लखनऊ : हालिया विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बसपा प्रमुख मायावती अब रणनीति बदल रही हैं. उन्हें लगता है कि अल्पसंख्यक मतदाता सपा से निराश होकर उनके पाले में आ सकता है. पिछले कुछ दिनों से वह लगातार अल्पसंख्यक हितों की पैरोकारी कर रही हैं. शायद उन्हें आभास हो गया है कि अब अपने आधार वोट की ओर लौटना ही होगा. मायावती ने लंबे अर्से से जेल में बंद सपा नेता आजम खान के पक्ष में भी बयान दिया और कहा कि अल्पसंख्यक होने के कारण सरकार उनके साथ नाइंसाफी कर रही है. मुस्लिमों के अन्य मुद्दे भी मायावती जोर-शोर से उठा रही हैं. स्वाभाविक है कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी का खोया वजूद लौटाना चाह रही हैं.
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती विधानसभा चुनाव में अपनी अब तक की सबसे बुरी हार से सकते में हैं. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिर यह हुआ क्या है? 2017 में बसपा की 19 विधानसभा सीटें थीं. उन्हें लगता था कि वह 2022 के चुनाव में सौ-सवा सौ सीटें जीतकर सत्ता की कुंजी बन जाएंगी, लेकिन जनता ने उन्हें इस चुनाव में महज एक सीट पर पहुंचा दिया. विधान परिषद और राज्य सभा से तो पार्टी का पत्ता ही साफ हो गया. चुनाव में जीत के लिए दलित-ब्राह्मण का जो समीकरण वह सोचकर चली थीं, वह पूरी तरह से फेल हो गया. यही कारण है कि मायवती अब मुसलमानों में अपनी पैठ बनाने में जुटी हैं. पूर्व मंत्री और सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान की अखिलेश यादव से नाराजगी की खबरें सामने आने के बाद मायावती ने आजम की हिमायत में बयान जारी करने में देर नहीं की. उन्हें लगता है कि सपा से नाराज आजम बसपा में आकर सम्मान पा सकते हैं. आजम को मुसलमानों का बड़ा नेता माना जाता है. ऐसे में वह बसपा से मुसलमानों को जोड़ने में भी कामयाब होंगे.
इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर दुबे कहते हैं कि देश के सबसे बड़े सूबे में सोशल इंजीनियरिंग के बल पर सरकार बनाने वाली मायावती ने यह कभी सोचा भी नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी का यह हश्र होगा. उनका वोट बैंक जो खिसक रहा है, उसे देखते हुए मायावती मुस्लिम और दलित प्रेम दिखाकर खोया हुआ जनाधार पाने की कोशिश कर रहीं हैं. हालांकि यह कोशिश कितनी कामयाब होगी यह कहना बहुत कठिन है.
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