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निकाय चुनाव में बसपा ने नहीं खेला विधानसभा चुनाव वाला 'ब्राह्मण कार्ड', मुस्लिम चेहरों पर लगाया सबसे बड़ा दांव

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Published : Apr 30, 2023, 5:21 PM IST

बहुजन समाज पार्टी ने साल 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण कार्ड खेला था. इसका नतीजा यह हुआ था कि पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने 212 विधानसभा सीटें जीतकर इतिहास रचा. वहीं, अब निकाय चुनाव के परिणाम भी बसपा के लिए विधानसभा चुनाव की तरह साबित हो सकते हैं.

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बहुजन समाज पार्टी

लखनऊः साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने ब्राह्मण कार्ड खेला था. इसका फायदा यह मिला था कि प्रचंड बहुमत के साथ बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो गई, लेकिन इसके बाद 2012 से लेकर अब तक पार्टी की स्थिति बद से बस्तर ही होती जा रही है. निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के 2007 विधानसभा चुनाव वाला ब्राह्मण कार्ड खेलने की उम्मीद पार्टी के ही ब्राह्मण नेताओं को थी, लेकिन पार्टी को ब्राह्मण कार्ड खेलने के बजाय मुस्लिम ट्रंप कार्ड खेलना ज्यादा भाया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ब्राह्मणों को पार्टी ने काफी कम प्रतिनिधित्व दिया है इससे ब्राह्मणों के बसपा के साथ जुड़ने की उम्मीद भी काफी कम हो गई है. ऐसे में निकाय चुनाव के परिणाम भी बसपा के लिए विधानसभा चुनाव की तरह साबित हो सकते हैं.

बसपा ने ब्राह्मणों पर लगाया था भरपूर दांव
उत्तर प्रदेश में साल 2007 से पहले किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में जब 2007 के विधानसभा चुनाव में भी किसी पार्टी को ये उम्मीद नहीं थी कि प्रदेश की जनता एक ही पार्टी की तरफ इस कदर आकर्षित हो जाएगी कि उसे प्रचंड बहुमत के साथ गद्दी पर बिठा देगी. बहुजन समाज पार्टी के साथ उस साल कुछ ऐसा ही हुआ था. चुनावी नतीजों ने जहां बहुजन समाज पार्टी की बाछें खिला दी थीं, वहीं विरोधी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया था. या यूं कहें उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया था. बसपा का पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आना कैसे संभव हुआ इस पर जब विपक्षी दलों ने मंथन किया गया तो पार्टी की असली रणनीति समझ आई. दलित और मुस्लिम गठजोड़ के साथ ही बसपा ने ब्राह्मणों पर भी भरपूर दांव लगाया था. ब्राह्मण भाईचारा कमेटियों का गठन किया था. कई ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कराए थे और ब्राह्मणों को भरोसा दिया था कि चुनाव में उन्हें भरपूर प्रतिनिधित्व मिलेगा.

पार्टी ने अच्छी संख्या में ब्राह्मण नेताओं को टिकट भी दिए. बसपा के इस भरोसे पर ब्राह्मणों ने भरपूर समर्थन बहुजन समाज पार्टी को दे दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने 212 विधानसभा सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई बीएसपी की मुखिया मायावती ने अपने ही तरीके से शासन चलाया. सरकार में ब्राह्मणों को खासी तवज्जो भी दी गई. सतीश चंद्र मिश्रा और नकुल दुबे की मायावती सरकार में खूब चलती थी, लेकिन 2012 के चुनाव में पार्टी फिर से वह करिश्मा नहीं कर पाई. अभी तक पार्टी 2007 वाला इतिहास दोहरा भी नहीं पाई है, बल्कि उसकी स्थिति और भी बेकार होती जा रही है. ऐसे में पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को भरोसा था कि निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणों को एकजुट करने के लिए उन्हें प्रतिनिधित्व देगी.

ब्राह्मण कार्ड खेलकर एक बार फिर पार्टी अपनी तरफ ब्राह्मणों को आकर्षित करेगी, लेकिन बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. ब्राह्मणों को दरकिनार करते हुए बीएसपी ने निकाय चुनाव में मुस्लिमों पर दांव खेला है. पार्टी को लगता है कि दलित कोर वोटर पहले से ही बहुजन समाज पार्टी के साथ है और मुस्लिमों को ज्यादा संख्या में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा तो मुस्लिम वोटर्स बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में वोट करेंगे और यह ट्रंप कार्ड कामयाब हो जाएगा. पार्टी को निकाय चुनाव में जीत मिलेगी. हालांकि यह तो 13 मई को जब चुनाव परिणाम आएंगे तभी पता लगेगा कि बसपा के ब्राह्मणों को दरकिनार कर मुस्लिम ट्रंप कार्ड खेलने की रणनीति कितनी सफल हुई? कितने प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब हुए और कितने प्रतिशत वोट बीएसपी को मिले और उनमें मुस्लिमों का अनुपात कितना रहा.

