कानपुर: दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की अपनी एक अलग विशेषता है. इस बार सूर्यग्रहण के चलते यह पर्व 26 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. गोवर्धन पर्व को अन्नकूट का पर्व भी कहा जाता है. इस दिन गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान गोवर्धन की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से सभी दुख और दर्द दूर हो जाते हैं.
कानपुर के बिठूर स्थित इस्कॉन मंदिर प्रांगण में भी बुधवार को गोवर्धन पूजा का भव्य रूप से आयोजन किया गया. इस दौरान मंदिर परिसर में विभिन्न समारोह का भी आयोजन किया गया. सुबह से ही मंदिर परिसर में भगवान गोवर्धन जी के निर्माण कार्य में मंदिर के पुजारी ब्रज कन्हाई ने प्रभु गोवर्धन की अभूतपूर्व रचना बना कर तैयार की. इस बीच श्याम कुंड, राधाकुंड मानसी गंगा, गोविंद कुंड समेत कई अन्य तीर्थों का भी प्रतिरूप बनाया गया.
पूजा में अन्य शहरों से भी शामिल हुए लोग: बिठूर स्थित इस्कॉन मंदिर में सुबह से ही कई शहरों से भगवान गोवर्धन की पूजा के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है. अन्य शहरों से आए हुए भक्तों के द्वारा 1008 से ज्यादा भोग बनाकर भगवान गोवर्धन को अर्पण किए गए. इस दौरान भक्तों ने गोवर्धन भगवान की चार बार परिक्रमा करते हुए हरे कृष्णा हरे रामा कीर्तन के धुन पर नृत्य किया और पूजा-अर्चना कर उनकी आरती की.
इस्कॉन मंदिर परिसर में दिव्य निताई प्रभु जी के द्वारा गोवर्धन पूजा के इतिहास के बारे में व्याख्यान किया गया. उन्होंने बताया कि पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने इस लीला के माध्यम से ही इंद्र भगवान के गर्व का पतन किया इसलिए हमें भी धन और पद के मद में गर्वित नहीं होना चाहिए. भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति करने से ही हमें स्थाई गोलोकधाम की प्राप्ति होती है. इसको हम कलयुग में हरे कृष्ण महामंत्र के जाप और कीर्तन द्वारा प्राप्त कर सकते हैं.
गोवर्धन पूजा का महत्व: भगवान गोवर्धन की पूजा द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद से प्रारंभ हुई है. इसमें हिंदू धर्म के अनुसार घर के आंगन में गाय के गोबर से भगवान गोवर्धन नाथ जी की आकृति बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद भगवान गोवर्धन का भोग लगाया जाता है.
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