लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पशुपालन विभाग में वर्ष 2018 में टेंडर दिलाने के नाम पर इंदौर के एक व्यापारी को करोड़ों रुपये की ठगी के मामले के मुख्य अभियुक्त आशीष राय की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने अपने आदेश में यह टिप्पणी भी की है कि अभियुक्त ने बड़े पदों पर बैठे सरकारी अधिकारियों के साथ इस अपराध को अंजाम दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने आशीष राय की जमानत याचिका पर पारित किया.
अभियुक्त की ओर से अधिवक्ता रवि सिंह ने दलील दी कि उसे झूठा फंसाया गया है. उसके खिलाफ अभियोजन के पास कोई भी ठोस साक्ष्य नहीं हैं और मामले में विवेचना पूरी हो चुकी है. लिहाजा अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जाए. जमानत याचिका का विरोध करते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता राव नरेंद्र सिंह ने न्यायालय को बताया कि अभियुक्त ने खुद को पशुपालन विभाग के उप निदेशक के तौर पर प्रस्तुत करते हुए अपराध को अंजाम दिया. कहा गया कि सचिवालय को इस अपराध के लिए इस्तेमाल किया गया जो कि अपराध की गम्भीरता को और बढ़ा देता है.
यह है मामला : इंदौर के व्यापारी मंजीत सिंह भाटिया ने इस मामले की प्राथमिकी हजरतगंज थाने पर आईपीसी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत दर्ज कराई थी. कहा गया है कि अप्रैल 2018 में वादी के छोटे भाई के दोस्त वैभव शुक्ला अपने साथी संतोष शर्मा के साथ उनके इंदौर स्थित आवास पर आया और बताया कि पशुपालन मंत्री के करीबी और उप निदेशक पशुपालन एसके मित्तल आपको पार्टी हित में गेहूं, शक्कर, आटा और दाल की सप्लाई देना चाहते हैं. जिस पर विश्वास करके वादी ने दोनों अभियुक्तों को अपनी कंपनी का प्रोफाइल और टर्न ओवर के कागज दे दिए. कुछ दिनों के बाद दोनों पशुपालन से जारी टेंडर फार्म लेकर आए और वादी और उसकी पत्नी के हस्ताक्षर कराए तथा रेट उप निदेशक द्वारा भरने की बात कही. आरोप है कि इस सप्लाई के कार्य के लिए अभियुक्तों ने वादी से कुल नौ करोड़ 72 लाख 12 हजार रुपये लिए, लेकिन जब वादी ने ऑनलाइन टेंडर की स्थिति देखी तो पता चला कि उसे टेंडर नही मिला है और अभियुक्तों ने उसके साथ धोखाधड़ी कर दी है. मामले में पूर्व डीआईजी अरविन्द सेन की भी भूमिका सामने आई. वह भी फिलहाल जेल में है तथा उसकी जमानत याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन है.