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केमिकल के सहारे बाघों को निशाना बना रहे शिकारी, IVRI की रिपोर्ट में हुआ खुलासा - लखीमपुर खीरी की खबरें

उत्तर प्रदेश के दुधवा टाईगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघों पर अन्तरराष्ट्रीय शिकारियों की काली निगाह पड़ चुकी है. शिकारी केमिकल का प्रयोग कर बाघों का शिकार कर रहे हैं. पिछले 9 सालों में केमिकल के जरिए ये शिकारी 15 बाघों को मार चुके हैं. बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.

केमिकल के सहारे बाघों को निशाना बना रहे शिकारी
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Published : Oct 20, 2019, 5:00 PM IST

Updated : Oct 21, 2019, 5:30 PM IST

लखीमपुर खीरी : उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में बढ़ रहे बाघों के कुनबे पर खतरे के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं अलबत्ता इंडो-नेपाल सीमा पर घने जंगलों के बीच स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघों की प्रजातियों पर शिकारियों की गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी है. बता दें कि पीलीभीत,लखीमपुर खीरी तथा बहराइच तक दुधवा नेशनल पार्क सीमा कई किलोमीटर तक फैली हुई है. इस नेशनल पार्क में पीलीभीत और लखीमपुर खीरी और बहराइच के जंगलों में बाघों के संरक्षण के लिए टाइगर रिजर्व एरिया बनाया गया था. जिसका उद्देश्य यही था कि तराई में बाघों की संख्या बढ़ाई जा सके.

केमिकल के सहारे बाघों को निशाना बना रहे शिकारी.

सरकार की इस मंशा पर अंतरराष्ट्रीय शिकारियों की नजर पड़ चुकी है. ऐसा कहना है बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट के आंकड़ों का. इन आंकड़ों को देखकर पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी. कई प्रजातियों के बाघों की मौत के आंकड़े सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हुए हैं जबकि इसके अलावा भी कई बाघ असमय काल के गाल में समा चुके हैं. तराई में हो रही बाघों की मौत के बाद बरेली से आई इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट से वन महकमे में हड़कंप मच गया है. वही वन्यजीव प्रेमी भी काफी सदमे में दिखाई पड़ रहे हैं.

1973 में की गई थी दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना
इंडो-नेपाल सीमा पर साल के घने जंगलों को जोड़कर 1973 में दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना की गई थी. जिसके बाद भारत सरकार द्वारा 1977 में बाघ बचाओ प्रोजेक्ट के तहत दुधवा नेशनल पार्क को 1987 में टाइगर रिजर्व का नाम दिया गया. इसमें पीलीभीत टाइगर रिजर्व और बहराइच के कर्तनिया वन्यजीव प्रभाग को जोड़ा गया. इसके पीछे तत्कालीन सरकार का उद्देश्य था कि तराई के जंगलों में स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघों की प्रजातियों के वन्यजीवों का संरक्षण किया जा सके.

कैसे हुआ खुलासा

  • 10 जुलाई 2019 को गोला रेंज के बिजोरिया के पास नहर से एक बाघिन का शव मिला था.
  • जिसे इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली में पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था.
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघिन के शरीर में ऑर्गेनों फास्फेट जहर होने की पुष्टि हुई है.
  • ऑर्गेनो फॉस्फेट कहने को तो कीटनाशक है, लेकिन यह बेहद धीमा और खतरनाक जहर है.
  • इस जहर से तराई में पिछले 10 सालों में 15 टाइगर और तेंदुओं की जान जा चुकी है.
  • यह जहर बाजार में पेस्टीसाईड की दुकानों पर आसानी से मिल जाता है.

अब तक केमिकल के जरिए शिकारी 15 बाघों को मार चुके हैं. बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में इन दिनों हो रही टाइगर की मौतों का कारण ऑर्गेनों फास्फेट जहर को बताया गया है. इसके बाद से वन विभाग में हड़कंप मच हुआ है.

कैसे देते हैं बाघों को जहर
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट वीपी सिंह के मुताबिक एक दशक पूर्व शिकारी या तो बाघ का शिकार बंदूक की गोली से करता था या फिर कुड़का लगाकर. लेकिन कुछ सालों से अन्तरराष्ट्रीय तस्करों ने एक नया तरीका इजाद किया है. उन लोगों ने जंगलों के आसपास बसने वाले लोगों को धन का प्रलोभन देकर अपने साथ मिला लिया है. वे उनसे टाइगर की लोकेशन के बारे में जानकारियां लेते हैं. टाइगर की आदत होती है वह अपने किये गये शिकार को एक बार में नहीं खाता है. उसी का फायदा यह शिकारी उठाते हैं.

