कानपुर: कहा जाता है, कला समाज का दर्पण होती है. कलाओं के भी कई प्रकार हैं. इनमें से एक प्रकार है, मधुबनी कला. इस कला को प्रभु श्रीराम और माता सीता विवाह के दौरान ऐसी पहचान मिली, कि मानों तब से यह कला आज तक जीवंत है. इस कला से जुड़ते हुए मधुबनी निवासी शांति देवी और उनके पति शिवन पासवान ने अपने हुनर से सबको ऐसा प्रभावित किया. उनके मुरीद पीएम मोदी भी हैं. उक्त दोनों हीं कलाकार कानपुर आए हैं, और शहर के कमला नगर स्थित सर पदमपत सिंहानिया एजूकेशन सेंटर में बच्चों को मधुबनी चित्रकला के गुर सीखा रहे हैं.
कई देशों में लोगों ने सीखी: राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित चित्रकार शान्ति देवी ने ईटीवी भारत संवाददाता समीर दीक्षित से विशेष बातचीत में बताया कि मधुबनी चित्रकला मिथिला पेंटिंग का बदला हुआ स्वरूप है. उन्होंने कहा कि राजा जनक के दौर में महिलाओं ने इस कला के चित्रों को दीवार पर बनाया था. हालांकि अब मधुबनी चित्रकला कागजों व कपड़ों, लेडीज सूट्स, साड़ियों तक में खूबसूरत दिखती है. शांति देवी ने कहा कि उनके पूर्वज इस कला को तैयार करते रहे. जिसके क्रम में वह अपने पति के साथ पिछले 48 सालों से इस काम में जुटी हैं. इस दौरान वह नार्वे, डेनमार्क समेत कई देशों में जाकर लोगों को मधुबनी चित्रकला सीखा चुकी हैं. शांति देवी व उनके पति को राष्ट्रपति पुरस्कार समेत कई अवार्ड मिल चुके हैं.
जब पीएम मोदी ने देखीं चन्द्रयान वाली पेंटिंग तो खुश हुए : शांति देवी ने बताया कि उन्हें ज़ब जी-20 समिट कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला. तब जल्दबाज़ी में चन्द्रयान-3 की पेंटिंग (मधुबनी चित्रकला पर आधारित) तैयार कर दी. इसके अलावा कुछ देशों के प्रधानमंत्री के चित्र भी थे.फिर जैसे हीं पीएम मोदी पेंटिंग देखने आए तो वह भी खुश हो गए. उन्होंने आश्वास्त किया कि जल्द हीं इस तरह की कला को बढावा मिले, इसके लिए हरसम्भव प्रयास करेंगे. शांति देवी ने कहा बिहार सरकार की ओर से उनका व उनके पति का नाम पद्मश्री 2024 के लिए भेजा जा चुका है.
बस यहीं है ख्वाहिश, हर गली, हर गांव में दिखे मधुबनी चित्रकला: मधुबनी चित्रकला की खासियत बताते हुए शांति देवी बोलीं इस कला में बॉर्डर लाइन सबसे पहले खींची जाती है. फिर चित्र बनता है, और अगर कहीं स्पेस रह गया तो हमें वहां पर्यावरण से जुड़ा कोई चित्र बना देना होता है. ज़ब उनसे पूछा गया, कि आपकी ख्वाहिश क्या है? इस सवाल के जवाब में मुस्कुराते हुए कहा, बस यहीं चाहतें हैं हम हर शहर, हर गली, हर गाँव में मधुबनी चित्रकला दिखनी चाहिए. इसे आलोपित नहीं करना है.
वहीं, स्कूल की प्रधानाचार्य भावना गुप्ता ने कहा, नई शिक्षा नीति के तहत हम छात्रों को उनके व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के नजरिये से इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं जिससे वह अपनी पढ़ाई के साथ कुछ नया सीखें. इससे पहले पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध पटचित्र कला व तेलांगना की प्रसिद्ध कला के विषय में उन्हें प्रशिक्षण दिया जा चुका है.