लखनऊ: दिवाली के दूसरे दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है. इस दिन गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट उत्सव मनाना चाहिए. इससे भगवान विष्णु को प्रसन्न्ता प्राप्त होती है. अन्नकूट महोत्सव 15 नवम्बर को मनाया जाएगा.
पंचाग के अनुसार 15 नवम्बर को ही अन्नकूट पूजा
पंचाग में 15 तारीख को ही अन्नकूट पूजा बताई गई है. ज्योतिषी डाॅ. एसडी मिश्रा भी 15 को अन्नकूट महोत्सव मनाना श्रेष्ठ बताते हैं.
बनाए जाते हैं गोबर के पहाड़
ज्योतिषी डाॅ. एसडी मिश्रा ने बताया कि इस दिन सुबह घर के द्वार में गोबर का गोवर्धन बनाया जाता है. इसके बाद उसे वृक्षों की शाखा, पत्तियों और पुष्पों से सुशोभित किया जाता है. कई जगहों पर इसे मनुष्य का आकार भी दिया जाता है. गोवर्धन बनाकर इसकी विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए. पूजन में प्रार्थना करनी चाहिए.
56 प्रकार के व्यंजनों से लगता है भोग
उन्होंने बताया कि छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन भगवान को भोग लगाया जाता है. बाद में इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों विविध प्रकार के पकवान, मिठाइयां, नमकीन और अनेक प्रकार की सब्जियां, मेवे, फल, आदि भगवान के समक्ष सजाए जाते हैं. अन्नकूट का भोग लगाकर भगवान की आरती की जाती है. यह पूजा ब्रज क्षेत्र में बहुत ही समारोह पूर्वक मनाई जाती है.
महोत्सव की कथा
द्वापर में ब्रज में अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा की जाती थी. भगवान श्रीकृष्ण ने गोप-ग्वालों को समझाया कि गाय और गोवर्धन प्रत्यक्ष देवता है. अत: आप लोगों को इनकी पूजा करनी चाहिए. इंद्र तो यहां कभी दिखाई भी नहीं देते हैं. इसके परिणाम स्वरूप ब्रज वासियों ने गोवर्धन की पूजा की. स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का रूप धारणकर उस पकवान को ग्रहण किया.
इंद्र ने लगातार 7 दिन की थी वर्षा
जब इंद्र को यह बात ज्ञात हुई तो वे अत्यंत क्रुद्ध होकर मूसलाधार बारिश की. यह देख श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी अंगुलियों पर उठा लिया. उसके नीचे सभी ब्रजवासी, ग्वाल-बाल गाये-बछड़े आ गए. लगातार सात दिन की वर्षा से जब ब्रज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तो इंद्र को बड़ी ग्लानि हुई.
भगवान कृष्ण का पड़ा गोविन्द नाम
ब्रह्मा जी ने इंद्र को श्रीकृष्ण के परमात्मा होने की बात बताई, तो लज्जित हो इंद्र ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी. इस अवसर पर ऐरावत ने आकाशगंगा के जल से और कामधेनु ने अपने दूध से भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया. इससे वह गोविदं कहे जाने लगे, इस प्रकार गोवर्धन पूजन स्वयं श्रीभगवान का पूजन है.