एक भी ब्राह्मण को नहीं बनाया मेयर प्रत्याशी
बहुजन समाज पार्टी ने 17 में उम्मीदवारों में से 11 मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतारा. उन्हें महापौर का टिकट दिया, जबकि अन्य छह में भी एक भी ब्राह्मण चेहरे को प्रत्याशी नहीं बनाया, तीन अन्य पिछड़ा वर्ग और दो अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों पर मायावती ने भरोसा जताया. ऐसे में कहा जा सकता है कि मायावती ने मेयर पद के लिए ब्राह्मणों को कोई भी प्रतिनिधित्व दिया ही नहीं. मायावती को ब्राह्मणों में कोई सोशल इंजीनियरिंग नजर नहीं आई, बल्कि मुस्लिम समाज से ज्यादा उम्मीद लगाई है.

ओबीसी वर्ग में इन चेहरों को तवज्जो
महापौर चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी ने जिन तीन ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उनमें कानपुर नगर निकाय में अर्चना निषाद को टिकट दिया. यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित है. अयोध्या में राममूर्ति यादव और वाराणसी में सुभाष चंद्र मांझी को प्रत्याशी बनाया, जबकि अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों की बात करें तो आगरा नगर निगम में एससी महिला लता को प्रत्याशी बनाया और झांसी में दलित उम्मीदवार भगवानदास फुले पर पार्टी नेताओं लगाया. उच्च जाति के उम्मीदवार की बात करें तो मायावती ने सिर्फ गोरखपुर में नवल किशोर नैथानी को टिकट दिया जो अग्रवाल समाज से ताल्लुक रखते हैं.

इन मुस्लिम चेहरों को बनाया प्रत्याशी
बहुजन समाज पार्टी ने महापौर के चुनाव में मुस्लिमों पर खास दांव आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए लगाया है. इनमें सामान्य श्रेणी की सीटों पर भी बसपा ने मुसलमानों को ही अहमियत दी है. अलीगढ़ में सलमान शाहिद, मथुरा में राजा मोहतासिम अहमद, बरेली में यूसुफ खान, मुरादाबाद में मोहम्मद यामीन और प्रयागराज में शहीद अहमद को प्रत्याशी बनाया. इसके अलावा महिलाओं के लिए आरक्षित तीन निकायों में मेयर पदों में से दो मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें गाजियाबाद से सारा खान और लखनऊ में शाहीन बानो पार्टी की मेयर प्रत्याशी हैं. ओबीसी के लिए आरक्षित चार महापौर सीटों पर भी बीएसपी ने मुस्लिम प्रत्याशियों को ही टिकट थमाया है. इनमें सहारनपुर से खदीजा मसूद, शाहजहांपुर से शगुफ्ता अंजुम, फिरोजाबाद से रुखसाना बेगम और मेरठ से हसमत अली पार्टी के महापौर प्रत्याशी हैं.

पढ़ेंः मायावती का विपक्षियों पर हमला, कहा- बीएसपी ने दिया मुस्लिम समाज को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व

लखनऊः साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने ब्राह्मण कार्ड खेला था. इसका फायदा यह मिला था कि प्रचंड बहुमत के साथ बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो गई, लेकिन इसके बाद 2012 से लेकर अब तक पार्टी की स्थिति बद से बस्तर ही होती जा रही है. निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के 2007 विधानसभा चुनाव वाला ब्राह्मण कार्ड खेलने की उम्मीद पार्टी के ही ब्राह्मण नेताओं को थी, लेकिन पार्टी को ब्राह्मण कार्ड खेलने के बजाय मुस्लिम ट्रंप कार्ड खेलना ज्यादा भाया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ब्राह्मणों को पार्टी ने काफी कम प्रतिनिधित्व दिया है इससे ब्राह्मणों के बसपा के साथ जुड़ने की उम्मीद भी काफी कम हो गई है. ऐसे में निकाय चुनाव के परिणाम भी बसपा के लिए विधानसभा चुनाव की तरह साबित हो सकते हैं.

बसपा ने ब्राह्मणों पर लगाया था भरपूर दांव
उत्तर प्रदेश में साल 2007 से पहले किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में जब 2007 के विधानसभा चुनाव में भी किसी पार्टी को ये उम्मीद नहीं थी कि प्रदेश की जनता एक ही पार्टी की तरफ इस कदर आकर्षित हो जाएगी कि उसे प्रचंड बहुमत के साथ गद्दी पर बिठा देगी. बहुजन समाज पार्टी के साथ उस साल कुछ ऐसा ही हुआ था. चुनावी नतीजों ने जहां बहुजन समाज पार्टी की बाछें खिला दी थीं, वहीं विरोधी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया था. या यूं कहें उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया था. बसपा का पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आना कैसे संभव हुआ इस पर जब विपक्षी दलों ने मंथन किया गया तो पार्टी की असली रणनीति समझ आई. दलित और मुस्लिम गठजोड़ के साथ ही बसपा ने ब्राह्मणों पर भी भरपूर दांव लगाया था. ब्राह्मण भाईचारा कमेटियों का गठन किया था. कई ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित कराए थे और ब्राह्मणों को भरोसा दिया था कि चुनाव में उन्हें भरपूर प्रतिनिधित्व मिलेगा.

