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NSI वैज्ञानिकों का शोध, जलकुंभी के प्रयोग से चीनी मिलों का दूषित पानी बनेगा पीने लायक

कानपुर के कल्याणपुर राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (National Sugar Institute Kalyanpur ) के वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि जलकुंभी के प्रयोग से चीनी मिलों के दूषित जल को पीने लायक बनाया जा सकता है.

जलकुंभी
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Published : Jan 10, 2023, 9:43 PM IST

संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया

कानपुर: देश या प्रदेश में जहां-जहां चीनी मिलें संचालित हैं. वहां यह बात हमेशा से सामने आती रही है कि मिलों से जो दूषित उत्प्रवाह निकलता है. वह या तो सिंचाई के पानी को दूषित कर देता है या फिर संबंधित शहर की नदियों के जल को किसी न किसी माध्यम से प्रदूषित करता है. मगर, अब ऐसा बिल्कुल नहीं होगा. बेहद सस्ते माध्यम से ही चीनी मिल संचालक दूषित जल को पीने लायक बना सकेंगे. यह बात हैरानी वाली लगती है मगर यह हकीकत है.

शहर के कल्याणपुर स्थित राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ( National Sugar Institute) में 5 सालों तक शोध कार्य करने के बाद वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जलकुंभी के प्रयोग से चीनी मिलों के दूषित जल को पीने लायक बनाया जा सकता है. कई मिलों के दूषित उत्प्रवाह को संग्रहित करने के बाद वैज्ञानिकों ने जलकुंभी की मदद से 7 दिनों में ही पानी के अंदर बीओडी, सीओडी, नाइट्रोजन की मात्रा को सीमित कर दिया है. वहीं, कीटनाशकों का पूरी तरह से सफाया कर दिया है. संस्थान के वैज्ञानिक अधिकारी डॉक्टर सुधांशु मोहन (Scientific Officer Dr. Sudhanshu Mohan) ने बताया कि जलकुंभी का प्रयोग बहुत सस्ता है. इसमें किसी तरह का केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है. न किसी आधुनिक तकनीकों वाली मशीनों की मदद लेनी पड़ी है. जलकुंभी से साफ पानी को मल्टीग्रेड व कार्बन फिल्टर से तैयार करके ऐसा बनाया गया कि उससे सिंचाई आसानी से हो सके. उन्होंने बताया कि, इस शोध कार्य में संस्थान से रिसर्च फैलो नीलम चतुर्वेदी की भूमिका भी अहम रही है. उन्होंंने बताया कि सूबे में कुल चीनी मिलों की संख्या 120 है. एक चीनी मिल में पांच हजार टन गन्ना पेरा जाता है.

वहीं, संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ( Director Prof Narendra Mohan) ने बताया कि, जब जलकुंभी वाला पानी तैयार हो जाता है तो उसके बाद रिवर्स आस्मोसिस तकनीक को अपनाकर हम तैयार पानी को आराम से पी सकते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में मिलों से निकलने वाला लाखों लीटर पानी अब बर्बाद नहीं होगा. साथ ही उसका उपयोग आमजन कर सकेंगे.

यह भी पढ़ें- बनारस के घाट खतरे में! जानिए गंगा घाट के धंसने के बाद वैज्ञानिकों ने क्या दी हिदायत

संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया

कानपुर: देश या प्रदेश में जहां-जहां चीनी मिलें संचालित हैं. वहां यह बात हमेशा से सामने आती रही है कि मिलों से जो दूषित उत्प्रवाह निकलता है. वह या तो सिंचाई के पानी को दूषित कर देता है या फिर संबंधित शहर की नदियों के जल को किसी न किसी माध्यम से प्रदूषित करता है. मगर, अब ऐसा बिल्कुल नहीं होगा. बेहद सस्ते माध्यम से ही चीनी मिल संचालक दूषित जल को पीने लायक बना सकेंगे. यह बात हैरानी वाली लगती है मगर यह हकीकत है.

शहर के कल्याणपुर स्थित राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ( National Sugar Institute) में 5 सालों तक शोध कार्य करने के बाद वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जलकुंभी के प्रयोग से चीनी मिलों के दूषित जल को पीने लायक बनाया जा सकता है. कई मिलों के दूषित उत्प्रवाह को संग्रहित करने के बाद वैज्ञानिकों ने जलकुंभी की मदद से 7 दिनों में ही पानी के अंदर बीओडी, सीओडी, नाइट्रोजन की मात्रा को सीमित कर दिया है. वहीं, कीटनाशकों का पूरी तरह से सफाया कर दिया है. संस्थान के वैज्ञानिक अधिकारी डॉक्टर सुधांशु मोहन (Scientific Officer Dr. Sudhanshu Mohan) ने बताया कि जलकुंभी का प्रयोग बहुत सस्ता है. इसमें किसी तरह का केमिकल का उपयोग नहीं किया गया है. न किसी आधुनिक तकनीकों वाली मशीनों की मदद लेनी पड़ी है. जलकुंभी से साफ पानी को मल्टीग्रेड व कार्बन फिल्टर से तैयार करके ऐसा बनाया गया कि उससे सिंचाई आसानी से हो सके. उन्होंने बताया कि, इस शोध कार्य में संस्थान से रिसर्च फैलो नीलम चतुर्वेदी की भूमिका भी अहम रही है. उन्होंंने बताया कि सूबे में कुल चीनी मिलों की संख्या 120 है. एक चीनी मिल में पांच हजार टन गन्ना पेरा जाता है.

वहीं, संस्थान के निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ( Director Prof Narendra Mohan) ने बताया कि, जब जलकुंभी वाला पानी तैयार हो जाता है तो उसके बाद रिवर्स आस्मोसिस तकनीक को अपनाकर हम तैयार पानी को आराम से पी सकते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में मिलों से निकलने वाला लाखों लीटर पानी अब बर्बाद नहीं होगा. साथ ही उसका उपयोग आमजन कर सकेंगे.

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