लखनऊ: वाणिज्य कर विभाग में फर्जीवाड़ा करके भ्रष्टाचार करने वाले 32 अधिकारियों के खिलाफ जल्द शिकंजा कसना शुरू हो जाएगा. वाणिज्य कर विभाग में फर्जी फर्मो के पंजीयन में करोड़ों रुपये का टैक्स में फर्जीवाड़ा करने वाले अधिकारियों के खिलाफ सतर्कता विभाग की जांच तेज हो गई है.
जांच में फंसे 32 अधिकारी, लिए जा रहे हैं बयान
सतर्कता विभाग से जुड़े अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार, वाणिज्य कर विभाग के करीब 32 अधिकारी जांच में फंसे हैं. ऐसे में इन अधिकारियों से सतर्कता विभाग की पूछताछ शुरू हो गई है. इसके साथ ही विभाग के अधिकारियों के अलावा तमाम अन्य कर्मचारी भी शामिल हैं. अधिकारियों के बाद कर्मचारियों से भी पूछताछ की जाएगी. सतर्कता विभाग की जांच पूरी होने के बाद पूरी जांच रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी, जिसके बाद इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
यह है पूरा मामला
विभागीय अधिकारियों के अनुसार, वैट व्यवस्था के अंतर्गत फर्जी फर्मों का पंजीयन कर करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार का यह मामला वर्ष 2008 से 2011 के बीच का है. इस फर्जीवाड़े के मामले में वाणिज्य कर विभाग के 32 अधिकारी फंसे हुए हैं. आयरन स्टील के तमाम व्यापारियों द्वारा विभिन्न जिलों में फर्मों का पंजीयन कराया गया था. इसमें सर्वाधिक फर्म गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, कानपुर, आगरा और मेरठ में पंजीकृत कराई गई थी. उसी आधार पर उन्होंने करोड़ों रुपये के माल की खरीद व बिक्री भी की थी.
करोड़ों रुपये का हुआ भ्रष्टाचार, सरकार को टैक्स का नुकसान
बाद में जांच में यह पता चला कि इनमें से अधिकांश फर्म फर्जी हैं. ऐसी फर्जी फर्मों की संख्या 130 से अधिक बताई जा रही है, जो सिर्फ कागज पर ही मौजूद हैं. विभाग को जब तक पता चलता, इन फर्जी फर्मो पर ही व्यापारी करोड़ों रुपये का कारोबार कर चुके थे. इससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ.
विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ भ्रष्टाचार
विभागीय सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक जांच में सामने आया कि व्यापारियों, अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से यह बड़ा फर्जीवाड़े का खेल खेला गया था. जांच में यह तथ्य सामने आए हैं कि अधिकारियों ने नियम ताक पर रखकर स्थलीय सत्यापन किए बिना ही फर्मों का पंजीकरण कर दिया था. अन्य शर्तों की भी अनदेखी की गई.
शुरू में सिर्फ कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई थी, जिससे नाराज कर्मचारियों ने अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाया. इस पर विभाग ने पूरे प्रकरण की सतर्कता जांच की सिफारिश सरकार को भेज दी थी, जिसके बाद अब सतर्कता जांच तेज करते हुए इस मामले में आरोपित 32 अधिकारियों से पूछताछ शुरू कर दी गई है.
दस साल निष्क्रिय था सतर्कता विभाग, अब जांच तेज
विभागीय अधिकारी बताते हैं कि इतना गंभीर मामला होने के बावजूद 10 साल बाद इस फर्जीवाड़े की जांच सतर्कता विभाग के स्तर पर लटकी रही. सतर्कता विभाग के इस बड़े फर्जीवाड़े में इतना अधिक समय लगने के पीछे भी तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं.
यह पूरा मामला पिछले दिनों संज्ञान में आने के बाद शासन के निर्देश पर सतर्कता विभाग की जांच तेज हुई है. अब सतर्कता विभाग के अधिकारी एक-एक फर्जी फर्म के पंजीकरण से जुड़े अधिकारियों से पूछताछ कर रहे हैं और पूरी रिपोर्ट जल्द ही शासन को भेज कर कार्रवाई की सिफारिश करेंगे.