लखनऊ : संगठित अपराध, हत्या और वसूली के लिए पूर्वांचल बहुत लंबे समय से कुख्यात रहा है. यहां बड़े-बड़े अपराधी हुए जिन्होंने शासन और प्रशासन की नाक में दम करने के साथ ही आम लोगों में दहशत बनाए रखी. इन्हीं में एक नाम जौनपुर के धनंजय सिंह का भी जुड़ गया. 80 के दशक में जौनपुर के वनसफा सिकरा में जन्मे धनंजय सिंह ने छात्र राजनीति के दौरान ही संगठित अपराध की दुनिया में प्रवेश किया. धीरे-धीरे लखनऊ और पूर्वांचल के जिलों में अपनी दहशत कायम कर दी. वहीं, जौनपुर की जनता ने भी उसका साथ दिया और वोट देकर उसे विधायक से सांसद तक बना दिया. धनंजय सिंह हाल ही में लखनऊ के विभूति खंड के कठौता चौराहे पर मऊ के पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह की हत्या के मामले में एक बार फिर सुर्खियों में आ गया. बचपन से ही विवादों और अपराध को लेकर चर्चा में रहे धनंजय सिंह के जीवन पर एक नजर.
महज 14 वर्ष की उम्र में शिक्षक की हत्या का आरोप
बच्चे पढ़ाई लिखाई के लिए जाने जाते हैं. पर धनंजय सिंह शुरू से ही बड़े अपराधों के लिए जाना जाता रहा. दसवीं में महज 14 वर्ष की उम्र में एक शिक्षक की हत्या के बाद 12वीं में एक युवक की हत्या का उस पर आरोप लगा. जिस समय धनंजय की गिरफ्तारी हुई, उस समय वह 12वीं की परीक्षा दे रहा था.
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12वीं की परीक्षा में 50 पुलिस के जवान दे रहे थे पहरा
जौनपुर के तिघरा थाना क्षेत्र के इंटर कॉलेज में 12वीं की परीक्षा के दौरान पुलिस ने भारी पुलिस बंदोबस्त कर रखा था. 50 से अधिक हथियार बंद जवान तैनात किए गए थे. पुलिस को शक था कि आसपास का यह इलाका जो राजपूतों का गढ़ माना जाता था, धनंजय सिंह को फरार कराने में मदद कर सकता था. इसलिए पुलिस ने तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था कर रखी थी.
लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति के साथ अपराध की दुनिया में रखा कदम
बाहुबली धनंजय सिंह ने 90 के दशक में लखनऊ विश्वविद्यालय में बतौर छात्र एडमिशन लिया. कहा जाता है कि परिवार के दबाव में उसे टीडी कॉलेज छोड़कर लखनऊ विश्वविद्यालय में एडमिशन लेना पड़ा. यहां उसकी मुलाकात एक बाहुबली छात्रनेता अभय सिंह से हुई. दोनों गहरे दोस्त बन गए. अभय सिंह के संपर्क में आने के बाद धनंजय सिंह की पहचान एक दबंग छात्रनेता के तौर पर होने लगी. इसके साथ ही धनंजय सिंह की अपराध की दुनिया में संगठित एंट्री होने लगी. बहुत ही कम समय में उस पर हत्या, लूट, अपराध जैसे कई मामलों के केस दर्ज हो गए. हालांकि अभय सिंह के साथ धनंजय की दोस्ती बहुत लंबी नहीं चली और जल्द ही यह दोनों एक दूसरे की जान के दुश्मन बन गए.
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जब जिंदा हो उठा मरा हुआ धनंजय
बताया जाता है कि 1998 आते-आते धनंजय सिंह पर पुलिस की ओर से 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया गया. उस पर हत्या, डकैती जैसे संगीन मामलों के आरोप लगे. इसके बाद वह फरार हो गया. पुलिस उसकी सरगर्मी से तलाश करने लगी. इसी बीच 17 अक्टूबर 1998 को पुलिस को सूचना मिली कि धनंजय सिंह 3 लोगों के साथ भदोही मिर्जापुर रोड पर एक पेट्रोल पंप पर डकैती डालने आ रहा है. पुलिस ने घेराबंदी कर एनकाउंटर शुरू कर दिया. एनकाउंटर के बाद सीईओ अखिलानंद मिश्रा और उनकी टीम ने इस बात का दावा किया कि एनकाउंटर में धनंजय सिंह भी मारा गया. लेकिन धनंजय सिंह इस इनकाउंटर से बचकर फरार हो चुका था. करीब 6 महीने की फरारी के बाद फ़रवरी 1999 में वह कोर्ट में सरेंडर करता है और बताता है कि वह जिंदा है. इस फेक एनकाउंटर मामले में पुलिस की खासी किरकिरी होती है. सीओ अखिलानंद और उनके कई पुलिस साथियों को निलंबित कर उनके खिलाफ केस चलाया जाता है.
