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54 करोड़ रुपये के राजस्व का सालाना हो रहा नुकसान, कैडर पुनर्गठन की मांग तेज

वाणिज्य कर विभाग (Department of Commerce) का कैडर पुनर्गठन न होने से राज्य सरकार को हर साल 54 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है. ऐसे में उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर सेवा संघ के अध्यक्ष ने कैडर रिव्यू की मांग तेज कर दी है.

वाणिज्य कर विभाग
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Published : Jul 13, 2021, 11:05 PM IST

लखनऊ: वाणिज्य कर विभाग (Department of Commerce) में लंबे अरसे से लंबित कैडर रिव्यू मामले के कारण राज्य कर विभाग (state tax department) को राजस्व का नुकसान हो रहा है. अधिकारियों के अनुसार कैडर पुनर्गठन न होने की वजह से प्रतिवर्ष 54 करोड़ के राजस्व की हानि हो रही है. देश में जीएसटी(GST) व्यवस्था को लागू हुए भी चार वर्ष का समय बीत रहा है. कैडर पुनर्गठन को लेकर विभाग के अधिकारी कर्मचारी संगठन लंबे अरसे से मांग भी कर रहे हैं. बावजूद इसके न होने से प्रति दिन राज्य कर विभाग को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है.

वाणिज्य कर विभाग के अधिकारी कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने आज संयुक्त बयान जारी कर बताया कि आईआईएम (IIM) की रिपोर्ट के अनुसार वाणिज्य कर विभाग में कैडर पुनर्गठन नहीं होने से वाणिज्य कर विभाग में सालाना 54 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, जिसका उपयोग राज्य में चल रहे अन्य विकास कार्यों में सरकार कर सकती है. उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर सेवा संघ के अध्यक्ष राजवर्द्धन सिंह, उ.प्र. वाणिज्य कर अधिकारी संघ के अध्यक्ष कपिलदेव तिवारी, उ.प्र.चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री सुरेश सिंह यादव ने संयुक्त रूप से कहा कि राज्य सरकार द्वारा आईआईएम जैसी प्रतिष्ठित प्रबन्धन संस्थान से वाणिज्य कर विभाग में होने वाले कैडर पुनर्गठन के लिए अध्ययन कराया, जिसमें सरकार द्वारा 59 लाख रुपये खर्च किये गए.

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अधिकारियों ने कहा कि यदि वाणिज्य कर विभाग में आईआईएम की रिपोर्ट लागू हो जाती है तो 4.5 करोड़ रुपये प्रतिमाह के हिसाब से सालाना 54 करोड़ रुपये खर्च में कटौती होगी. यह राज्य सरकार के अन्य विभागों के लिए भी यह फिजूलखर्ची के साथ प्रबन्धन के सिद्धांतों पर आधारित विभागीय संरचना परिवर्तन का उत्कृष्ट उदाहरण साबित होगा. आईआईएम द्वारा दो वर्ष पूर्व अपनी रिपोर्ट सरकार को प्राप्त करा दी गई थी तथा उसी समय यह रिपोर्ट लागू हो गई होती तो अभी तक लगभग 100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय नहीं होता. सभी संघों ने सामूहिक मांग की है कि जल्द से जल्द वाणिज्य कर विभाग में आईआईएम की रिपोर्ट के हिसाब से कैडर पुनर्गठन किया जाए, जिससे जीएसटी अधिनियम के अनुरूप विभाग कार्य कर सके और साथ ही सरकार का वित्तीय भार कम हो सके.

लखनऊ: वाणिज्य कर विभाग (Department of Commerce) में लंबे अरसे से लंबित कैडर रिव्यू मामले के कारण राज्य कर विभाग (state tax department) को राजस्व का नुकसान हो रहा है. अधिकारियों के अनुसार कैडर पुनर्गठन न होने की वजह से प्रतिवर्ष 54 करोड़ के राजस्व की हानि हो रही है. देश में जीएसटी(GST) व्यवस्था को लागू हुए भी चार वर्ष का समय बीत रहा है. कैडर पुनर्गठन को लेकर विभाग के अधिकारी कर्मचारी संगठन लंबे अरसे से मांग भी कर रहे हैं. बावजूद इसके न होने से प्रति दिन राज्य कर विभाग को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है.

वाणिज्य कर विभाग के अधिकारी कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों ने आज संयुक्त बयान जारी कर बताया कि आईआईएम (IIM) की रिपोर्ट के अनुसार वाणिज्य कर विभाग में कैडर पुनर्गठन नहीं होने से वाणिज्य कर विभाग में सालाना 54 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, जिसका उपयोग राज्य में चल रहे अन्य विकास कार्यों में सरकार कर सकती है. उत्तर प्रदेश वाणिज्य कर सेवा संघ के अध्यक्ष राजवर्द्धन सिंह, उ.प्र. वाणिज्य कर अधिकारी संघ के अध्यक्ष कपिलदेव तिवारी, उ.प्र.चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री सुरेश सिंह यादव ने संयुक्त रूप से कहा कि राज्य सरकार द्वारा आईआईएम जैसी प्रतिष्ठित प्रबन्धन संस्थान से वाणिज्य कर विभाग में होने वाले कैडर पुनर्गठन के लिए अध्ययन कराया, जिसमें सरकार द्वारा 59 लाख रुपये खर्च किये गए.

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अधिकारियों ने कहा कि यदि वाणिज्य कर विभाग में आईआईएम की रिपोर्ट लागू हो जाती है तो 4.5 करोड़ रुपये प्रतिमाह के हिसाब से सालाना 54 करोड़ रुपये खर्च में कटौती होगी. यह राज्य सरकार के अन्य विभागों के लिए भी यह फिजूलखर्ची के साथ प्रबन्धन के सिद्धांतों पर आधारित विभागीय संरचना परिवर्तन का उत्कृष्ट उदाहरण साबित होगा. आईआईएम द्वारा दो वर्ष पूर्व अपनी रिपोर्ट सरकार को प्राप्त करा दी गई थी तथा उसी समय यह रिपोर्ट लागू हो गई होती तो अभी तक लगभग 100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय नहीं होता. सभी संघों ने सामूहिक मांग की है कि जल्द से जल्द वाणिज्य कर विभाग में आईआईएम की रिपोर्ट के हिसाब से कैडर पुनर्गठन किया जाए, जिससे जीएसटी अधिनियम के अनुरूप विभाग कार्य कर सके और साथ ही सरकार का वित्तीय भार कम हो सके.

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