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कानपुरः दो मौतों के बाद जागा मेडिकल कॉलेज प्रशासन - patient died in hallet hospital

यूपी के कानपुर में हैलट में बीते एक हफ्ते में दो मौतों का मामला सामने आया है. इसे लेकर कॉलेज प्रशासन की तरफ से निर्देश भी दिए जा चुके थे. बावजूद इसके आदेशों की धज्जियां उड़ाई गईं. अब कॉलेज प्रशासन ने काम बांट दिया है.

एंबुलेंस.
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Published : Nov 2, 2020, 6:24 PM IST

कानपुरः जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हैलट में बीते हफ्ते में इलाज न मिलने की वजह से दो लोगों की मौत हो गई. इसकी वजह से जमकर हंगामा हुआ. दो लोगों के काल के गाल में जाने के बाद मेडिकल कॉलेज प्रशासन अब जागा है. हैलट में इमरजेंसी मरीज को इलाज न मिलने पर जिम्मेदार ईएमओ होंगे. वहीं जूनियर डॉक्टर सिर्फ इलाज करेंगे और अन्य काम ईएमओ देखेंगे.

जानकारी देते जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य.

आदेशों की उड़ाई गईं धज्जियां
पहली मौत 26 अक्टूबर को हुई थी, जिसके बाद भी प्राचार्य ने ऐसे ही आदेश दिए थे. उसके तीन दिन बाद ही फिर एक महिला की इलाज न मिलने से मौत हो गई. इसे लेकर अस्पताल में हंगामा भी हुआ. वहीं परिजनों ने जूनियर डॉक्टर के अमर्यादित रवैये पर भी सवाल खड़े किए हैं कि जूनियर डॉक्टर इलाज कम मारपीट पर ज्यादा ध्यान देते हैं. प्राचार्य तक के आदेश को नहीं मानते हैं. देखना यह होगा कि इस आदेश के बाद इलाज और इमरजेंसी की दिशा और दशा बदलेगी या ऐसे ही मरने वालों की संख्या का आंकड़ा बढ़ता जाएगा.

एक हफ्ते में हुईं दो मौतें
केस-1ः 26 अक्टूबर को झारखंड निवासी राधिका की इलाज के अभाव में हैलट में पेड़ के नीचे ही मौत हो गई. राधिका को इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती करने की भी जहमत नहीं उठाई गई. ब्रेन हैमरेज होने के बाद राधिका के पति और बेटी उसे हॉस्पिटल ले आएं थे, जहां सिटी स्कैन के लिए पैसे न होने के चलते डॉक्टर्स ने बिना सिटी स्कैन के इलाज नहीं शुरू किया और उसकी मौत हो गई.

केस-2ः 29 अक्टूबर को रोजगार कार्यालय में कार्यरत सुमित्रा कुरील को कार्यालय आने के दौरान एक ट्रक ने कुचल दिया, जिससे उनकी जांघ की हड्डी चूर हो गई. इसके बाद उसे आनन-फानन में हैलट लाया गया, लेकिन वहां इलाज की जगह कागजों के मकड़जाल में उलझ कर उसने अपनी सांसों की डोर छोड़ दी. डॉक्टर उसके परिजनों को इलाज के नाम पर एक विभाग से दूसरे विभाग घूमाते रहे और उसने स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ दिया.

प्राचार्य के आदेश को हवा में उड़ा दिया
26 अक्टूबर को राधिका की मौत के बाद मेडिकल कॉलेज प्राचार्य ने आदेश दिया था कि पहले मरीज को भर्ती किया जाएगा, उसके बाद जांच और कागजी कार्यवाही की जाएगी. मगर तीसरे दिन ही दूसरी ऐसी घटना प्राचार्य के आदेश और जूनियर डॉक्टर की उनकी नजर में सम्मान बताने के लिए काफी है.

अब पर्चे और एडमिशन का काम किया अलग
डॉ. आरबी कमल ने बताया कि घटना के बाद सभी विभागाध्यक्ष के साथ बैठक की गई है. यह सुनिश्चित किया गया कि अब पर्चे और एडमिशन का काम अलग ही रहेगा और किसी मरीज को इलाज में कागजों के चलते दिक्कत आई तो ईएमओ जिम्मेदार होंगे.

