान में उतरने जा रही है. बसपा अध्यक्ष मायावती राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा और मायावती के भतीजे आकाश आनंद समेत अन्य स्थानीय नेताओं को उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक होंगे. मायावती और उनके भतीजे के अलावा पार्टी के ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्र ही सभी सीटों पर स्टार प्रचार होंगे. पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची भी ब्राह्मण और दलित गठजोड़ को दर्शाती है.

सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा विधानसभा चुनाव
मनोज भद्रा कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी के समक्ष अपना अस्तित्व बचाने की बड़ी चुनौती है. उपचुनाव को 2022 के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. इसीलिए बसपा अध्यक्ष मायावती प्रदेश में हो रहे उपचुनाव में प्रत्येक सीट पर 30 प्रचारकों की सूची निर्वाचन आयोग को सौंपी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किसी भी प्रकार से चुनावी अभियान में ढिलाई नहीं बरतना चाहतीं। मायावती चाहती हैं कि इस उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी की ताकत उभर कर सामने आए। पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी तो इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है.

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग कर सत्ता में आने के सपने देख रही है. पार्टी ने उत्तर प्रदेश में हो रहे उपचुनाव को लेकर सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को मजबूती से लागू करने की कवायद तेज कर दी है. मायावती अपने फैसलों से लगातर प्रदेश में यह संदेश देने का प्रयास कर रही हैं कि उनकी पार्टी दलित ब्राह्मण गठजोड़ को आगे बढ़ा रही है. पार्टी विधानसभा के उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत की नीव रखना चाहेगी.

बहुजन समाज पार्टी 2007 में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई. उस चुनाव में बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र की अगुआई में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण भाईचारा समिति की बैठकें की गईं. दलित ब्राह्मण गठजोड़ को पार्टी ने आगे बढ़ाया. परिणामस्वरूप बसपा सत्ता में आई. यूपी की सियासत में यह बड़ा बदलाव था, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद बसपा चुनाव दर चुनाव हारी. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह शून्य पर पहुंच गई. 2017 के विद्यानसभा चुनाव में पार्टी का ग्राफ और भी गिर गया. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन कर 10 सीटें जीतने में सफल रही. हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि यदि सपा के साथ गठबंधन नहीं करतीं तो उन्हें और भी सीटें मिलती.

भारतीय जनता पार्टी का संगठन बेहद मजबूत है. उससे लड़ने के लिए अन्य दलों को उसी ताकत के साथ लड़ना होगा. संगठन उतना मजबूत भले ही नहीं हो लेकिन सपा और कांग्रेस की भाजपा सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी है. ऐसे में यदि बसपा अपना अस्तित्व बचाना चाहती है तो उसे उतनी ही ताकत झोंकने होगी. राजनीतिक विश्लेषक मनोज भद्रा कहते हैं कि यही वजह है कि बसपा अध्यक्ष मायावती एक बार फिर अपनी पुरानी सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति पर काम कर रही हैं.

प्रदेश में हो रहे विधानसभा के उपचुनाव में भी बसपा इसी रणनीति के तहत पूरी ताकत से मैदान में उतरने जा रही है. बसपा अध्यक्ष मायावती राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा और मायावती के भतीजे आकाश आनंद समेत अन्य स्थानीय नेताओं को उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक होंगे. मायावती और उनके भतीजे के अलावा पार्टी के ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्र ही सभी सीटों पर स्टार प्रचार होंगे. पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची भी ब्राह्मण और दलित गठजोड़ को दर्शाती है.

सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा विधानसभा चुनाव
मनोज भद्रा कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी के समक्ष अपना अस्तित्व बचाने की बड़ी चुनौती है. उपचुनाव को 2022 के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है. इसीलिए बसपा अध्यक्ष मायावती प्रदेश में हो रहे उपचुनाव में प्रत्येक सीट पर 30 प्रचारकों की सूची निर्वाचन आयोग को सौंपी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किसी भी प्रकार से चुनावी अभियान में ढिलाई नहीं बरतना चाहतीं। मायावती चाहती हैं कि इस उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी की ताकत उभर कर सामने आए। पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी तो इसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव पर पड़ना तय है.

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