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महिला सशक्तिकरण तभी संभव होगा जब महिलाएं अपने अधिकारों को जानेंगी - medical ethics in treating female patient

यूपी के कानपुर में महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के प्रथम दिवस पर 'मेडिकल एथिक्स इन ट्रीटिंग फीमेल पेशेंट' विषय पर विस्तृत चर्चा की गई. कार्यक्रम में मौजूद डक्टरों व विशेषज्ञों ने महिलाओं के उपचार में मेडिकल एथिक्स की जानकारी दी.

कार्यक्रम का उद्घाटन करतीं महिलाएं.
कार्यक्रम का उद्घाटन करतीं महिलाएं.
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Published : Oct 18, 2020, 12:17 PM IST

कानपुर: समाज की इकाई है परिवार और परिवार की इकाई है महिला. जब महिला ही जागरूक नहीं होगी, तो समाज का जागरूक होना संभव ही नहीं है. यह कहना है डॉ. नीना गुप्ता का, जो शनिवार को महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के प्रथम दिवस पर 'मेडिकल एथिक्स इन ट्रीटिंग फीमेल पेशेंट' विषय पर विस्तृत चर्चा में मौजूद थी.

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. मीरा अग्निहोत्री ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य व स्वाबलंबी होना प्रमुख आधार है. कार्यक्रम का आयोजन इंचार्ज मेडिकल एथिक्स कमेटी डॉ. यशवंत राव के तत्वावधान में किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर प्रतिमा वर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर और एग्जीक्यूटिव कमेटी मेंबर महिला सशक्तिकरण समिति द्वारा किया गया. इस मौके पर डॉ. किरण पांडे विभागाध्यक्ष स्त्री व प्रसूति रोग, डॉ. रिचा गिरी उप प्रधानाचार्य जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर ने पैनल डिस्कशन में भाग लिया. पैनल का संचालन डॉक्टर राज तिलक ने किया.

समय से उपचार से रोकी जा सकती है मैटरनल मोर्टालिटी

कार्यक्रम की नोडल अधिकारी प्रोफेसर डॉ. नीना गुप्ता ने आगे बताया कि महिलाओं के उपचार में मेडिकल एथिक्स उसके भ्रूण अवस्था से आरंभ हो जाता है. भ्रूण में आई कन्या के सम्मान से हम फीमेल फेटिसाइड को कम कर सकते हैं. महिला के उचित उपचार से एनीमिया व कैंसर सरविक्स जैसी बीमारियों को आरंभ में ही रोका जा सकता है. जिससे मैटरनल मोर्टालिटी को कम किया जा सकता है. इन सब के लिए यह आवश्यक है कि महिलाएं आरंभ से ही अपने उपचार के लिए अस्पताल आए. यह तभी होगा जब महिला के उपचार के समय उसके सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाए.

महिलाओं की भावना बदलने से बदलेगा समाज

डॉ. नीना ने कहा कि महिला अपने परिवार और बच्चों के लिए तो जागरूक हो सकती है, लेकिन वो अपने लिए जागरूक नहीं होगी. हम बात उस वर्ग की कर रहे हैं, जो 50 फीसदी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए महिला सशक्तिकरण तभी संभव है, जब महिलाओं को अपने स्वास्थ्य और अधिकारों की जानकारी होगी. किसी भी बड़े काम की शुरुआत भावना से होती है. जिस दिन महिलाओं की खुद को लेकर भावना बदलेगी उस दिन समाज बदल जायेगा.

कानपुर: समाज की इकाई है परिवार और परिवार की इकाई है महिला. जब महिला ही जागरूक नहीं होगी, तो समाज का जागरूक होना संभव ही नहीं है. यह कहना है डॉ. नीना गुप्ता का, जो शनिवार को महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम के प्रथम दिवस पर 'मेडिकल एथिक्स इन ट्रीटिंग फीमेल पेशेंट' विषय पर विस्तृत चर्चा में मौजूद थी.

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. मीरा अग्निहोत्री ने कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य व स्वाबलंबी होना प्रमुख आधार है. कार्यक्रम का आयोजन इंचार्ज मेडिकल एथिक्स कमेटी डॉ. यशवंत राव के तत्वावधान में किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर प्रतिमा वर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर और एग्जीक्यूटिव कमेटी मेंबर महिला सशक्तिकरण समिति द्वारा किया गया. इस मौके पर डॉ. किरण पांडे विभागाध्यक्ष स्त्री व प्रसूति रोग, डॉ. रिचा गिरी उप प्रधानाचार्य जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर ने पैनल डिस्कशन में भाग लिया. पैनल का संचालन डॉक्टर राज तिलक ने किया.

समय से उपचार से रोकी जा सकती है मैटरनल मोर्टालिटी

कार्यक्रम की नोडल अधिकारी प्रोफेसर डॉ. नीना गुप्ता ने आगे बताया कि महिलाओं के उपचार में मेडिकल एथिक्स उसके भ्रूण अवस्था से आरंभ हो जाता है. भ्रूण में आई कन्या के सम्मान से हम फीमेल फेटिसाइड को कम कर सकते हैं. महिला के उचित उपचार से एनीमिया व कैंसर सरविक्स जैसी बीमारियों को आरंभ में ही रोका जा सकता है. जिससे मैटरनल मोर्टालिटी को कम किया जा सकता है. इन सब के लिए यह आवश्यक है कि महिलाएं आरंभ से ही अपने उपचार के लिए अस्पताल आए. यह तभी होगा जब महिला के उपचार के समय उसके सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाए.

महिलाओं की भावना बदलने से बदलेगा समाज

डॉ. नीना ने कहा कि महिला अपने परिवार और बच्चों के लिए तो जागरूक हो सकती है, लेकिन वो अपने लिए जागरूक नहीं होगी. हम बात उस वर्ग की कर रहे हैं, जो 50 फीसदी का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए महिला सशक्तिकरण तभी संभव है, जब महिलाओं को अपने स्वास्थ्य और अधिकारों की जानकारी होगी. किसी भी बड़े काम की शुरुआत भावना से होती है. जिस दिन महिलाओं की खुद को लेकर भावना बदलेगी उस दिन समाज बदल जायेगा.

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