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'सांसों पर सधी शहनाई की सांसें अब उखड़ने लगी हैं'

कानपुर का एक ऐसा गांव, जहां कभी उस्तादों की शहनाई के बिना कोई मांगलिक कार्यक्रम नहीं होता था. आज उस गांव के शहनाई वादक दूसरे कारोबार में रूचि लेने लगे हैं. वजह है लोगों का पाश्चात्य संगीत की तरफ रूख करना. पढ़िये ये रिपोर्ट...

दूसरे कारोबार पर शिफ्ट कर रहे शहनाई वादक.
दूसरे कारोबार पर शिफ्ट कर रहे शहनाई वादक.
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Published : Mar 5, 2021, 1:09 PM IST

Updated : Mar 10, 2021, 10:50 AM IST

कानपुर: शहनाई उस्तादों के आंगन से शाही शादियों के पंडालों तक अपने पैर पसारने वाली शहनाई अब कहीं खोती जा रही है. कभी शहनाई का शाही अंदाज इस कदर परवान चढ़ा था कि बनारस ही नहीं, बल्कि कानपुर के पास एक गांव को ही शहनाई वादकों ने बसा डाला था. आज आधुनिकता के दौर और पाश्चात्य संगीत की दुनिया ने शहनाई की धुन को न केवल दबा दिया है, बल्कि अब बंदी की कगार पर जा पहुंची है.

दूसरे कारोबार पर शिफ्ट कर रहे शहनाई वादक.

शहनाई वादकों का गांव है मझावन

कानपुर महानगर के जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर एक खास गावं 'मझावन' इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यह पूरा गावं शहनाई वादकों का है. पिछले कई दशकों से चौथी और पांचवीं पीढ़ी तक के लोग केवल शहनाई वादन के बल पर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. वर्तमान में जैसे-जैसे डीजे, डिस्को ने संगीत की शक्ल अख्तियार कर ली, वैसे-वैसे शहनाई की मीठी आवाज खामोश होती चली गई.

परम्परागत व्यवसाय से हुआ मोह भंग

आज मझावन की हालात ऐसी हैं कि युवा वर्ग अपनी परिपाटी से अलग होता जा रहा है. इसकी वजह है कि आज समय बहुत बदल गया है और शहनाई को कोई पूछता नहीं हैं. कुछ लोगों ने तो पीढ़ियों से चले आ रहे फन को आर्थिक तंगी के कारण छोड़ दिया. अब वे दूसरा कारोबार करने को मजबूर हैं.

मझावन के रहने वाले शहनाई के उस्ताद जमील ने बताया कि उन्होंने अपने बड़े भाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई वादन सीखा था. कहा कि उनके बच्चे अब दूसरे कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं. आज जो भी शहनाई वादन इस गांव में है, वो फिल्मी गीतों की धुन के रूप में सुना जा सकता है. राग और बंदिशों का वो जादुई सफर आज समाप्त होने की कगार पर है. कहा कि सांसों पर सधी हुई शहनाई की सांसें अब उखाड़ने लगीं है.

कानपुर: शहनाई उस्तादों के आंगन से शाही शादियों के पंडालों तक अपने पैर पसारने वाली शहनाई अब कहीं खोती जा रही है. कभी शहनाई का शाही अंदाज इस कदर परवान चढ़ा था कि बनारस ही नहीं, बल्कि कानपुर के पास एक गांव को ही शहनाई वादकों ने बसा डाला था. आज आधुनिकता के दौर और पाश्चात्य संगीत की दुनिया ने शहनाई की धुन को न केवल दबा दिया है, बल्कि अब बंदी की कगार पर जा पहुंची है.

दूसरे कारोबार पर शिफ्ट कर रहे शहनाई वादक.

शहनाई वादकों का गांव है मझावन

कानपुर महानगर के जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर एक खास गावं 'मझावन' इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यह पूरा गावं शहनाई वादकों का है. पिछले कई दशकों से चौथी और पांचवीं पीढ़ी तक के लोग केवल शहनाई वादन के बल पर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. वर्तमान में जैसे-जैसे डीजे, डिस्को ने संगीत की शक्ल अख्तियार कर ली, वैसे-वैसे शहनाई की मीठी आवाज खामोश होती चली गई.

परम्परागत व्यवसाय से हुआ मोह भंग

आज मझावन की हालात ऐसी हैं कि युवा वर्ग अपनी परिपाटी से अलग होता जा रहा है. इसकी वजह है कि आज समय बहुत बदल गया है और शहनाई को कोई पूछता नहीं हैं. कुछ लोगों ने तो पीढ़ियों से चले आ रहे फन को आर्थिक तंगी के कारण छोड़ दिया. अब वे दूसरा कारोबार करने को मजबूर हैं.

मझावन के रहने वाले शहनाई के उस्ताद जमील ने बताया कि उन्होंने अपने बड़े भाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई वादन सीखा था. कहा कि उनके बच्चे अब दूसरे कामों में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं. आज जो भी शहनाई वादन इस गांव में है, वो फिल्मी गीतों की धुन के रूप में सुना जा सकता है. राग और बंदिशों का वो जादुई सफर आज समाप्त होने की कगार पर है. कहा कि सांसों पर सधी हुई शहनाई की सांसें अब उखाड़ने लगीं है.

Last Updated : Mar 10, 2021, 10:50 AM IST
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