लखनऊ: संघ प्रमुख मोहन भागवत का हिंदुत्व और लिंचिंग पर दिया गया हालिया बयान सुर्खियों में है. रविवार को उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के सलाहकार डॉ ख्वाजा इफ्तिखार की पुस्तक के विमोचन के अवसर पर हिंदुत्व और लिंचिंग पर जो बयान दिया वह चर्चा का विषय बन गया है. अपने बयान में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि भारत के सभी लोगों का डीएनए एक है, वह चाहें किसी भी धर्म और मजहब को मानने वाले क्यों न हों. उन्होंने लोगों में पूजा पद्धति के आधार पर अंतर किए जाने को गलत बताया. भागवत ने मॉब लिंचिग पर कहा कि ऐसा करने वाले हिंदुत्व के खिलाफ हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ बिना भेदभाव के कार्रवाई होनी चाहिए. इस बयान को लोग कैसे देखते हैं, क्या इसके कोई राजनीतिक मायने हैं? आरएसएस विचार, आलोचक और राजनीतिक विश्लेषक इस बयान को किस तरह देखते हैं? पेश है इस पर विशेषज्ञों की राय...
'संघ प्रमुख का बयान सावरकर की विचारधारा का विस्थापन'
आलोचक व राजनीतिक विचारक रविकांत कहते हैं कि मुझे लगता है कि सावरकर की जो विचारधारा थी हिंदुत्व को लेकर, उससे थोड़ा विस्थापन नजर आता है. क्योंकि उनका सीधा मानना था कि जिनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि और धर्मभूमि तीनों ही भारत हो, वह हिंदू हैं. उन्होंने हिंदू के भीतर जैनियों, सिखों और बौद्धों को शामिल कर लिया था. मोहन भागवत जो बात कह रहे हैं, उसमें ईसाई, पारसी और मुस्लिम यह तीनों भी शामिल हो जाते हैं.
भाजपा को विधानसभा चुनाव में मिलेगा ऐसे बयानों से लाभ
रविकांत कहते हैं कि मुझे लगता है कि संघ विचारधारा के स्तर पर खुद को बदल रहा है. इसे सैद्धांतिक रूप दिया गया है या नहीं, यह मैं नहीं कह सकता, लेकिन बोलने में यह हो रहा है. वह कहते हैं कि संघ प्रमुख का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू हो गई है. स्वाभाविक है कि संघ प्रमुख के ऐसे बयानों का लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा. रविकांत कहते हैं कि संघ प्रमुख के बयान में एक छलावा भी है. कल को जब आप हिंदू राष्ट्र की बात करेंगे, तो बड़े आराम से कह सकेंगे कि हम तो आपको हिंदू मानते ही हैं. हिंदू राष्ट्र बनाने में क्या दिक्कत है. लिंचिंग पर संघ प्रमुख के कहा कि कुछ लोगों को फंसा दिया गया है. यानी एक ओर तो आप बचाव कर रहे हैं और दूसरी ओर कह रहे हैं कि यह हिंदुत्व में नहीं आता. अरे यह तो अमानवीय है. उन्हें स्पष्ट तौर पर कहना चाहिए कि यह अमानवीय और गैरकानूनी है. मॉब लिंचिंग के जिन मामलों का स्वागत किया गया उस पर भी संघ प्रमुख के विचार आने चाहिए.
मोहन भागवत के बयान को राजनीति से जोड़कर देखना गलत
आरएसएस विचारक दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान को राजनीति से जोड़कर देखना गलत होगा. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में अभी काफी समय है. इसे चुनावों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. चुनाव राजनीतिक दलों का काम है. संघ प्रमुख राष्ट्र निर्माण के लिए लंबी योजना बनाते हैं और उस पर काम करते हैं. संघ का लक्ष्य भारत को परम वैभव तक पहुंचाना है.उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि संघ प्रमुख जी ने कोई नई बात इसमें नहीं कही है. ऐसे विचार वह पहले भी देते रहे हैं. हिंदुत्व का मतलब किसी उपासना पद्धति से नहीं, बल्कि जीवन पद्धति से है. भारत में रहने वाले सभी भारतीय ही हैं. हिंदू जीवन पद्धति से जुड़े होने के कारण सभी देशवासी हिंदू ही हैं. इंडोनेशिया का उदाहरण लिया जा सकता है. वहां आज तक लोगों ने इस्लाम होने के बाद भी अपनी संस्कृति नहीं छोड़ी. वहां रामलीला होती है. मंदिर हैं और हमारे जैसे नाम भी. हिंदू-मुसलमानों में समरसता का भाव भारतीय और हिंदू से संभव है. वह अपनी संस्कृति और उपासना पद्धति का पालन करें, लेकिन एक सूत्र में जुड़ जाएं, तो राष्ट्रीय एकता व समरसता संभव है. मॉब लिंचिंग पर उन्होंने कहा कि हिंदू सभ्यता सबसे प्राचीन है. इसमें वसुधैव कुटुंबकम की कामना की गई. हमारी जोर-जबर्दस्ती करने की संस्कृति नहीं है. इस पृष्ठभूमि पर जब हम देखेंगे तो पता चलेगा कि मॉब लिंचिंग बहुत ही खराब है. यह हिंदुत्व के विरुद्ध है. इसलिए उनका बयान स्वागत योग्य है.
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'राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से नफा-नुकसान ढूंढ़ सकते हैं'
राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं, मोहन भागवत के बयान में राजनीति तलाशना ठीक नहीं होगा. यह बयान राजनीति से प्रेरित नहीं है. वह पहले भी ऐसे बयान दे चुके हैं. यह और बात है कि इस बयान में राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से नफा-नुकसान ढूंढ़ सकते हैं. योगेश मिश्र कहते हैं कि यह सही है कि देश में बड़ी संख्या में हिंदुओं का धर्मांतरण कराया गया और वह मुस्लिम और ईसाई बने. धर्मांतरण कहीं लालच के आधार पर हो रहा है, तो कहीं कोई सुविधा देकर. पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना के पूर्वज भी हिंदू थे. ऐसे ही हजारों और लोग भी हैं. कायदे से धर्मांतरण कर यदि कोई अपने मूल धर्म में लौटना चाहता है, तो इसकी सुविधा भी होनी चाहिए. हालांकि प्रायः हिंदू समाज इसकी स्वीकृति नहीं देता.
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राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि संघ प्रमुख के इस बयान के राजनीतिक मायने नहीं निकालने चाहिए. मॉब लिंचिंग पर वह कहते हैं कि यह अमान्य है. देश में कानून है. यदि कोई कानून को हाथ में लेने की कोशिश करेगा तो देश में अराजकता कामय हो जाएगी और कानून और संविधान का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. इसलिए मोहन भागवत के बयान का स्वागत किया जाना चाहिए.