लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Elections 2022) के लिए बीजेपी (BJP) ने मायावती (Mayawati) से मुकाबले के लिए सियासी हथियार तैयार कर लिया है. दलित समुदाय से आने वाले जाटव समाज को साधने के लिए भाजपा ने उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya) पर दांव खेला है. विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ दलित मतदाताओं में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए तैयारी भी शुरू कर दी है.
बेबी रानी मौर्य ने खुद को बताया जाटव नेता
उत्तराखंड के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी ने बेबी रानी मौर्य को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है. साथ ही उन्हें यूपी चुनावी मैदान में उतार दिया है. अब बीजेपी मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है. 13 अक्टूबर को भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा की अवध क्षेत्र इकाई ने बेबी रानी मौर्य के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने पर उन्हें सम्मानित करने के लिए लखनऊ में एक समारोह आयोजित किया था. इस आयोजन में बेबी रानी मौर्य ने खुद को जाटव बताया था.
इसके बाद से बीजेपी अनुसूचित मोर्चा द्वारा आयोजित जितने भी स्वागत कार्यक्रम हो रहे हैं, उन कार्यक्रमों के पोस्टर, बैनर में बकायदा बेबी रानी मौर्य 'जाटव' लिखा जा रहा है. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि बीजेपी बेबी रानी मौर्य को दलितों के बीच जाटव नेता के तौर पर स्थापित करने में जुट गई है.
जाटव समाज को साधने के लिए बीजेपी ने जहां बेबी रानी मौर्य पर दांव खेला है. वहीं यूपी के ब्रज, अवध, बुंदेलखंड, वाराणसी और गोरखपुर क्षेत्र में एक-एक बड़ी सभा कराने के साथ ही 75 जिलों में बेबी रानी की चुनावी सभाएं कराए जाने की रणनीति बनाई है. इसका आगाज लखनऊ और गोरखपुर में आयोजित हुए सम्मेलन कार्यक्रम से हो चुका है.
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देखा जाए तो दलित वोटरों को साधने के लिए बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले महीने से ही शुरु कर दिया था. बीजेपी ने, इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्षों के सम्मेलन में जेपी नड्डा का स्वागत चित्रकूट के जिला पंचायत अध्यक्ष आशोक जाटव से कराया था. साथ ही सहारनपुर की बलिया खेड़ा की ब्लॉक प्रमुख सोनिया जाटव का स्वागत किया था. अब जब इसकी नींव पड़ चुकी है तो भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में बेबी रानी मौर्य के नाम पर चुनाव में जीत हासिल करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है.
जाटव और गैर-जाटव वोटरों का आंकड़ा
यूपी में OBC के बाद सबसे ज्यादा SC वोटर हैं. प्रदेश में दलित समुदाय की हिस्सेदारी 22 फीसदी है, जो चुनाव का सूरत-ए-हाल बदलने की ताकत रखती है. दलित समुदाय में सबसे बड़ी संख्या 12 फीसदी जाटव समाज की है. 10 फीसदी गैर-जाटव की है. यूपी में दलितों की कुल 66 उपजातियां हैं. दलितों में पासी समुदाय 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी हैं. गोंड, धानुक और खटीक लभगभ 5 फीसदी हैं. ये सभी बसपा के परंपरागत वोटर माने जाते रहे हैं. अब इस वोट बैंक पर बीजेपी की नजर है.
इन जिलों में है दलित वोट बैंक
यूपी के 42 जिले ऐसे हैं, जिनमें दलितों की संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है. सोनभद्र में 42 फीसदी, कौशांबी में 36 फीसदी, बिजनौर-बाराबंकी में 25-25 फीसदी हैं. इसके अलावा सहारनपुर, बुलंदशहर, मेरठ, अंबेडकरनगर, जौनपुर में दलित समुदाय निर्णायक भूमिका में हमेशा रहा है. यूपी में 85 विधानसभा सीटें दलितों के लिए रिजर्व की गई हैं. अगर भाजपा इन सीटों और दलित वोटरों में सेंधमारी करने में कामयाब हो जाती है, तो बसपा की बची कुची जमीन भी खत्म हो जाएगी.