2002 में अपराध की दुनिया से 'माननीय' बना धनंजय
बताया जाता है कि जौनपुर में उस वक्त के बाहुबली नेता और मुन्ना बजरंगी के गुरु कहे जाने वाले विनोद नाटे रारी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने खासी मेहनत भी कर रखी थी. पर इसी बीच उनकी एक सड़क हादसे में मौत हो जाती है. उनकी मौत के बाद उनकी तस्वीर को सीने से लगाकर धनंजय सिंह रारी विधानसभा में प्रचार करने निकल जाता हैं. उसे जनता की सहानुभूति मिलती है और इस तरह 2002 में वह विधायक बन जाता है.
2007 में जदयू के टिकट पर लड़ा चुनाव
2007 में जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता भी. अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं को और बल देने और किसी मजबूत पार्टी का दामन थामने की फिराक में धनंजय सिंह ने बसपा का दामन थामा.
बसपा के टिकट पर चुनाव जीत पहुंचा संसद
बसपा के टिकट पर 2009 में वह जौनपुर का सांसद बनकर संसद तक पहुंच गया. यह वह दौर था जब मायावती की मजबूरी थी कि वह अपनी पार्टी को बल देने के लिए प्रदेश में बाहुबलियों को भी अपने दल में शामिल करें. हालांकि 2011 में खुद मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में धनंजय सिंह को पार्टी से निकाल बाहर कर दिया. कहा जाता है कि यहीं से धनंजय सिंह का बुरा वक्त शुरू हो गया.
जब अपने दोस्त ही बने दुश्मन
कहते हैं राजनीति और अपराध की दुनिया में कोई सगा नहीं होता. जरायम की दुनिया में दूसरे खिलाड़ियों के लिए खतरा बन रहे धनंजय सिंह के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रहीं थीं. 5 अक्टूबर 2002 को वाराणसी में टकसाल सिनेमा के सामने धनंजय सिंह के काफिले पर हमला हुआ. इस हमले में धनंजय सिंह ने अपने ही दोस्त रहे अभय सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. आरोप लगाया कि उनके पुराने दोस्त ने हीं उन पर जानलेवा हमला करवाया था.
तीसरी पत्नी को भाजपा में कराया शामिल
धनंजय सिंह का पारिवारिक जीवन भी कोई खास अच्छा नहीं रहा. कहते हैं पहली पत्नी ने शादी के 9 महीने बाद ही आत्महत्या कर ली. दूसरी पत्नी जागृति सिंह उसे तलाक देकर चली गई. वहीं, तीसरी शादी 2007 में श्रीकला रेड्डी से धनंजय सिंह ने पेरिस में की. उन्हें बाद में भाजपा का सदस्य भी बनवा दिया. वहीं, अपने पिता को भी जौनपुर की एक विधानसभा सीट से टिकट दिलाकर चुनाव लड़वा दिया जिसे जनता ने भी अपना पूरा समर्थन देकर विधायक चुन लिया. साफ है कि धनंजय सिंह इस तरह से अपने लिए राजनीतिक संरक्षण भी चाहता था जिसके लिए वह लगातार राजनीतिक दलों में अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में लगा रहा.
रेलवे के ठेके, वसूली और हत्याओं में लगते रहे हैं आरोप
धनंजय सिंह पर रेलवे के ठेके लेने में दबंगई, वसूली, हत्या जैसे संगीन मामलों में लगातार आरोप लगते रहे हैं. 13 जुलाई 2020 को लखनऊ के आलमबाग इलाके में खुलेआम हरदोई के जिला पंचायत सदस्य सुरेंद्र कालिया पर जानलेवा हमला हुआ. आरोप है कि जौनपुर जेल में बंद पूर्व सांसद संजय सिंह ने उन पर यह हमला करवाया था. इस तरह के कई और मामले सामने आए. 2020 मार्च अप्रैल महीने में ही जौनपुर में धनंजय को गिरफ्तार किया गया. आरोप लगा कि शहर में चल रहे सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के मैनेजर अविनाश सिंघल को धनंजय सिंह ने जान से मारने की धमकी दी थी. अभिनव की तहरीर पर गिरफ्तारी की कार्रवाई की गई.
मुन्ना बजरंगी की पत्नी ने पति की हत्या का लगाया था आरोप
जुलाई 2018 में बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने अपने पति की हत्या की साज़िश का आरोप धनंजय सिंह पर लगाया था. पुलिस को दी तहरीर में उन्होंने आरोप लगाया था कि धनंजय ने ही उनके पति की हत्या करवा दी. बताया कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव जौनपुर से लड़ने वाले थे, यही उनकी हत्या की वजह बनी. इस मामले में पुलिस की तहक़ीक़ात जारी है. धनंजय पर अभी तक कोई मुक़दमा दायर नहीं हुआ है.