टाइगर द्वारा मारे गए शिकार में वह ऑर्गेनो फॉस्फेट ग्रुप का जहर मिला देते हैं. इस जहर को खाने के बाद टाइगर की नर्वस सिस्टम प्रणाली कमजोर होने लगती है और उसको पानी की प्यास बहुत अधिक लगती है. वह पानी के तालाब की तरफ दौड़ता है और पानी पीने के बाद टाइगर को पैरालाइसिस अटैक पड़ जाता है. इसके बाद शिकारी उस टाइगर को लोकेट करके उसकी खाल, मूंछ, हड्डियों और मांस को निकालकर अन्तरराष्ट्रीय बाजार में ले जाकर ऊंची कीमतों पर बेचते हैं. जिन टाइगर को यह शिकारी लोकेट नहीं कर पाते वह नदी में पानी पीते समय पानी में डूबकर मर जाते हैं.

पिछले 9 सालों में दुधवा टाइगर रिजर्व और कर्तनिया घाट में मारे गए टाइगरों की सूची

  1. 2010 में मैलानी रेंज के श्री गुजरी ब्रांच लाइन नहर में बांकेगंज के पास एक बाघ का शव मिला था.
  2. 2013 में फरधान के पास एक बड़ी नहर से बाघ का शव मिला था.
  3. 2014 में मैलानी में नहर से बाघ का शव मिला था.
  4. 2014 में मैलानी रेंज से गुजरी बड़ी नहर में एक बाघ का शव मिला था.
  5. जनवरी 2015 में भीरा रेंज की किशनपुर रेंज में एक बाघ का शव मिला था.
  6. वर्ष 2016 में किशनपुर इलाके में एक बाघ का कंकाल मिला था.
  7. वर्ष 2017 में कर्तनिया घाट देव जन्म में एक बाघ का शव मिला था.
  8. 18 अगस्त 2017 को कर्तनिया घाट गोंडा मैलानी रेलवे लाइन के किनारे बाघ का शव मिला था.
  9. 27 मार्च 2018 को दक्षिण खीरी की मोहम्मदी रेंज महेश के महेशपुर में शिकारियों के फंदे में फंस कर बाघ की मौत हुई थी.
  10. 4 नवंबर 2018 को दुधवा टाइगर रिजर्व के किशनपुर रेंज में एक बाघिन को ग्रामीणों पीट-पीटकर मार डाला था.
  11. 27 मार्च वर्ष दुधवा स्टेशन के पास एक बाघ का शव मिला था.
  12. 10 जुलाई 2019 को गोला रेंज बिजोरिया नहर से बाघिन का शव मिला था.
  13. 2018 अगस्त महीने में संपूर्ण नगर रेंज के सुतिया नाले के पास एक तेंदुए का शव पानी से मिला था.
  14. 28 जुलाई 2019 को शारदा बैराज से एक तेंदुए का शव मिला था.
  15. 15 सितम्बर 2019 को पीलीभीत में बाघिन का शव हरदोई ब्रांच नहर में मिला था.

लखीमपुर खीरी : उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में बढ़ रहे बाघों के कुनबे पर खतरे के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं अलबत्ता इंडो-नेपाल सीमा पर घने जंगलों के बीच स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघों की प्रजातियों पर शिकारियों की गिद्ध दृष्टि पड़ चुकी है. बता दें कि पीलीभीत,लखीमपुर खीरी तथा बहराइच तक दुधवा नेशनल पार्क सीमा कई किलोमीटर तक फैली हुई है. इस नेशनल पार्क में पीलीभीत और लखीमपुर खीरी और बहराइच के जंगलों में बाघों के संरक्षण के लिए टाइगर रिजर्व एरिया बनाया गया था. जिसका उद्देश्य यही था कि तराई में बाघों की संख्या बढ़ाई जा सके.

केमिकल के सहारे बाघों को निशाना बना रहे शिकारी.

सरकार की इस मंशा पर अंतरराष्ट्रीय शिकारियों की नजर पड़ चुकी है. ऐसा कहना है बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट के आंकड़ों का. इन आंकड़ों को देखकर पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी. कई प्रजातियों के बाघों की मौत के आंकड़े सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हुए हैं जबकि इसके अलावा भी कई बाघ असमय काल के गाल में समा चुके हैं. तराई में हो रही बाघों की मौत के बाद बरेली से आई इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट से वन महकमे में हड़कंप मच गया है. वही वन्यजीव प्रेमी भी काफी सदमे में दिखाई पड़ रहे हैं.

