कुशीनगर: पुलिस तो वैसे सभी त्योहारों पर सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए अपने कर्तव्य को निभाने में लगी रहती है, जिस वजह से पुलिसकर्मी किसी त्योहार को नहीं मना पाते, लेकिन जन्माष्टमी एक ऐसा त्योहार है, जिसकी शुरुआत ही कारागार से हुई है. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस वाले जन्माष्टमी के त्योहार को जरूर मनाते हैं. वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश का कुशीनगर ऐसा जिला है, जहां के थानों में पुलिस श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 27 वर्षों से नहीं मनाती है. आज से 27 वर्ष पूर्व जन्माष्टमी की तैयारियों के बीच डकैती की सूचना मिलने पर पहुंची पुलिस टीम के साथ हुए पचरूखिया कांड के कारण पुलिस कृष्ण जन्माष्टमी के त्योहार को नहीं मनाती है.
दरअसल, हिंदू धर्म में मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उनके मामा कंस के कारागार में हुआ था. कृष्ण की माता देवकी और पिता वासुदेव को कृष्ण की सुरक्षा की चिंता हुई, क्योंकि पहले से हुई भविष्यवाणी के अनुसार देवकी की 8वीं संतान द्वारा कंस का वध निश्चित था. भविष्यवाणी सुनकर कंस ने अपने बहनोई और बहन को कारागार में डलवा दिया था. कारागार में ही कंस ने देवकी के 7 संतानों की हत्या कर दी थी, लेकिन जब कृष्ण का जन्म हुआ तो सभी संतरी (सिपाही) द्वारपाल (पहरे पर लगे लोग) गहरी नींद में सो गए.
कारागार के सभी ताले टूट गए और दरवाजे खुल गए, जिसके बाद वासुदेव ने आसानी से कृष्ण को कारागार से निकालकर वृंदावन में नंद बाबा और यशोदा को सौंप दिया, जिसकी भनक कंस को नहीं लगी. श्रीकृष्ण की इस माया की वजह से पुलिस थानों में हर साल जन्माष्टमी यानी कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. मान्यता है कि द्वापर युग में जिस तरह कारागार था अब भी जेलों की बनावट वैसी ही है. अब भी पुलिस जेल में पहरेदारी करती है. यही कारण है कि इस दिन जन्माष्टमी मना कर सभी पुलिस वाले भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि उनके साथ कभी इस तरह की कोई घटना घटित न हो.
कुशीनगर में कब से नहीं मनाई जाती है जन्माष्टमी?
कुशीनगर जिले में 1994 में जन्माष्टमी की रात डकैती की सूचना पर पहुंची पुलिस टीम पर डाकुओं द्वारा फायरिंग कर दी गई थी, जिसमें 6 पुलिस के जवान शहीद हो गए थे. साथ ही नाविक की भी मौत हो गई थी. 4 पुलिस के जवान घायल हो गए थे. इसी घटना को 'पचरुखिया कांड' नाम दिया गया था. तब से कुशीनगर पुलिस 'पचरुखिया कांड' के गम की याद में अब तक जन्माष्टमी नहीं मनाती है.
जानिए क्या हैं पचरुखिया काण्ड की कहानी?
देवरिया जनपद से 13 मई 1994 को कुशीनगर जिले को पडरौना जिले के नाम से विभक्ति किया गया. उसके पहले की जन्माष्टमी इस इलाके की पुलिस भी धूमधाम से मनाती थी. नव सृजित जिला पडरौना (कुशीनगर) के पुलिसकर्मियों में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को लेकर जोरदार उत्साह रहता था. पुलिस लाइन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां जोरों पर थीं. 19 अगस्त 1994 को पडरौना कोतवाली पुलिस को सूचना मिली कि जंगलपार्टी के दुर्दांत दस्यु बेचू मास्टर व प्यारे लाल कुशवाहा उर्फ सिपाही पचरुखिया के तात्कालिक ग्राम प्रधान रामकृष्ण गुप्ता के घर डकैती डालकर उनकी हत्या की योजना बना रहे हैं. तात्कालिक कोतवाल योगेंद्र प्रताप सिंह ने इसकी सूचना एसपी बुधचंद को दी. एसपी ने कोतवाल को थाने में मौजूद फोर्स के अलावा मिश्रौली डोल मेला में लगे जवानों को लेकर मौके पर पहुंचने का निर्देश दिया. एसपी ने तरयासुजान एसएचओ अनिल पांडे को इस अभियान में शामिल होने का आदेश दिया.
