कासगंज: यूपी के कासगंज में तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होना है. लेकिन उससे पहले हम आपको जिले की तीनों विधानसभा सीटों के जातीय समीकरण और स्थानीयों लोगों की सियासी राय के साथ ही सियासी विशेषज्ञों की जुबानी यहां बनते-बिगड़ते समीकरण से अवगत कराएंगे. वहीं, कासगंज जनपद के घंटाघर बाजार से ईटीवी भारत ने पड़ताल की शुरुआत की. सबसे पहले ईटीवी भारत से मिले एक व्यापारी राजकमल माहेश्वरी ने बताया कि कासगंज सदर विधानसभा सीट पर भाजपा मजबूत स्थिति में है, क्योंकि यह लोध राजपूत बाहुल्य सीट है. साथ ही हिंदुत्व और विकास के नाम पर भी यहां भाजपा को वोट मिलेंगे.
हालांकि जब राजकमल से पूछा गया कि समाजवादी पार्टी से भी जो प्रत्याशी मैदान में है, वो लोधे राजपूत बिरादरी से है तो उन्होंने कहा कि भाजपा को सर्व समाज का वोट मिल रहा है, जबकि सपा को मुस्लिमों और यादवों का वोट ही मिलेगा. वहीं, एक अन्य व्यवसायी सचिन गोयल ने कहा कि कासगंज सदर विधानसभा सीट पर समीकरण भाजपा के अनुकूल हैं और इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का प्रभुत्व है. यहां का लोध समाज बाबूजी के नाम पर भाजपा को वोट करते हैं. इसलिए यहां भाजपा मजबूत स्थिति में है.
वहीं, राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ व व्यापार मंडल कासगंज के जिलाध्यक्ष सतीश चंद्र ने कहा कि कासगंज सदर सीट और अमांपुर विधानसभा सीट पर लोध मतदाता निर्णायक की भूमिका में हैं. इसके अलावा यहां अन्य जातियां लगभग एक जैसी हैं. लेकिन कासगंज की सदर सीट से सपा और भाजपा दोनों ने ही अपने प्रत्याशी लोध समाज से ही उतारे हैं. वहीं, कुछ कारणवश वर्तमान भाजपा विधायक से लोग नाराज भी हैं. खैर, कुल मिलाकर मौजूदा परिदृश्य में यहां सपा मजबूत स्थिति में नजर आ रही है.
इधर, गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मस्थली व भगवान वराह की प्राकट्य स्थली तीर्थ नगरी सोरों (शूकर क्षेत्र) के रहने वाले अरुण कुमार दुबे ने बताया कि कासगंज जनपद की तीनों सीटें भाजपा जीत रही है. यहां का 90% मतदाता भाजपा को वोट कर रहा है. यहां लोध राजपूत वोट निर्णायक की भूमिका में हैं. इसके इतर आगे उन्होंने कहा कि करीब 50% लोध राजपूत हैं और 25% यादव मतदाता हैं. साथ ही 20% मुस्लिम वोटर्स हैं और अन्य स्वर्ण हैं.
कासगंज सदर सीट के जातीगत समीकरण पर डॉ. एनपी सिंह हल्दिया ने कहा कि यहां लोध राजपूत मतदाता निर्णायक की भूमिक में हैं. इसके अलावा शाक्य, मौर्य, कुशवाहा, सैनी समाज के वोट भी जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. वहीं, वैश्य, ब्राम्हण और ठाकुर इनके समकक्ष ही हैं.
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