1973 में की गई थी दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना
इंडो-नेपाल सीमा पर साल के घने जंगलों को जोड़कर 1973 में दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना की गई थी. जिसके बाद भारत सरकार द्वारा 1977 में बाघ बचाओ प्रोजेक्ट के तहत दुधवा नेशनल पार्क को 1987 में टाइगर रिजर्व का नाम दिया गया. इसमें पीलीभीत टाइगर रिजर्व और बहराइच के कर्तनिया वन्यजीव प्रभाग को जोड़ा गया. इसके पीछे तत्कालीन सरकार का उद्देश्य था कि तराई के जंगलों में स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघों की प्रजातियों के वन्यजीवों का संरक्षण किया जा सके.

कैसे हुआ खुलासा

  • 10 जुलाई 2019 को गोला रेंज के बिजोरिया के पास नहर से एक बाघिन का शव मिला था.
  • जिसे इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली में पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था.
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघिन के शरीर में ऑर्गेनों फास्फेट जहर होने की पुष्टि हुई है.
  • ऑर्गेनो फॉस्फेट कहने को तो कीटनाशक है, लेकिन यह बेहद धीमा और खतरनाक जहर है.
  • इस जहर से तराई में पिछले 10 सालों में 15 टाइगर और तेंदुओं की जान जा चुकी है.
  • यह जहर बाजार में पेस्टीसाईड की दुकानों पर आसानी से मिल जाता है.

अब तक केमिकल के जरिए शिकारी 15 बाघों को मार चुके हैं. बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में इन दिनों हो रही टाइगर की मौतों का कारण ऑर्गेनों फास्फेट जहर को बताया गया है. इसके बाद से वन विभाग में हड़कंप मच हुआ है.

कैसे देते हैं बाघों को जहर
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट वीपी सिंह के मुताबिक एक दशक पूर्व शिकारी या तो बाघ का शिकार बंदूक की गोली से करता था या फिर कुड़का लगाकर. लेकिन कुछ सालों से अन्तरराष्ट्रीय तस्करों ने एक नया तरीका इजाद किया है. उन लोगों ने जंगलों के आसपास बसने वाले लोगों को धन का प्रलोभन देकर अपने साथ मिला लिया है. वे उनसे टाइगर की लोकेशन के बारे में जानकारियां लेते हैं. टाइगर की आदत होती है वह अपने किये गये शिकार को एक बार में नहीं खाता है. उसी का फायदा यह शिकारी उठाते हैं.

टाइगर द्वारा मारे गए शिकार में वह ऑर्गेनो फॉस्फेट ग्रुप का जहर मिला देते हैं. इस जहर को खाने के बाद टाइगर की नर्वस सिस्टम प्रणाली कमजोर होने लगती है और उसको पानी की प्यास बहुत अधिक लगती है. वह पानी के तालाब की तरफ दौड़ता है और पानी पीने के बाद टाइगर को पैरालाइसिस अटैक पड़ जाता है. इसके बाद शिकारी उस टाइगर को लोकेट करके उसकी खाल, मूंछ, हड्डियों और मांस को निकालकर अन्तरराष्ट्रीय बाजार में ले जाकर ऊंची कीमतों पर बेचते हैं. जिन टाइगर को यह शिकारी लोकेट नहीं कर पाते वह नदी में पानी पीते समय पानी में डूबकर मर जाते हैं.

