लखनऊ: आज पेट की लड़ाई कॉरपोरेट से है और सरकार नए कृषि कानूनों के बहाने गरीबों का निवाला छीनने में लगी है. यह विचार कैसरबाग स्थित इप्टा कार्यालय में आयोजित परिसंवाद में ऑल इंडिया किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कुमार अंजान ने व्यक्त किये. परिसंवाद का विषय था 'आज का परिप्रेक्ष्य और साहित्य में किसान चेतना, संदर्भ कैफी आजमी की विरासत'.
इस मौके पर अतुल कुमार अंजान ने तीनों कृषि कानूनों को काला कानून के साथ ही किसान एवं जनविरोधी बताया. उन्होंने कृषि कानूनों की प्रतियां भी जलाईं. अब किसान आंदोलन में रंगकर्मी, लेखक, साहित्यकार, नारीवादी संगठन सहित अन्य विचारशील लोग भी जुड़ते दिख रहे हैं.
कैफी आजमी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर इस परिसंवाद का आयोजन इप्टा, प्रलेस, जलेस, जसम तथा साझी दुनिया की ओर से संयुक्त रूप से किया गया. इसमे किसान, मजदूर, छात्र, नौजवान और महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सेदारी ली.
किसान आंदोलन में हिस्सेदारी के बाद लौटे इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने बताया कि किसान वहां आंदोलन की एक नई इबारत लिख रहे हैं. किसानों के एक हाथ में नानक और सूफी संतों की करुणा का ग्रंथ है तो दूसरे हाथ में भगतसिंह की क्रांति की तलवार है. जिसकी धार विचारों की सान पर तेज हो रही है. कैफी आजमी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनका पूरा जीवन और कृतित्व किसानों और मजदूरों को समर्पित रहा.
प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि यह वर्ष किसान समस्या पर प्रेमचंद के पहले उपन्यास प्रेमाश्रम का शताब्दी वर्ष है. साहित्य में किसान चेतना कबीर, प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, नागार्जुन, कैफी आजमी से होती हुई आज के संदर्भों से जुड़ती हुई जेल में बंद वरवर राव, आनंद तेलतुबंड़े, गौतम नवलखा तक अपना विस्तार करती है.
प्रो. सूरज बहादुर थापा ने साहित्य में किसान चेतना के संदर्भ में कबीर और तुलसी की कई कविताओं का उदाहरण देते हुए कैफी को किसान चेतना के शायर के रूप में याद किया. कवि राजेन्द्र वर्मा ने कहा कि आज सरकार निजीकरण की प्रक्रिया में खेती को भी निजी कंपनियों के हवाले करने की साजिश कर रही है. उससे लड़ने के लिए व्यापक एकता की जरूरत है.