लखनऊ : हाल ही में प्रदेश की जिला सहकारी बैंकों में चुनाव संपन्न हुआ है. इन चुनावों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए बड़ी संख्या में भाजपा प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए. दोनों ही पदों पर चुनकर आए भाजपा कार्यकर्ताओं में एक जाति विशेष के लोगों का दबदबा है. इससे पार्टी के कई नेताओं में खासी नाराजगी है, हालांकि वह खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं.
इन चुनावों में भेदभाव से आहत भाजपा विधायक रहे एक बुजुर्ग ब्राह्मण नेता कहते हैं 'हमारी पार्टी को बहुत बड़ी संख्या में ब्राह्मण वोट देते हैं और खुलकर समर्थन भी देते हैं, लेकिन जब पार्टी को कुछ देना होता है, तो ब्राह्मणों की याद तक उन्हें नहीं आती. जिन 39 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी निर्विरोध अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुने गए हैं, उनमें से 16 अध्यक्ष और इतने ही उपाध्यक्ष क्षत्रिय जाति से आते हैं. यदि ब्राह्मणों की बात करें, तो अध्यक्ष पद के लिए तीन और उपाध्यक्ष पद के लिए भी महज तीन नेता चुने गए हैं.' वह कहते हैं 'कई और भी ब्राह्मण डायरेक्टर थे, जो अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बन सकते थे, लेकिन इसकी किसे फिकर है.'
संघ से जुड़े एक अन्य भाजपा कार्यकर्ता विनोद कुमार पांडेय कहते हैं कि 'उन्होंने जब से संघ और भाजपा ज्वाइन की है, तब से कभी किसी और पार्टी को वोट नहीं दिया है, हालांकि वह भी ब्राह्मणों की उपेक्षा से आहत हैं. विनोद पांडेय कहते हैं कि ज्यादातर ब्राह्मण भाजपा को वोट देते हैं, लेकिन पार्टी समझती है कि ब्राह्मण मजबूर है और जाएगा भी तो कहां? शायद इसीलिए उनकी उपेक्षा होती है. पार्टी हर चुनाव में जातीय समीकरणों पर ध्यान देती है, लेकिन ब्राह्मणों को छोड़कर. वह कहते हैं कि केंद्रीय संगठन से लेकर राज्य संगठन तक इसे देखा जा सकता है कि किसे कितना नेतृत्व मिला है.
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता मनीष शुक्ला कहते हैं 'कोआपरेटिव के चुनाव में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष वही चुना जा सकता है, जो डायरेक्टर होता है. ऐसे में जहां जैसे कार्यकर्ता थे, वहां उन्हें चुनाव में उतारा गया है. इन चुनावों में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया है.'
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