पार्टी ने अच्छी संख्या में ब्राह्मण नेताओं को टिकट भी दिए. बसपा के इस भरोसे पर ब्राह्मणों ने भरपूर समर्थन बहुजन समाज पार्टी को दे दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि पहली बार बहुजन समाज पार्टी ने 212 विधानसभा सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई बीएसपी की मुखिया मायावती ने अपने ही तरीके से शासन चलाया. सरकार में ब्राह्मणों को खासी तवज्जो भी दी गई. सतीश चंद्र मिश्रा और नकुल दुबे की मायावती सरकार में खूब चलती थी, लेकिन 2012 के चुनाव में पार्टी फिर से वह करिश्मा नहीं कर पाई. अभी तक पार्टी 2007 वाला इतिहास दोहरा भी नहीं पाई है, बल्कि उसकी स्थिति और भी बेकार होती जा रही है. ऐसे में पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को भरोसा था कि निकाय चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मणों को एकजुट करने के लिए उन्हें प्रतिनिधित्व देगी.

ब्राह्मण कार्ड खेलकर एक बार फिर पार्टी अपनी तरफ ब्राह्मणों को आकर्षित करेगी, लेकिन बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. ब्राह्मणों को दरकिनार करते हुए बीएसपी ने निकाय चुनाव में मुस्लिमों पर दांव खेला है. पार्टी को लगता है कि दलित कोर वोटर पहले से ही बहुजन समाज पार्टी के साथ है और मुस्लिमों को ज्यादा संख्या में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा तो मुस्लिम वोटर्स बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में वोट करेंगे और यह ट्रंप कार्ड कामयाब हो जाएगा. पार्टी को निकाय चुनाव में जीत मिलेगी. हालांकि यह तो 13 मई को जब चुनाव परिणाम आएंगे तभी पता लगेगा कि बसपा के ब्राह्मणों को दरकिनार कर मुस्लिम ट्रंप कार्ड खेलने की रणनीति कितनी सफल हुई? कितने प्रत्याशी जीत हासिल करने में कामयाब हुए और कितने प्रतिशत वोट बीएसपी को मिले और उनमें मुस्लिमों का अनुपात कितना रहा.

एक भी ब्राह्मण को नहीं बनाया मेयर प्रत्याशी
बहुजन समाज पार्टी ने 17 में उम्मीदवारों में से 11 मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतारा. उन्हें महापौर का टिकट दिया, जबकि अन्य छह में भी एक भी ब्राह्मण चेहरे को प्रत्याशी नहीं बनाया, तीन अन्य पिछड़ा वर्ग और दो अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों पर मायावती ने भरोसा जताया. ऐसे में कहा जा सकता है कि मायावती ने मेयर पद के लिए ब्राह्मणों को कोई भी प्रतिनिधित्व दिया ही नहीं. मायावती को ब्राह्मणों में कोई सोशल इंजीनियरिंग नजर नहीं आई, बल्कि मुस्लिम समाज से ज्यादा उम्मीद लगाई है.

ओबीसी वर्ग में इन चेहरों को तवज्जो
महापौर चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी ने जिन तीन ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उनमें कानपुर नगर निकाय में अर्चना निषाद को टिकट दिया. यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित है. अयोध्या में राममूर्ति यादव और वाराणसी में सुभाष चंद्र मांझी को प्रत्याशी बनाया, जबकि अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों की बात करें तो आगरा नगर निगम में एससी महिला लता को प्रत्याशी बनाया और झांसी में दलित उम्मीदवार भगवानदास फुले पर पार्टी नेताओं लगाया. उच्च जाति के उम्मीदवार की बात करें तो मायावती ने सिर्फ गोरखपुर में नवल किशोर नैथानी को टिकट दिया जो अग्रवाल समाज से ताल्लुक रखते हैं.

इन मुस्लिम चेहरों को बनाया प्रत्याशी
बहुजन समाज पार्टी ने महापौर के चुनाव में मुस्लिमों पर खास दांव आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए लगाया है. इनमें सामान्य श्रेणी की सीटों पर भी बसपा ने मुसलमानों को ही अहमियत दी है. अलीगढ़ में सलमान शाहिद, मथुरा में राजा मोहतासिम अहमद, बरेली में यूसुफ खान, मुरादाबाद में मोहम्मद यामीन और प्रयागराज में शहीद अहमद को प्रत्याशी बनाया. इसके अलावा महिलाओं के लिए आरक्षित तीन निकायों में मेयर पदों में से दो मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें गाजियाबाद से सारा खान और लखनऊ में शाहीन बानो पार्टी की मेयर प्रत्याशी हैं. ओबीसी के लिए आरक्षित चार महापौर सीटों पर भी बीएसपी ने मुस्लिम प्रत्याशियों को ही टिकट थमाया है. इनमें सहारनपुर से खदीजा मसूद, शाहजहांपुर से शगुफ्ता अंजुम, फिरोजाबाद से रुखसाना बेगम और मेरठ से हसमत अली पार्टी के महापौर प्रत्याशी हैं.

पढ़ेंः मायावती का विपक्षियों पर हमला, कहा- बीएसपी ने दिया मुस्लिम समाज को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व

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