डकैतों की धरपकड़ के लिए दो टीमें गठित की गईं, जिसमें पहली टीम तात्कालिक पडरौना सीओ आरपी सिंह के नेतृत्व में थी, जिसमें सीओ हाटा गंगा नाथ त्रिपाठी, एसआई योगेंद्र सिंह, आरक्षी मनीराम चौधरी, रामअचल चौधरी, सुरेंद्र कुशवाहा, विनोद सिंह व ब्रह्मदेव पाण्डेय को शामिल किया गया. दूसरी टीम उस समय एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माने जाने वाले एसएचओ तरयासुजान अनिल पांडे के नेतृत्व में गठित की गई. एसएचओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, एसआई अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्ता, श्याम शंकर राय, अनिल सिंह वा नागेंद्र पांडे की टीम 9:30 बजे बांसी नदी के किनारे पहुंची.
वहां पता चला कि जंगल दस्यु के लोग पचरुखिया गांव में हैं. पुलिसकर्मियों ने नाविक भूखल को बुलाकर डेंगी (छोटी नाव) से पार चलने को कहा. भूखल ने दो बार में डेंगी से पुलिसकर्मियों को बांसी नदी पार कराया, लेकिन काफी छानबीन करने के बाद भी पुलिस टीम को कोई सुराग नहीं मिला, जिसके बाद पहली खेप में सीओ समेत उनकी टीम नदी पार कर वापस आ गए. दूसरी खेप में डेंगी पर सवार होकर चले पुलिस टीम की नाव जब बीच नदी में पहुंची तो डकैतों ने बम चला कर उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग झोंक दी. डकैतों की गोली से नाविक भूखल व सिपाही विश्वनाथ घायल हो गए और गोली लगने से डेंगी अनियंत्रित होकर पलट गई.
डाकुओं की ताबड़तोड़ फायरिंग में 6 जवान शहीद, नाविक की हुई मौत
नाव पलटने के बाद सभी सवार पुलिसकर्मी नदी की मझधार में गिर गए और पुलिस टीम पर डाकुओं द्वारा लगभग 40 राउंड की लगातार फायरिंग की गई, जिसकी सूचना सीओ सदर ने वायरलेस के जरिए एसपी को सूचना दी. मौके पर पहुंची पुलिस टीम नदी में गिरे जवानों की तलाश शुरू की तो पता चला इस कांड में एसएचओ तरयासुजान अनिल पांडे, एसएचओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, तरयासुजान के आरक्षी नागेंद्र पाण्डेय, पडरौना कोतवाली के आरक्षी खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव व परशुराम गुप्ता शहीद हो गए. साथी नाविक भूलन भी इस फायरिंग में मारा गया. दारोगा अंगद राय, आरक्षी लालजी यादव, श्याम शंकर राय व अनिल सिंह घायल हो गए. पूरी घटना के बाद सभी पुलिसकर्मियों के हथियार बरामद हुए, लेकिन अनिल पांडे की पिस्तौल अब तक नहीं मिली. तत्कालीन डीजीपी ने घटना की जानकारी लेकर घटनास्थल का दौरा भी किया था.
पचरुखिया गांव मे हुई मुठभेड़ में 6 पुलिस के जवानों की शहादत को 'पचरुखिया कांड' नाम दिया गया. कुशीनगर जिले का पुलिस महकमा आज भी उस घटना की याद में जन्माष्टमी के त्योहार को ही अशुभ मानकर नहीं मनाता, लेकिन जनचर्चा में इस समय कुछ सवाल चल रहे है कि एक दुःखद घटना के शोक में किसी पवित्र त्योहार को ही अशुभ मान लेना कहा तक उचित हैं. क्या ईश्वर की प्रार्थना को घटना से जोड़ प्रतिकार कितना उचित है. क्या और जिलों की तरह कुशीनगर की पुलिस कभी जन्माष्ठमी का त्योहार मनायेगी?.