लखनऊ : हल्की ठंड व प्रदूषण अस्थमा और हार्ट के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक है. डॉक्टरों का कहना है कि 'इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की सर्दियों के चार महीने (नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी) अस्पतालों में इनकी संख्या 60 फीसदी तक बढ़ जाती है. वर्तमान में ठंड बढ़ने से ओपीडी में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ी है.
सिविल अस्पताल के वरिष्ठ चेस्ट फिजिशियन डॉ. एनबी सिंह ने बताया कि 'हर साल इस मौसम में अस्थमा और सीओपीडी के मरीज अस्पताल की ओपीडी में बढ़ जाते हैं. मौजूदा समय में सांस से संबंधित मरीजों को खास दिक्कत हो रही है. इसके पीछे वायु प्रदूषण और इंवॉल्वमेंट में होने वाला धुंध मुख्य कारक है. अस्थमा और सीओपीडी में कोई खास अंतर नहीं होता है.' उन्होंने बताया कि 'अस्थमा बीमारी कम उम्र के लोगों में होती है और जब अस्थमा लंबे समय तक बना रहता है तब वह सीओपीडी का रूप ले लेता है. ज्यादातर 45 साल से अधिक उम्र के लोग सीओपीडी से ग्रसित होते हैं और 45 साल से कम उम्र के लोग अस्थमा के शिकार होते हैं.'
उन्होंने कहा कि 'फेफड़ों के कई रोग, जो सांस के रास्ते में रुकावट पैदा कर देते हैं, जिसके कारण सांस लेना कठिन हो जाता है. फेफड़ों में हवा की थैलियों में सूजन और लंबे समय से सांस की नली में सूजन (क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस) सीओपीडी के आम लक्षण हैं. सीओपीडी से फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है.' उन्होंने बताया कि 'इस समय बाकी ओपीडी की तुलना में अस्थमा के मरीज की भीड़ ज्यादा चल रही है. सुबह 10 से 12 बजे तक मरीजों की संख्या कम होती है, लेकिन 12 से 2 बजे तक मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाती है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सुबह के समय अधिक कोहरा रहता है. धीरे-धीरे जब कोहरा कम होता है तब अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है.' उन्होंने कहा कि 'अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों को कोहरे से लकड़ी व कोयला से होने वाले धुएं से बचने की आवश्यकता है. इसी के साथ जितना हो सके उतना ठंड से बचे रहें. क्योंकि सर्दियों में ही अस्थमा के मरीजों को तमाम दिक्कतें परेशानी होने लगती है और फिर बाद में यह दिक्कतें बढ़ा देती हैं.'
प्रदूषण से फेफड़े प्रभावित : बलरामपुर अस्पताल के चेस्ट फिजिशियन आनंद कुमार गुप्ता बताते हैं कि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन का जो डाटा है और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का जो डाटा है उसके अनुसार 16 लाख लोगों की मौत भारत में वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण से आप देखेंगे कि पूरे शरीर में कोई ऐसा अंग अछूता नहीं है जिसमें कोई भी नुकसान न होता हो. सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से लंग्स ही प्रभावित होता है. लंग्स में देखें तो अस्थमा, टीबी, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े का कैंसर है. इसके साथ-साथ बहुत सी ऐसी बीमारी हैं, अगर हम हार्ट की बात करें तो हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर है. अगर हम ब्रेन की बात करें तो ब्रेन स्ट्रोक यानी फालिज मार जाना है, माइग्रेन, नींद न आना है और अगर हम दूसरे अंगों की बात करें तो एसिडिटी से लेकर और छोटी-छोटी समस्या जैसे बालों का जल्दी सफेद हो जाना यह सब वायु प्रदूषण से लिंक है.'
300 से अधिक प्रदूषण स्तर बेहद खराब : सी कार्बन संस्था के अध्यक्ष वीपी श्रीवास्तव ने बताया कि 'आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे उपकरण बढ़ रहे हैं, यातायात बढ़ रहा है, फैक्ट्री बढ़ रही है. मानव पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर पेड़ पौधों को काटकर विकास करने का प्रयास कर रहा है. इसी के चलते देश में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. तमाम तरीके की फैक्ट्रियों से निकलने वाली जहरीली गैसें या ग्रीन गैसें कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही हैं. इनका उत्सर्जन हो रहा है. इन गैसों से वायु प्रदूषण हो रहा है.'
ऐसे दूर करें सांस की दिक्कतें : डॉक्टर से सलाह लेकर बच्चों और बुजुगों को फ्लू का टीका जरूर लगवाएं. हमेशा गर्म कपड़े पहनें और बाहर निकलने पर नाक और मुंह को जरूर कवर करें. अस्थमा मरीजों के कमरे में अंदर धूपबत्ती न जलाएं. एक अध्ययन के मुताबिक, एक धूपबत्ती 100 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान कर सकती है. घरों में अंगीठी, हीटर आदि के प्रदूषण से काला दमा के मरीज की तबीयत बिगड़ सकती है. दमा से पीड़ित लोगों को सप्ताह में 3 से 4 बार 45-45 मिनट के लिए व्यायाम बेहद आवश्यक है. बीड़ी-सिगरेट पीने से काला दमा ज्यादा होता है.
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