पिछले 9 सालों में दुधवा टाइगर रिजर्व और कर्तनिया घाट में मारे गए टाइगरों की सूची

  1. 2010 में मैलानी रेंज के श्री गुजरी ब्रांच लाइन नहर में बांकेगंज के पास एक बाघ का शव मिला था.
  2. 2013 में फरधान के पास एक बड़ी नहर से बाघ का शव मिला था.
  3. 2014 में मैलानी में नहर से बाघ का शव मिला था.
  4. 2014 में मैलानी रेंज से गुजरी बड़ी नहर में एक बाघ का शव मिला था.
  5. जनवरी 2015 में भीरा रेंज की किशनपुर रेंज में एक बाघ का शव मिला था.
  6. वर्ष 2016 में किशनपुर इलाके में एक बाघ का कंकाल मिला था.
  7. वर्ष 2017 में कर्तनिया घाट देव जन्म में एक बाघ का शव मिला था.
  8. 18 अगस्त 2017 को कर्तनिया घाट गोंडा मैलानी रेलवे लाइन के किनारे बाघ का शव मिला था.
  9. 27 मार्च 2018 को दक्षिण खीरी की मोहम्मदी रेंज महेश के महेशपुर में शिकारियों के फंदे में फंस कर बाघ की मौत हुई थी.
  10. 4 नवंबर 2018 को दुधवा टाइगर रिजर्व के किशनपुर रेंज में एक बाघिन को ग्रामीणों पीट-पीटकर मार डाला था.
  11. 27 मार्च वर्ष दुधवा स्टेशन के पास एक बाघ का शव मिला था.
  12. 10 जुलाई 2019 को गोला रेंज बिजोरिया नहर से बाघिन का शव मिला था.
  13. 2018 अगस्त महीने में संपूर्ण नगर रेंज के सुतिया नाले के पास एक तेंदुए का शव पानी से मिला था.
  14. 28 जुलाई 2019 को शारदा बैराज से एक तेंदुए का शव मिला था.
  15. 15 सितम्बर 2019 को पीलीभीत में बाघिन का शव हरदोई ब्रांच नहर में मिला था.
Intro:उत्तर प्रदेश के दुधवा टाईगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के बाघों पर अन्तर्राष्ट्रीय शिकारियों की काली निगाह पड़ चुकी है. शिकारी केमिकल का प्रयोग कर बाघों का शिकार कर रहे हैं ।जिसमें अब तक केमिकल के जरिए ये शिकारी 15 बाघों को मार चुके हैं । बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.


Body: उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में बढ़ रहे बाघों के कुनबे पर खतरे के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं अलबत्ता इंडो नेपाल सीमा पर घने जंगलों के बीच स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघों की प्रजातियों पर शिकारियों की गिद्ध दृष्टि पढ़ चुकी है। आपको बता दें पीलीभीत लखीमपुर खीरी तथा बहराइच तक दुधवा नेशनल पार्क कि कई किलोमीटर सीमा फैली हुई है इस नेशनल पार्क में पीलीभीत और लखीमपुर खीरी व बहराइच के जंगलों में बाघों के संरक्षण के लिए टाइगर रिजर्व एरिया बनाया गया था। जिसका उद्देश्य यही था कि तराई में बाघों की संख्या बढ़ाई जा सके लेकिन सरकार की इस मंशा पर अंतरराष्ट्रीय शिकारियों की नजर पड़ चुकी है जो की जंगल के राजा के जीवन के भविष्य पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि जो आंकड़े आज आपको हम दिखाने जा रहा है इन आंकड़ों को देखकर आपके भी पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। बाघ की प्रजातियों की मौत के आंकड़े सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हुए हैं जबकि इसके अलावा भी कई बाघ असमय काल के गाल में समा चुके हैं इससे भी हैरतअंगेज बात या है तराई में हो रही बाघों की मौत के बाद बरेली से आई इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट से वन महकमे में हड़कंप मच गया है वही वन्यजीव प्रेमी भी काफी सदमे में दिखाई पड़ रहे हैं
वीओ/1 इंडो नेपाल सीमा पर साल के घने जंगलों को जोड़कर 1973 में दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना की गई थी जिसके बाद भारत सरकार द्वारा 1977 में बाघ बचाओ प्रोजेक्ट के तहत दुधवा नेशनल पार्क को 1987 में टाइगर रिजर्व का नाम दिया गया इसमें पीलीभीत टाइगर रिजर्व और बहराइच के कर्तनिया वन्यजीव प्रभाग को जोड़ा गया सरकार का उद्देश्य या था की तराई के जंगलों में स्वच्छंद विचरण कर रहे बाघ प्रजातियों के वन्यजीवों का संरक्षण किया जा सके
वीओ2
बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में इन दिनों हो रही टाइगर की मौतों का कारण ऑर्गेनों फास्फेट जहर को बताया गया है. इसके बाद से वन विभाग में हड़कंप मच हुआ है.

