कौशांबी: जनपद में पानी की कमी के चलते किसानों के लिए ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon fruit is cultivated in Kaushambi) वरदान साबित हो रही है. ड्रैगन फ्रूट की खेती में पानी की बचत तो होती है. इसके साथ ही किसानों की आय भी बढ़ गई है. इतना ही नहीं यह डेंगू जैसी जानलेवा बीमारियों से भी निजात दिलाता है. डेंगू के चलते किसानों को इसे बेचने में भी परेशानी नहीं होती है. डेंगू के चलते मार्केट में ड्रैगन फ्रूट की मांग बढ़ गई है.
सिराथू तहसील के टेगाई गांव निवासी सुरेंद्र पांडेय खेती किसानी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. उनके तीन बेटे है. सुरेंद्र पांडेय के बड़े बेटे रविन्द्र पांडेय 2012 में कानपुर यूनिवर्सिटी से बीएससी पास करने के बाद एलएलबी की तैयारी कर रहे थे. इस दौरान उनकी रुचि पिता के साथ खेती किसानी (Demand for dragon fruit increased due to dengue) में होने लगी. कौशांबी में डार्कजोन होने के चलते वह कम सिचाई वाली फसल खोज रहे थे.
इस पर 2016 में तत्कालीन जिलाधिकारी अखंड प्रताप सिंह के माध्यम से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने की जानकारी मिली. उन्होंने उद्यान विभाग के माध्यम से ड्रैगन फ्रूट की खेती करनी शुरू किया है. पहले तो सही जानकारी नहीं मिलने से पहले साल कम मुनाफा कमाया. इसके बाद नेट के माध्यम से उन्हें ड्रैगन फ्रूट की खेती करने की अन्य जानकारी प्राप्त हुई और अच्छे तरीके से खेती करके अच्छा मुनाफा कमाना शुरू किया.
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ड्रैगन फ्रूट डेंगू से (How to cultivate dragon fruit) बचने के लिए वरदान साबित हो रहा है. ड्रैगन फ्रूट की मांग बाजार में बढ़ी और किसान मालामाल हो रहे हैं. किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती को आधा हेक्टेयर जामीन में करते हैं और इससे वह हर साल तीन से साढ़े तीन लाख रुपये कमाते है. जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दीपक सेठ ने बताया कि इस समय बुखार के मरीजों में भी प्लेट्स की कमी देखी जा रही है. ऐसे में कीवी खाने से प्लेट्स तेजी से बढ़ती हैं. वैसे से ड्रैगन फ्रूट में भी एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. इससे प्लेट्स बढ़ने में मदद मिलती है. यह फल डेंगू के मरीजों (Dengue patients benefit from dragon fruit) को बहुत फायदा पहुंचाता है.
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