कानपुर: कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण अब तक हजारों लोग अपनी जान गवां चुके हैं. वहीं इसकी वजह से हुए लाॅकडाउन ने कई परिवारों को तबाह कर दिया. कई कंपनियां बंद हो गईं और हजारों लोग बेरोजगार हो गए. वहीं अब रोजगार नहीं मिलने के कारण उन लोगों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो गया है. इन्हीं सब कारणों के चलते कानपुर जिले के एक राष्ट्रीय खिलाड़ी को अपना गुजारा करने के लिए दीवारों पर रंग-रोगन का काम करना पड़ा रहा है.
जिले के धोबाघाट का रहने वाला 17 वर्षीय धनंजय वुशु का राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी है. उसने साल 2013 से वुशु खेलना शुरू किया और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 9 गोल्ड मेडल जीता है. खिलाड़ी ने बताया कि वह साल 2013 में गोरखपुर में आयोजित सब जूनियर वुशु राज्य प्रतियोगिता में गोल्ड, साल 2015 में वाराणसी में हुई जूनियर राज्य वुशु प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है.
इसके अलावा आगरा में साल 2017 में आयोजित जूनियर राज्य वुशु प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल, साल 2018 में सहारनपुर में हुई जूनियर राज्य वुशु प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल. वहीं 2018 में ही तमिलनाडु में हुई जूनियर राज्य वुशु प्रतियोगिता में गोल्ड और साल 2019 में यूपी के बागपत में आयोजित जूनियर राज्य वुश प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है.
आर्थिक तंगी के कारण छूट गई पढ़ाई
धनंजय के पिता श्री निवासराम मजदूरी का काम करते थे और बड़ी मुश्किल के परिवार का गुजारा होता है. खिलाड़ी ने बताया कि आर्थिक तंगी के कारण कक्षा 8 के आगे पढ़ाई नहीं कर पाया और आगे खेल भी नहीं पाया. इसके बाद जिले के दो निजी स्कूलों में बच्चों को वुशु का प्रशिक्षण देने लगा. वहां से जो आमदनी होती थी उसी से परिवार का गुजारा होता था. खिलाड़ी ने बताया कि सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लाॅकडाउन के बाद दोनों स्कूल संचालकों ने प्रशिक्षण देने से मना कर दिया.
बीमार पिता के इलाज के लिए शुरू किया रंग-रोगन
खिलाड़ी के पिता साल 2018 से ही बीमार हैं. लाॅकडाउन में खिलाड़ी की भी आमदनी बंद हो गई. उसने बताया कि आमदनी बंद होने के कारण आर्थिक संकट और गहरा हो गया और बीमार पिता का इलाज करना मुश्किल हो गया था. इस कारण परिवार का गुजारा करने और पिता के इलाज के लिए मजबूरन रंग-रोगन का काम करना पड़ रहा है. वह अपने मां-बाप का इकलौता बेटा है. घर में खिलाड़ी के अलावा उसकी मां और पिता हैं.
मजदूरी करने को मजबूर खिलाड़ी
खिलाड़ी के कोच संजीव शुक्ला ने बताया कि उसने राज्य और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीतकर जिले और प्रदेश का नाम रोशन किया है. स्थानीय प्रशासन और सरकार से मदद नहीं मिलने के कारण खिलाड़ी को मजबूरन पिता के इलाज के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि यह गर्व की बात है कि इतनी परेशानियों के बाद भी खिलाड़ी पीछे हटने के बजाए उनका सामना कर रहा है. इससे दूसरे खिलाड़ियों को प्रेरणा लेनी चाहिए.