लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एक मौजूदा पुलिस कमिश्नर चुनाव की तारीखों की घोषणा होने और आचार संहिता लगते ही सोशल मीडिया में नौकरी छोड़ने का एलान कर देता है. लेकिन सरकार की तरफ से कमिश्नरेट को लेकर कोई आदेश नहीं आता है. सोशल मीडिया में बाकायदा भाजपा में शामिल होने की घोषणा की जाती है और इसके बावजूद पुलिस कमिश्नर की हैसियत से अपने पुलिस कर्मियों को संदेश भी दिया जा रहा है. हालांकि ये सब कुछ चुनाव आयोग की आंखों के सामने हुआ. लेकिन किसी ने इसके खिलाफ सवाल नहीं नहीं उठाया.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी असीम अरुण की, जो तीन दिन बाद पूर्व आईपीएस होने वाले हैं. जिन्होंने 3 दिन पहले वीआरएस लेने का एलान किया था और भाजपा की सदस्यता लेने की घोषणा की थी. ये फैसला उनका व्यक्तिगत था. लेकिन इन सब के बीच सरकार के रवैये को लेकर चुनाव आयोग की ओर से संज्ञान न लेना सवालों के घेरे में है. 8 जनवरी को अचार संहिता लगने के बाद असीम अरुण ने वीआरएस लेने और भाजपा की सदस्यता के बाबत एलान किया था. लेकिन उसके बाद भी असीम अरुण कानपुर पुलिस कमिश्नर के पद पर बने रहे. यही नहीं अचार संहिता के बीच न ही सरकार ने कानपुर पुलिस कमिश्नर को हटाने को लेकर आदेश जारी किया और न ही कार्यकारी कमिश्नर नियुक्त किए गए. हालांकि सरकार ने चुनाव आयोग को नए पुलिस कमिश्नर के लिए तीन ADG रैंक के अधिकारियों का पैनल जरूर भेजा है.
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वहीं, अब विशेषज्ञों ने सवाल उठाए है कि अचार संहिता के बीच एक अधिकारी किसी राजनीतिक दल की सदस्यता लेने की घोषणा करने के बाद कैसे वर्दी का उपयोग कर सकता है? बल्कि असीम अरुण ने राजनीतिक दल में शामिल होने की घोषणा करने के बाद अचार संहिता के बीच 2 मिनट 5 सेकंड का एक वीडियो संदेश भी दिया. जिसमें उन्होंने कानपुर पुलिस कमिश्नर की हैसियत से अपने मातहतों को संबोधित किया.
सवाल 1: आखिरकार क्या वीआरएस लेने की घोषणा और भाजपा की सदस्यता लेने की बात सोशल मीडिया में कहने के बाद वर्दी पहनकर अपने मातहतों को संबोधित करते हुए पुलिस कमिश्नर का कार्यालय प्रयोग करने के लिए असीम अरुण ने चुनाव आयोग की इजाजत ली थी ?
सवाल 2: आखिरकार अचार संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग की नजरों के सामने एक ऐसा अधिकारी जिसने राजनीतिक दल ज्वाइंन करने का एलान किया हो और वो पुलिस कमिश्रर की हैसियत से वर्दी पहने मातहतों को संदेश देता हो तो आयोग ने क्यों कोई एक्शन नहीं लिया ?
सवाल 3: आखिर एक आईपीएस अधिकारी वीआरएस की घोषणा करता है. राजनीतिक दल की सदस्यता की सूचना आम करता है तो सरकार ने चुनाव आयोग की इजाजत से कोई कार्यकारी कमिश्नर क्यों नही नियुक्त किया. यही नहीं इस मामले में लिखित आदेश क्यों नही जारी हुए ?
ये तमाम सवाल है, जो अब लोगों को परेशान करने लगे हैं. हालांकि ऑफिसियल वेबसाइट से आज असीम अरुण का नाम हटा दिया गया है.
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