उत्तर प्रदेश के दुधवा टाईगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के बाघों पर अन्तर्राष्ट्रीय शिकारियों की काली निगाह पड़ चुकी है. शिकारी केमिकल का प्रयोग कर बाघों का शिकार कर रहे हैं ।जिसमें अब तक केमिकल के जरिए ये शिकारी 15 बाघों को मार चुके हैं । बरेली के आईवीआरआई की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में इन दिनों हो रही टाइगर की मौतों का कारण ऑर्गेनों फास्फेट जहर को बताया गया है. इसके बाद से वन विभाग में हड़कंप मच हुआ है ।
वीओ/3
दरअसल, 10 जुलाई 2019 को गोला रेंज के बिजोरिया के पास नहर से एक बाघिन का शव मिला था. जिसे आईवीआरआई बरेली में पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघिन के शरीर में ऑर्गेनों फास्फेट जहर होने की पुष्टि हुई है. ऑर्गेनो फॉस्फेट कहने को तो कीटनाशक है, लेकिन यह बेहद धीमा और खतरनाक जहर है. जिससे इन दोनों तराई में पिछले 10 सालों में 15 टाइगर व तेंदुए की जान जा चुकी है. ये जहर बाजार में पेस्टीसाईड की दुकानों पर आसानी से मिल जाता है.
वीओ/4
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट वीपी सिंह के मुताबिक एक दशक पूर्व शिकारी या तो टाइगर का शिकार बंदूक की गोली से करता था या फिर कुड़का लगाकर. लेकिन कुछ सालों से अन्तर्राष्ट्रीय तस्करों ने एक नया तरीका इजाद किया है. उन लोगों ने जंगलों के आसपास बसने वाले लोगों को धन का प्रलोभन देकर अपने साथ मिला लिया है. वे उनसे टाइगर की लोकेशन के बारे में जानकारियां लेते हैं. टाइगर की आदत होती है वह अपने किये गये शिकार को एक बार में नहीं खाता है. उसी का फायदा यह शिकारी उठाते हैं. टाइगर मारे गए शिकार में ऑर्गेनो फॉस्फेट ग्रुप का जहर मिला देते हैं. इस जहर को खाने के बाद टाइगर की नर्वस सिस्टम प्रणाली कमजोर होने लगती है और उसको पानी की प्यास बहुत अधिक लगती है. वह पानी के तालाब की तरफ दौड़ता है और पानी पीने के बाद टाइगर को पैरालाइसिस अटैक पड़ जाता है. इसके बाद शिकारी उस टाइगर को लोकेट करके उसकी खाल, मूंछ, हड्डियों और मांस को निकालकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ले जाकर ऊंची कीमतों पर बेचते हैं. जिन टाइगर को ये शिकारी लोकेट नहीं कर पाते वह नदी में पानी पीते समय पानी में डूबकर मर जाते हैं ।
पिछले 10 साल में दुधवा टाइगर रिजर्व और कर्तनिया घाट मारे गए टाइगरों की सूची कुछ इस प्रकार है ।

1-जनवरी 2015 में भीरा रेंज की किशनपुर रेंज में एक टाइगर का शव मिला था ।

2- वर्ष 2016 में किशनपुर इलाके में एक टाइगर का कंकाल मिला था ।

3- वर्ष 2017 में कर्तनिया घाट देव जन्म में एक बाघ का शव मिला था ।

4- 18 अगस्त 2017 को कर्तनिया घाट गोंडा मैलानी रेलवे लाइन के किनारे टाइगर का शव मिला था ।

5- 4 नवंबर 2018 को दुधवा टाइगर रिजर्व के किशनपुर रेंज के अंदर एक बाघिन को ग्रामीणों पीट-पीटकर मार डाला था ।

6- 27 मार्च 2018 को दक्षिण खीरी की मोहम्मदी रेंज महेश के महेशपुर में शिकारियों के फंदे में फंस कर बाघ की मौत हुई थी ।

7- 2010 में मैलानी रेंज श्री गुजरी ब्रांच लाइन नहर में बांकेगंज के पास एक बाघ का शव मिला था ।

8- 2014 में मैलानी रेंज से गुजरी बड़ी नहर में एक टाइगर का शव मिला था ।

9- 2013 में फरधान के पास एक बड़ी नहर से बाघ का शव मिला था ।

10- 27 मार्च वर्ष दुधवा स्टेशन के पास एक टाइगर का शव मिला था ।

11- 2014 में मैलानी नहर से टाइगर का शव मिला था ।

12- 10 जुलाई 2019 को गोला रेंज बिजोरिया नहर से बाघिन का शव मिला था ।

13- 2018 अगस्त महीने में संपूर्ण नगर रेंज के सुतिया नाले के पास एक तेंदुए का शव पानी से मिला था ।

14- 28 जुलाई 2019 को शारदा बैराज से एक तेंदुए का शव मिला था ।

15- 15 सितम्बर 2019 को पीलीभीत में बाघिन का शव हरदोई ब्रांच नहर में मिला था ।

बाइट÷तरूण कुमार तिवारी (मुख्य पशु चिकत्सा अधिकारी)

बाइट÷संजय पाठक (फील्ड डायरेक्टर दुधवा टाइगर रिजर्व)

नोट रैप से भेजी गईConclusion:
Last Updated : Oct 21, 2019, 5:30 PM IST
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