जूनियर डॉक्टर करेंगे सिर्फ इलाज
डॉ. आरबी कमल ने बताया कि सभी जूनियर डॉक्टरों को निर्देश दे दिए गए हैं कि उनका काम सिर्फ इलाज करना है और वह उसी पर अपना ध्यान केंद्रित करें. कागजी कार्यवाही से अब उनका कोई भी सरोकार नहीं होगा.

कानपुरः जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हैलट में बीते हफ्ते में इलाज न मिलने की वजह से दो लोगों की मौत हो गई. इसकी वजह से जमकर हंगामा हुआ. दो लोगों के काल के गाल में जाने के बाद मेडिकल कॉलेज प्रशासन अब जागा है. हैलट में इमरजेंसी मरीज को इलाज न मिलने पर जिम्मेदार ईएमओ होंगे. वहीं जूनियर डॉक्टर सिर्फ इलाज करेंगे और अन्य काम ईएमओ देखेंगे.

जानकारी देते जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य.

आदेशों की उड़ाई गईं धज्जियां
पहली मौत 26 अक्टूबर को हुई थी, जिसके बाद भी प्राचार्य ने ऐसे ही आदेश दिए थे. उसके तीन दिन बाद ही फिर एक महिला की इलाज न मिलने से मौत हो गई. इसे लेकर अस्पताल में हंगामा भी हुआ. वहीं परिजनों ने जूनियर डॉक्टर के अमर्यादित रवैये पर भी सवाल खड़े किए हैं कि जूनियर डॉक्टर इलाज कम मारपीट पर ज्यादा ध्यान देते हैं. प्राचार्य तक के आदेश को नहीं मानते हैं. देखना यह होगा कि इस आदेश के बाद इलाज और इमरजेंसी की दिशा और दशा बदलेगी या ऐसे ही मरने वालों की संख्या का आंकड़ा बढ़ता जाएगा.

एक हफ्ते में हुईं दो मौतें
केस-1ः 26 अक्टूबर को झारखंड निवासी राधिका की इलाज के अभाव में हैलट में पेड़ के नीचे ही मौत हो गई. राधिका को इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती करने की भी जहमत नहीं उठाई गई. ब्रेन हैमरेज होने के बाद राधिका के पति और बेटी उसे हॉस्पिटल ले आएं थे, जहां सिटी स्कैन के लिए पैसे न होने के चलते डॉक्टर्स ने बिना सिटी स्कैन के इलाज नहीं शुरू किया और उसकी मौत हो गई.

केस-2ः 29 अक्टूबर को रोजगार कार्यालय में कार्यरत सुमित्रा कुरील को कार्यालय आने के दौरान एक ट्रक ने कुचल दिया, जिससे उनकी जांघ की हड्डी चूर हो गई. इसके बाद उसे आनन-फानन में हैलट लाया गया, लेकिन वहां इलाज की जगह कागजों के मकड़जाल में उलझ कर उसने अपनी सांसों की डोर छोड़ दी. डॉक्टर उसके परिजनों को इलाज के नाम पर एक विभाग से दूसरे विभाग घूमाते रहे और उसने स्ट्रेचर पर ही दम तोड़ दिया.

प्राचार्य के आदेश को हवा में उड़ा दिया
26 अक्टूबर को राधिका की मौत के बाद मेडिकल कॉलेज प्राचार्य ने आदेश दिया था कि पहले मरीज को भर्ती किया जाएगा, उसके बाद जांच और कागजी कार्यवाही की जाएगी. मगर तीसरे दिन ही दूसरी ऐसी घटना प्राचार्य के आदेश और जूनियर डॉक्टर की उनकी नजर में सम्मान बताने के लिए काफी है.

अब पर्चे और एडमिशन का काम किया अलग
डॉ. आरबी कमल ने बताया कि घटना के बाद सभी विभागाध्यक्ष के साथ बैठक की गई है. यह सुनिश्चित किया गया कि अब पर्चे और एडमिशन का काम अलग ही रहेगा और किसी मरीज को इलाज में कागजों के चलते दिक्कत आई तो ईएमओ जिम्मेदार होंगे.

जूनियर डॉक्टर करेंगे सिर्फ इलाज
डॉ. आरबी कमल ने बताया कि सभी जूनियर डॉक्टरों को निर्देश दे दिए गए हैं कि उनका काम सिर्फ इलाज करना है और वह उसी पर अपना ध्यान केंद्रित करें. कागजी कार्यवाही से अब उनका कोई भी सरोकार नहीं होगा.

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