कौशांबी: जिले में एक ऐसा हिंदू परिवार है, जहां लोग पूरे एहतेराम के साथ मोहर्रम पर ताजियादारी करते हैं. गांव का हर इंसान पूरी इबादत से अपने परिवार के साथ मोहर्रम पर मजलिस मातम भी करता है. यह रवायत पिछले 200 सालों से गांव में कायम हैं. हालांकि इस दफा कोरोना महामारी के कारण शासन ने सामूहिक रूप से मजलिस, ताजियादारी और सीनाजनी के लिए इजाजत नहीं दी है. इसके बाद भी लोग अपने घरों में ही रहकर मोहर्रम मना रहे हैं. यहां 50 से अधिक हिंदू परिवार रहते हैं, जिनकी मोहर्रम मनाने के पीछे बहुत बड़ी आस्था है.
मोहर्रम मनाते हैं हिंदू परिवार
सिराथू तहसील के मोहब्बतपुर जीता गांव की तरफ जाने वाली सड़क इमामे हुसैन की सदाओं में डूबी है. यहां नफरत और मजहब की दीवार दरवाजे पर पहुंचते ही दम तोड़ देती है. यहां की तस्वीर इस बात की गवाह है कि हिन्दू परिवार जिस तरह पूरी शिद्दत से अपने त्योहार मनाते हैं, उसी आदर और सत्कार से मोहर्रम पर ताजियादारी भी करते हैं. यहां का हर इंसान अपने परिवार के साथ ताजिया को इज्जत के साथ रखकर इमाम का गम मनाता है.
200 साल पुरानी है परंपरा
बता दें कि ये बात लगभग 200 साल पुरानी है, जब देश में अंग्रेजी हुकूमत का बोलबाला था. अंग्रेज सरकार ने पानी के विवाद में हिंदू परिवार के लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी. ग्रामीणों की मानें तो जब सजा का ऐलान होने के बाद आरोपियों को कोर्ट से जेल ले जाया जा रहा था, तो रास्ते में उन लोगों ने ताजिया देखी थी. ताजिया देखते ही उन लोगों ने दुआ मांगी कि यदि उनकी सजा टल जाएगी, तो वे भी अजादारी और ताजियादारी करेंगे. इसके बाद उनकी दुआ कबूल हुई और इसी का नतीजा है कि आज भी मोहब्बतपुर जीता गांव में हिन्दू परिवार के दर्जनों लोग मोहर्रम के दिनों में नौहा और मातम करते हैं.