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...1984 में हुए सिख दंगों की कहानी, पीड़ितों की जुबानी

31 अक्टूबर 1984 को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में फैले सिख दंगों का असर दिल्ली के बाद कानपुर में सबसे ज्यादा प्रभावी था. उत्तर प्रदेश में सिख दंगों के भयावह रूप के दंश को औद्योगिक नगरी के सिखों ने भी झेला. आप खुद सुनिए उस दंश की कहानी, पीड़ितों की जुबानी...

story of 1984 sikh riots
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Published : Nov 2, 2019, 6:04 AM IST

Updated : Nov 2, 2019, 8:26 AM IST

कानपुरः सिख दंगों की आग में कानपुर के 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह हो जाने की बात कही जाती है. हालांकि सिख दंगों की जांच करने वाले रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग ने दंगों में 127 मौतें होने की ही बात कही थी. आज भी दंगा पीड़ितों के दिलों-दिमाग में 84 की आग का मातम छाया हुआ है. 35 साल बीत जाने के बाद भी जब पीड़ितों के जेहन में अपनों के खोने की बात याद आती है तो दर्द झलक जाता है.

1984 में हुए सिख दंगे की कहनी.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख समुदाय के खिलाफ दंगे हुए थे. उस दौरान कानपुर में भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 127 सरदारों की हिंसा में मौत हो गई थी. कानपुर में गोविन्द नगर, जूही, बजरिया, नजीबाबाद, गुमटी मार्केट सहित शहर के कई इलाकों में सिखों के साथ कत्लोगारत की वारदात हुई थी. इनमें सिखों की दुकानें को लूटने के साथ उनके मकानों को आग के हवाले कर दिया गया था. बड़ी मुश्किल से सिखों ने हिंसा के दौर में पलायन कर अपनी और अपने परिजनों की जान बचाई थी. सन 1984 के नवम्बर माह में कानपुर में 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह होने के आरोप लगे थे. हालांकि बाद में सिख दंगे की जांच करने वाले रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में दंगों के दौरान 127 सिखों की मौत के मामले को ही दर्ज किया गया था.

सिखों का कहना है कि एक नवंबर को कानपुर में सिखों को बुरी तरह से हिंसा की आग में मौत के घाट उतार दिया गया था. तो वहीं इस मामले में बहुत दिनों तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. बाद में जब एफआईआर दर्ज की गई तो स्टेटस रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर केस खत्म कर दिया गया था. सिखों ने आरोप लगाया था कि दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी, लेकिन महज 127 लोगों की हत्या की एफआईआर दर्ज की गई थी.

कानपुरः सिख दंगों की आग में कानपुर के 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह हो जाने की बात कही जाती है. हालांकि सिख दंगों की जांच करने वाले रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग ने दंगों में 127 मौतें होने की ही बात कही थी. आज भी दंगा पीड़ितों के दिलों-दिमाग में 84 की आग का मातम छाया हुआ है. 35 साल बीत जाने के बाद भी जब पीड़ितों के जेहन में अपनों के खोने की बात याद आती है तो दर्द झलक जाता है.

1984 में हुए सिख दंगे की कहनी.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख समुदाय के खिलाफ दंगे हुए थे. उस दौरान कानपुर में भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 127 सरदारों की हिंसा में मौत हो गई थी. कानपुर में गोविन्द नगर, जूही, बजरिया, नजीबाबाद, गुमटी मार्केट सहित शहर के कई इलाकों में सिखों के साथ कत्लोगारत की वारदात हुई थी. इनमें सिखों की दुकानें को लूटने के साथ उनके मकानों को आग के हवाले कर दिया गया था. बड़ी मुश्किल से सिखों ने हिंसा के दौर में पलायन कर अपनी और अपने परिजनों की जान बचाई थी. सन 1984 के नवम्बर माह में कानपुर में 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह होने के आरोप लगे थे. हालांकि बाद में सिख दंगे की जांच करने वाले रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में दंगों के दौरान 127 सिखों की मौत के मामले को ही दर्ज किया गया था.

सिखों का कहना है कि एक नवंबर को कानपुर में सिखों को बुरी तरह से हिंसा की आग में मौत के घाट उतार दिया गया था. तो वहीं इस मामले में बहुत दिनों तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. बाद में जब एफआईआर दर्ज की गई तो स्टेटस रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर केस खत्म कर दिया गया था. सिखों ने आरोप लगाया था कि दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी, लेकिन महज 127 लोगों की हत्या की एफआईआर दर्ज की गई थी.

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कानपुर:-1984 में हुए सिख दंगे में अपनों को खोने के दर्द से आज भी नम है दंगा पीड़ितों की आँखे

31 अक्टूबर 1984 में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में फैले सिख दंगों का असर दिल्ली के बाद कानपुर सबसे ज्यादा देखने को मिला था। उत्तर प्रदेश में सिख दंगे का भयावह रूप औद्योगिक नगरी कानपुर में सिखों ने दंश झेला था। 1984 के सिख दंगे की आग में कानपुर के 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह हो गए थे। हालांकि, सिख दंगों की जांच करने वाले रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने दंगों में 127 मौतें होने की बात कही थी।आज भी दंगा पीड़ितों के दिलों-दिमाग में 84 की आग का मातम छाया हुआ है। इतना ही नही सिख दंगा पीड़ितों ने अपना दर्द ईटीवी भारत के साथ किया साझा।




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बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख समुदाय के खिलाफ दंगे हुए थे। उस दौर में कानपुर में भी सिख विरोधी दंगे के आग में सरकारी आंकड़ों में 127 सरदारों की हिंसा में मौत हो गई थी। कानपुर में गोविन्द नगर,जूही,बजरिया, नजीबाबाद, गुमटी मार्केट सहित शहर के कई इलाकों में सिखों के साथ कत्लोगारत की वारदात हुई थी। इनमें सिखों की दुकानें को लूटने के साथ उनके मकानों को आग के हवाले कर दिया था।बड़ी मुश्किल से सिखों ने हिंसा के दौर में पलायन कर के अपनी और अपने परिजनों की जान बचाई थी।

1984 नवम्बर के वक्त कानपुर में 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह होने के आरोप लगे थे। हालांकि बाद में सिख दंगे की जांच करने वाले रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में दंगों के दौरान 127 सिखों की मौत के मामले को ही दर्ज किया गया था। सिखों का कहना है कि एक नवंबर को कानपुर में सिखों को बुरी तरह से हिंसा की आग में मौत के घाट उतार दिया गया था। तो वही इस मामले में बहुत दिनों तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई।बाद में जब एफआईआर दर्ज की गई तो स्टेटस रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर केस खत्म कर दिया गया था. सिखों ने आरोप लगाया था कि दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी, लेकिन महज 127 लोगों की हत्या की एफआईआर दर्ज की गई थी।







Conclusion:1984 में हिंसा के आग में अपनों को खोने के 35 साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी इतिहास के पन्ने जब उनके जेहन जब भी पलटते है तो दर्द झलक आता है।आप खुद सुनिए उस दंश की दास्तां पीड़ितों की जुबानी। ईटीवी भारत के संवाददाता रजनीश दीक्षित ने जाना दंगा पीड़ितों का दर्द

बाईट:-डॉ एस एस दूपड….....दंगा पीड़ित

बाईट:-हरमीत कौर….....दंगा पीड़िता

नोट:-यह ख़बर पंजाब डेस्क को भी भेज दे शैलेंद्र सर के ध्यानार्थ।

रजनीश दीक्षित,
कानपुर।
Last Updated : Nov 2, 2019, 8:26 AM IST
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